दोस्तों नमस्कार,
पिछले दिनों एक ऐसे शख्स
से मुलाकात हुई, जिनका स्थान भारतीय हाकी में शीर्ष पर रहा है उन्होंने कई सारे मुकाबलों में भारत
का नाम कई बार रोशन किया है, भारत के सर्वश्रेठ सेंटर फॉरवर्ड के रूप में पहचाने जाने
वाली इस विराट शक्सियत का नाम है “श्री बलबीर सिंह जी” जिन्हें बलबीर सिंह सीनियर
के नाम से भी जाना जाता है. चंडीगढ़ में रहने वाले बलबीर सिंह जी वैसे तो 95 वसंत
देख चुके हैं, लेकिन उनकी उर्जा और उनमें प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने वाला उनका रूहानी
रूप आत्मा को छू जाता है. उनके जीवन से जुड़े अनेक पहलुओं पर उनसे विस्तार से बातचीत
हुई.
लन्दन-1948, हेलसिंकी-1952
और मेलबोर्न-1956 के तीनों ओलिंपिक में भारत को हॉकी का स्वर्ण दिलवाने में बलबीर
सिंह जी की सक्रिय भूमिका थी. अपने जीवन के सबसे यादगार क्षण, वो याद करते हुए,
बताते हैं की वर्ष 1948 में, जब, लन्दन की धरती पर अंग्रेजों के खिलाफ फाइनल जितना
अत्यंत गर्व का क्षण था. जीत के बाद तिरंगा फहराया गया और जब तिरंगा ऊपर जा रहा था
उस समय लगा कि मैं भी उस तिरंगे के साथ ऊपर जा रहा था. 12 अगस्त 1948 को ये मैच
लन्दन के वेम्बले स्टेडियम में खेला गया था, जिसकी यादें आज तक बलबीर जी के जेहन
में बिलकुल ताज़ा हैं. इस मैच का जिक्र करते हुए उनकी आँखों में जीत व् ख़ुशी की चमक
साफ़ दिखाई दे रही थी. 200 वर्षों तक जिन अंग्रेजों ने भारत पर राज़ किया उन्हें उन्ही
की धरती पर हराना किसी कीमती भारी भरकम सौगात से कम नहीं था. लन्दन ओलिंपिक में बलबीर
जी ने कुल 8 गोल मारे थे. आज़ाद हिंदुस्तान का हॉकी में ये पहला स्वर्ण था. इसी एतिहासिक
जीत पर अगस्त में अक्षय कुमार की एक पिक्चर भी आ रही है “गोल्ड”. आप समझ सकते हैं इस
जीत का हर भारतीय के दिल में एक महत्वपूर्ण स्थान है, और सदा ही रहेगा.
फिर 1952 के हेलसिंकी ओलिंपिक
में बलबीर जी ने 9 गोल मारे और भारत को स्वर्ण दिलवाया, बलबीर जी ने इस मैच के
फाइनल में हॉलैंड के खिलाफ 6 में से 5 गोल दाग कर न केवल इतिहास रच दिया बल्कि गिनिस
बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम अर्जित करवा लिया. 1956 के मेलबोर्न ओलिंपिक
में भी भारत को हॉकी स्वर्ण दिलवाने में इनकी अग्रणी भूमिका रही, मेलबोर्न
ओलंपिक्स इन्होने कुल 5 गोल मारे. आजादी के बाद भारतीय हॉकी को 6 में से 5 स्वर्ण
दिलवाने में बलबीर सिंह जी ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया. 1957 में
तत्कालीन राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद के हाथों “पदम् श्री” हासिल करने
वाले बलबीर जी देश के पहले ऐसे खिलाडी बने जिन्हें ये सम्मान प्राप्त हुआ.
एक और घटना यहाँ बताने
वाली है की जब 1975 में हॉकी विश्व कप (कुवालालामपुर) के लिए बलबीर सिंह जी कोच के
तौर पर चुनाव हुआ तो इन्होने कैसे जी जान से टीम को तैयार किया और देश ने आज तक का
इकलौता हॉकी विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता.
जब टूर्नामेंट की तैयारी चल रही थी उसी दौरान बलबीर सिंह के पिता जी का देहांत हो
गया इनके पिता जी स्वर्गीय दलीप सिंह जी एक स्वतन्त्रा सेनानी रहे हैं. इन्होने
कैंप से केवल आधे दिन की छुट्टी ली और पिता जी के क्रिया क्रम से निवृत हो कर
तुरंत टीम को तैयार करने में जुट गए. इसी दौरान इनकी पत्नी को ब्रेन हैमरेज हो गया
पर ये अस्पताल केवल रात में ही जाते थे जब पुरे दिन की ट्रेनिंग पूरी हो जाती थी.
ऐसी लगन और मेहनत और जज़्बे को तो ईश्वर भी सम्मान देंगे और हुआ भी ऐसा ही, बलबीर
जी का त्याग रंग लाया और भारत ने 1975 के हॉकी विश्व कप जीत अपनी जीत का परचम
फेहरा दिया.
वर्ष 2015 में इन्हें
भारतीय हॉकी फेडरेशन ने लाइफ टीम अचिवेमेंट अवार्ड से सम्मानित करते हुए 30 लाख का
चेक दिया जिसे इन्होने बड़ी विनम्रता से ठुकरा दिया और कहाँ के इस राशि का इस्तेमाल
भारत में हॉकी के विकास के लिए लगाया जाए. ऐसे संत आज के समाज में कम ही देखने को
मिलते हैं. सबसे ज्यादा ख़ुशी तब हुई जब 2012 में लन्दन ओलंपिक्स के 116 वर्षों की
यात्रा के 16 सर्वश्रेठ खिलाडियों की सूची में बलबीर सिंह जी को शुमार किया गया. न
केवल भारत बल्कि एशिया से वो एक मात्र खिलाडी थे जो इस सूची में अपना स्थान बना
सके. उनकी तीन किताबें भी आ चुकी हैं जिसमें से गोल्डन गोल का हिंदी संस्करण जल्द
ही आप लोगों को पढने को मिलेगा. बलबीर सिंह जी का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत
है और हमें निरंतर आगे बढ़ने की शक्ति देता है और ये भी सिखाता है की देश से बढ़ कर कुछ
नहीं होता. आज 95 वर्ष की आयु में उनका एक ही सपना है और वो है भारत को पुन: ओलम्पिक्स
में हॉकी का स्वर्ण जीतते हुए देखना. ईश्वर उनकी इस इच्छा को जल्द पूरा करें ऐसी
मेरी ह्रदय से कामना है.
मित्रों, आने वाली 12
अगस्त को हम लन्दन ओलंपिक्स के गोल्ड के 70 साल पूरे करे रहे हैं, मुझे लगता है ये
एक ऐसा विषय है एक ऐसा पर्व है जिसे हर हिन्दुस्तानी को गर्व से मनाना चाहिए इस
दिन अपनी युवा पीढ़ी को इस कारनामे से न केवल अवगत करवाएं बल्कि अपने अपने घरों पर
या मोहल्लों में तिरंगा फेहरा कर इसे एक पर्व में परिवर्तित कर दें ताकि आने वाली
नस्लें भी इस गौरवपूर्ण अध्याय को सदा सदा के लिए याद रखें. इस विषय में मैं भी कुछ
प्रयास कर रहा हूँ और जल्द ही आपको उसके बारे में सूचित करूँगा.
इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि आज की युवा पीढ़ी को बलबीर सिंह जी जैसे महान व्यक्तित्व से अवगत करवाया जा सके और 12 अगस्त को एक यादगार दिवस में परिवर्तित करने का संकल्प लें. जय हिन्द.