Tuesday 26 July 2016

डॉक्टर कलाम की बरसी : उनसे जुडी यादें

डॉक्टर ऐ पी जे अब्दुल कलाम साहब हमारे देश के ऐसे नायाब हीरे थे जिन्हें हर कोई प्रेम करता था। आज उनकी पुण्य तिथि पर उनके पैतृक निवास रामेश्वरम में उनके स्मारक को प्रधानमंत्री ने देश के युवाओं को समर्पित कर उनकी याद और उनके आदर्शों को सदैव के लिए लोगों के मन में संजो दिया।
कलाम साहब न केवल एक महान वैज्ञानिक, प्रखर वक्ता, विचारक,  दार्शनिक, शिक्षा विद एवं भारत रत्न थे अपितु एक उदार व पवित्र हृदय के स्वामी भी थे। मुझे इस बात का फक्र है मुझे ईश्वर ने इस महान आत्मा से छह बार मिलवाया। इनसे मिल हमेशा ऐसा प्रतीत हुआ जैसे किसी दिव्य आत्मा से साक्षात्कार हो रहा है। अपनी ऐसी ही कुछ यादों को ब्लॉग में समेट कर सहेजा है आपके साथ सांझा कर रहा हूँ। 
डाक्टर कलाम की आज दूसरी  बरसी है आज का ब्लॉग उनकी यादों को समर्पित है जो उन्होंने हमें आशीर्वाद के रूप में हमें दी. हम सौभाग्यशाली हैं उनका सानिध्य और आशीर्वाद हमें मिला.
डॉ कलाम जब देश के 11वें राष्ट्रपति बनें तो एक आम भारतीय की तरह मैं भी उनके बारे में बहुत ज़्यादा नहीं जानता था पर राष्ट्रपति पद पर रहते हुए उनके नेक कार्यों ने उन्हें एक असाधारण राष्ट्रपति के रूप में परिवर्तित कर दिया जिसने सही मायनों में लोगों के दिलों पर राज किया. इन्हीं सभी वजहों से वो एक आम आदमी के राष्ट्रपति या फिर बच्चों के राष्ट्रपति भी कहलाए। जल्द ही अपनी मेहनत, लगन और सरल स्वभाव से वो लोगों के दिलों में घर कर गए. शायद विरला ही कोई व्यक्ति होगा जो उनसे मिल कर उनकी शख्सियत से प्रभावित ना हुआ हो। धीरे धीरे डॉ कलाम भारतीय मानस पटल के एसे ध्रुव तारे के रूप में स्थापित हो गए जहाँ पर किसी और का पहुँचना असंभव है। मैं तो उनको “आधुनिक युग के विवेकानंद” के रूप में जानता हूँ।
सितम्बर 2004 में मैं अपनी पत्नी तथा पुत्री के साथ मसूरी घूमने गया हुआ था कि तभी पता चला कि डॉ कलाम मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री नेशनल अकैडमी ऑफ एड्मिनिसट्रेशन में लेक्चर देने आए हुए हैं और शीघ्र ही उनका काफिला यहाँ से निकलेगा। मैं भी जनता के बीच सड़क किनारे अपनी पुत्री को गोद में उठाए उनके दर्शनों का बेताबी से इंतज़ार करने लगा। कुछ ही देर में उनकी कार बिलकुल मेरे आगे से निकली और हमारी आँखें टकराई और उनकी चिर परिचित मुस्कान का मैं भी कायल हो गया। 2008 में अपने रामेश्वरम दौरे के दौरान उनके पैतृक निवास स्थान के दर्शन करने का मौका मिला। एक दिन 2011 में मेरे एक मित्र मुकेश जो कि उस समय अहमदाबाद हवाई अड्डे पर टर्मिनल मैनेजर के पद पर नियुक्त थे उन्होनें मुझे फोन कर के बताया कि आजकल डॉ कलाम अक्सर अहमदाबाद आते हैं, आई॰आई॰एम॰/अहमदाबाद में लेक्चर देने और उनसे मुकेश की तीन चार बार निजी तौर पर भेंट हो चुकी थी तभी से मेरे दिमाग में आया कि क्यूँ न हम भी एक बार उनसे निजी मुलाक़ात का सौभाग्य प्राप्त कर लें और फिर मैंने उनसे मुलाक़ात करने का प्रयास शुरू किया और अंततः हमारी वी सी आर सी की बीसवीं वर्षगांठ पर हमारे रेलवे के डेलीगेट्स को उनसे मुलाक़ात का सौभाग्य प्राप्त हो ही गया।
हम सभी में बहुत जोश था कि आज डॉ कलाम जैसी शख्सियत से मिलने का मौका मिलेगा। इस मुलाक़ात से जीवन में एक नया आयाम स्थापित हुआ। तय तारीख 19 सितम्बर को शाम करीब 6:30 बजे हम सब 10 राजाजी मार्ग, जो कि उनका अधिकारिक निवास स्थान था, पर पहुँच गए। इस बैठक में पूरे भारत वर्ष से वी॰सी॰आर॰सी॰ आए हुए थे। हम सब उनके अतिथि कक्ष में बैठ गए। यह वही कमरा था जिसमें डॉ कलाम लोगों से मिला करते थे। उनके इंतकाल के बाद उनके पार्थिव शरीर को भी अंतिम दर्शनों के लिए इसी कमरे में रखा गया था। जिस दिन शिलांग से उनके पार्थिव शरीर को उनके आवास पर लाया गया तो उस दिन मैं भी वहीं मौजूद था, मुझे उनके अंतिम दर्शन करने का सौभाग्य भी प्राप्त हो गया। बहुत ही भावुक क्षण था वो। अचानक ही वो सारे दृश्य मेरे मानस पटल पर उमड़ आए जब मैं पहली बार उनसे इस कमरे में मिला था और उसके बाद तो कई बार ऐसे अमूल्य क्षण मेरे जीवन में आए।
19 सितंबर, 2011 की उस शाम हम सब कलाम साहब की प्रतीक्षा में बैठे थे और तब तक ये यकीन नहीं हो रहा था कि वाकई आज हम कलाम साहब जैसी महान हस्ती से मिलने वाले हैं। तभी मुख्य दरवाजे से अपनी चिर परिचित मुस्कान बिखेरते डॉ कलाम ने प्रवेश किया । एक बारगी तो आँखों को विश्वास ही नहीं हुआ। कार्यक्रम को संचालित करने की ज़िम्मेदारी मुझे दी गई थी । उन्होनें आते ही मुझसे डेलीगेशन के बारे में पूछा । मैंने उन्हें बताया कि मैं पढ़ कर कुछ बताना चाहता हूँ जिससे आपको सब साफ़ हो जाएगा। वह बोले कि मैं आपको 60 सेकण्ड्स का समय दे रहा हूँ इसको तुरंत पढ़ डालो। मैंने तुरंत ही आदेश का पालन करते हुए ही तय समय सीमा में वी॰सी॰आर॰सी॰ समुदाय का परिचय दिया और वो परिचय को जान कर अत्यंत प्रसन्न हुए। एक समानता जो वी॰सी॰आर॰सी॰ के सदस्यों और डॉ कलाम में थी कि दोनों ही अत्यंत साधारण मध्यम वर्गीय पारिवारिक श्रेणीओं से आते हैं। औपचारिकताओं के बाद सभी सदस्यों ने अपना व्यक्तिगत परिचय दिया और फिर डॉ कलाम ने बोलना शुरू किया और बताया कि उनका सबसे बड़ा सपना है भारत को विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित होते देखना।
उन्होने सपना देखा कि भारत को हर हाल में वर्ष 2020 तक एक विकसित राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है, और इसके लिए हर भारतवासी को कड़ी मेहनत करनी होगी। उनकी एक बात आज भी सदा मेरे दिमाग में गूँजती रहती है कि कभी यह मत सोचो कि मेरा देश मुझे क्या दे सकता है!! अपितु यह सोचो कि तुम देश को क्या दे सकते हो। ईमानदारी और मेहनत से बड़ा कोई कभी नहीं । एक महान कर्मयोगी ने अपने अनुभवों से हमारा मार्ग दर्शन किया। निजी तौर पर मेरे लिए वो मुलाक़ात एक टर्निंग पॉइंट साबित हुई, जीवन को जीने और देश के बारे में सोचने का दृष्टिकोण बदल गया और मेरे काम करने की शैली में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन आया। आज भी मेरे घर और कार्यालय में डॉ कलाम की तस्वीर टंगी हुई है जो रोज़ मुझे, मेरे देश के प्रति कर्तव्य को याद दिलाती है। मेरी भी यही इच्छा है कि अंतिम सांस तक देश की बेहतरी के लिए काम करूँ और कुछ ऐसा करूँ कि जब इस दुनिया से विदा लूँ तो मेरे शव को भी तिरंगे में लपेटा जाए।
उस दिन बहुत से मुद्दों पर बहुत खुल कर चर्चा हुई और उन्होनें भी हर सवाल का जवाब बहुत बेबाकी और पूरी ईमानदारी से दिया। उस मुलाक़ात के बाद मुझे लगभग सात बार और उनसे मुलाक़ात का सौभाग्य मिला और जब जब मिलता ऐसा लगता, मानो, ईश्वर के पुत्र से मिल रहा हूँ । उनके पास बैठने से ही लगता था कि चारों ओर पॉज़िटिव वाइब्स निकल रही हैं और हम सब एक अत्यंत पवित्र आत्मा के साथ बैठे हैं। उनके जन्मदिन, 15 अक्तूबर पर जाना तो एक रवायत बन गई थी।
मार्च 2013 में कलाम साहब जब दिल्ली मेट्रो में आए तो उस दौरे में भी उनके साथ रहने का सौभाग्य मुझे मिला। एक जिज्ञासु बच्चे की तरह हर चीज़ के बारे में पूरी उत्सुकता से पूछना उनकी आदत थी और खास बात यह थी कि वे फिर कभी उन बातों को जीवन में भूलते नहीं थे । मेरी उनसे अंतिम मुलाक़ात फरवरी 2015 में हुई जब मैं अपनी नई पुस्तक “अतुल्य भारत कि खोज” की पहली प्रति उनको भेंट करने कि लिए गया। उन्होनें मुझसे पूछा कि “तुम्हारी एयरपोर्ट लाइन की राइडरशिप कितनी हो गई है और अब एयरपोर्ट लाइन का घाटा कम हुआ कि नहीं?” उनकी यह जिज्ञासा देख कर मैं चकित रह गया कि उन्हें हमारी एयरपोर्ट लाइन की भी चिंता थी। रात के करीब आठ बज चुके थे , उन्होनें मेरी किताब के कंटैंट के बारे में पूछा और खुश हुए कि मैंने ऐसे विषय पर किताब लिखी है जिसमे देश के विभिन्न हिस्सों कि जानकारी है। कलाम साहब लक्षद्वीप को छोड़ भारत के हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों में गए थे और जहाँ तक मुझे ज्ञात है ऐसा करने वाले वो एक मात्र राष्ट्रपति हुए हैं। तैयारी तो लक्षद्वीप की भी थी पर जब कोची से हेलीकाप्टर में बैठने लगे तो मौसम बहुत ज्यादा खराब हो गया और दौरा रद्द करना पड़ा। मुझे क्या पता था कि वो मुलाक़ात उनसे आखिरी मुलाक़ात साबित होने वाली थी। ईश्वर उस पुण्य आत्मा को पुनः भारत भूमि पर भेजे ऐसी कामना है मेरी और मैं समस्त वी॰सी॰आर॰सी॰ परिवार से आह्वान करता हूँ कि आइये हम सब शपथ लें कि हम सदा ही डॉ कलाम के दिखाए रास्तों पर चलेंगे और देश कि बेहतरी के लिए जी जान से काम करेंगे।






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