Monday 18 July 2016

शहीद सुखदेव थापर का जन्मस्थान, सरबजीत और अमृतसर
















नमस्कार मित्रों

सादर नमस्कार !!

आज मैं पुन: उपस्थित हूँ आपको भारत की एक नई जगह के दर्शन करवाने के लिए. आज मै आपको ले कर चल रहा हूँ अमर शहीद सुखदेव थापर के जन्मस्थान यानि की उनके पुश्तैनी मकान जो की लुधियाना शहर में चोडा बाज़ार के नौ घरा क्षेत्र में बना हुआ है. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को भला कौन हिन्दुस्तानी नहीं जानता इनकी शहादत के कर्ज़दार हम सभी हैं. सुखदेव के घर के बाद मैं आपको भगत सिंह और राजगुरु के घरों के भी दर्शन जल्द ही करवाऊंगा. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव तीनों न केवल अभिन्न मित्र थे अपितु देश पर मर मिटने का जज़बा भी इन तीनों में बराबर भरा हुआ था. भगत सिंह की ही भांति मात्र 23 वर्ष की आयु में फांसी का फंदा चूमने वाले सुखदेव को मेरा शत शत नमन. आप भी कभी लुधियाना जायें तो इस पावन तीर्थ पर सीस नवाने अवश्य जाएँ.

लुधियाना से निकल कर हम गए 1965 की भारत पाकिस्तान का एक मुख्य केंद्र रहे “असल उत्तर और खेमकरण” गए जिसके बारे में एक अलग ब्लॉग में लिखुंगा. खेमकरण होते हुए जब में अमृतसर जा रहा था तो रास्ते में एक गाँव आया भिखीविंद जहाँ कभी “सरबजीत” रहा करता था. उनकी बहन दलबीर कौर जी ने सरबजीत को बचाने की पुरजोर कोशिश की पर शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था. वर्ष 2013 में सरबजीत की लाहौर के कोट लखपत जेल में हत्या कर दी गयी. सरबजीत पिक्चर देखने के बाद मेरा बहुत मन था की मै उस बहन से मिलूं जिसने 22 साल तक उम्मीद नहीं छोड़ी और देश विदेश में भी भाई के हक़ के लिए लडती रही. मै सरबजीत के घर पहुँच गया पर दुर्भाग्यवश उनका परिवार जालंधर के लिए निकला हुआ था. वहां हमें सरबजीत की साली साहिबा मिली जिन्होंने बताया की सरबजीत पर पिक्चर आने के बाद आज कल बहुत लोग उन्हें मिलने आने लगे हैं.

यहाँ से हम अमृतसर आ गए जहाँ मेरी मुलाकात मेरे कई पुराने मित्रों से हुई यहाँ सबसे पहले जालिंयावाला बाग में श्रधांजलि अर्पित की और फिर गुरु घर यानि की स्वर्ण मंदिर में जा कर मत्था. अमृतसर की सबसे बड़ी पहचान सिखों के सबसे बड़े गुरूद्वारे और तीर्थ स्थल “स्वर्ण मंदिर” की वजह से है जहाँ दुनिया भर से हर समुदाय के लाखों लोग अपना शीश झुकाने आते हैं. इसे हरमंदिर साहिब भी कहा जाता है, हरमंदिर साहिब की नीव सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव जी ने दिसंबर, 1588 , में लाहौर के एक सूफी संत हजरत मियां मीर जी से रखवाई थी.1604 में गुरुद्वारा बन कर तैयार हो गया. यहाँ का लंगर स्थल दुनिया भर में प्रसिद्द है जहाँ चौबीसों घंटे लाखों लोगों के लिए लंगर का वितरण चलता रहता है. ये एक अजूबे से कम नहीं है.

19 वी शताब्दी में अफ़ग़ान हमले में हरमंदिर साहिब को काफी क्षति पहुंची, महाराजा रणजीत सिंह इसको पुन: बनवाया और सोने से इसको मडवा दिया और तभी से इसको एक और नाम मिला स्वर्ण मंदिर. 400 वर्ष पुराने इस गुरूद्वारे का नक्शा गुरु अर्जुन देव जी ने स्वयं तैयार किया था. यहाँ प्रवेश के लिए चार दरवाजे हैं जो चारो दिशाओं से खुलते हैं और उस समय समाज चार जातियों में विभक्त था यह चारों दरवाज़े हर जाती के व्यक्ति का स्वागत करते हैं, यहाँ कोई भेदभाव नहीं है.

स्वर्ण मंदिर से बिल्कुल सटा हुआ है जालियांवाला बाग . भारत का इतिहास जालियांवाला बाग के बारे में लिखे बिना सदैव अधुरा ही रहेगा. भारत के स्वतंत्रा आन्दोलन में इतना बड़ा और जघन्य हत्याकांड कभी भी कहीं भी अंग्रेज सरकार ने नहीं किया. इस बर्बर्पुरण कृत्य के लिए हिंदुस्तान कभी भी अंग्रेजी हुकूमत को माफ़ नहीं कर सकता. वैसे तो समय समय पर कई सारे घाव गोरी सरकार हिन्दुस्तानियों को देती रही पर ये ज़ख्म नहीं नासूर दी दिया जिसकी पीड़ा को आज भी हम महसूस करते हैं. यहाँ जा कर हर हिन्दुस्तानी की आँख नाम हो जाती है और मन में क्रोध की अग्नि प्रव्ज्वालित हो जाती है जब हम दीवारों पर बने गोलियों के निशानों को देखते हैं. ऐसा लगता है गोलियों के निशान दीवारों पर नहीं अपितु किसी ने हमारे दिल की दीवारों को कुरेद कर बना दिए हैं. हमारे स्वतंत्रा संग्राम का ये महानतम प्रतीक एक महातीर्थ है

अमृतसर शहीद क्रन्तिकारी मदन लाल ढींगरा और उधम सिंह का गृह नगर भी है. इन दोनों के आदम कद के बुत यहाँ लगे हुए हैं जो आज भी इनके त्याग की याद दिलाते हैं. इसके अलावा यहाँ हिन्दुओं का विश्व प्रसिद्द दुर्गियाना मंदिर भी है. यहाँ राम तीर्थ  भी है जहाँ बाल्मीकि जी का आश्रम था और लव और कुश का जन्म भी यहीं हुआ था. कहा जाता है लव के नाम पर “लाहौर” और कुश के नाम पर “कसूर” का नामकरण हुआ था. अब ये दोनों ही स्थान पाकिस्तान में चले गए हैं. इसके अलावा अमृतसर अपने खान पान के लिए बहुत विख्यात है.  यहाँ हर प्रकार लाजवाब खाना मिलता है जो विश्व प्रसिद्द है. और वाघा बॉर्डर पर रोजाना होने वाली फ्लैग सेरेमनी को भी जरूर देखें.


तो आप कब जा रहे हैं इस ऐतिहासिक शहर को देखने. 

8 comments:

  1. Jai hind itna.acha likhte ho ka jane.ki icha prabal ho jati hai

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  2. Jai hind itna.acha likhte ho ka jane.ki icha prabal ho jati hai

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  3. Rishi nicely explained keep it up for enhancing our knowledge & taking us back to that time .

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  5. Amazing compilation... A treat to read... A real virtual journey indeed...

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