Monday 28 May 2018

वीर सावरकर जी के जन्मदिवस पर उनकी जन्मस्थली पर नमन

आज एक ऐसे क्रांतिकारी का जन्म दिवस है, जिन्होंने देश को स्वतंत्र करवाने में एक अहम् भूमिका निभाई, इस महान पुण्यात्मा का नाम है विनायक दामोदर सावरकर जिन्हें वीर सावरकर भी कहा जाता है. 

आज ही के दिन यानी की 28 मई 1883 को भगुर ( नासिक) महाराष्ट्र में इनका जन्म हुआ था. आज इस पुण्य दिवस पर आपको मैं उनके जन्म स्थल के दर्शन करवाने ले चल रहा हूँ. वीर सावरकर एक मात्र ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हें अंग्रेज सरकार ने एक नहीं दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. 1857 की क्रांति के बाद देश में स्वाधीनता संग्राम का संघर्ष ठंडा हो चला था ये वीर सावरकर ही थे जिन्होंने क्रांतिकारियों की ज्वलंत भावनाओं को सही दिशा दे कर अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

आज उनके जन्म दिवस पर ऋणी राष्ट्र की ओर से उनको शत शत नमन. जय हिन्द.











Friday 11 May 2018

बाबा बंदा सिंह बहादुर शहीद स्मारक- फ़तेह बुर्ज पर नमन


प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार

मुझे यकीन है कि आपके कई सारे शहीद स्मारकों पर  नमन किया होगा, आज मैं आपको एक ऐसे युद्ध स्मारक पर ले कर चल रहा हूँ जिसका इतिहास में एक अनूठा स्थान है, जी हाँ इस युद्ध स्मारक का नाम है “फ़तेह बुर्ज”, ये चंडीगढ़ के नजदीक मोहाली यानि की साहिबज़ादा अजित सिंह नगर में स्थित है. साहिबज़ादा अजित सिंह जी गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादों में एक थे.

12 मई यानि की आज ही के दिन वर्ष 1710 इस्वी में सरहंद (पंजाब) से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर “चप्परचिड़ी” नामक स्थान पर बंदा सिंह बहादुर ने मुग़ल फौजों को हराया था और सूबा प्रमुख वज़ीर खान को मौत के घाट उतार दिया. इस प्रकार से बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिंद सिंह के दोनों छोटे साहिबजादों की शहादत का बदला ले लिया. वज़ीर खान ने ही गुरु गोबिंद सिंह साहब के दोनों छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फ़तेह सिंह जी को 26 दिसंबर 1704 को सरहिंद में ईटों में चिनवा दिया था. बाबा बंदा बहादुर सिंह जी वजीर खान को मार कर सम्पूर्ण सिख समाज का सर फक्र से ऊँचा कर दिया था. 12 मई का दिन सिख इतिहास में विशेष स्थान रखता है. इस पवित्र स्थान पर नमन कर के मुझे भी इस गौरव गाथा का बोध हुआ और मुझे लगा की मुझे इसके बारे में लिखना चाहिए.

अब तक आप भी इस जीत के महत्व को समझ गए होंगे. फ़तेह बुर्ज़ इसी महत्वपूरण जीत को समर्पित है. इसकी कुल ऊंचाई 328 फुट है. ये देश की सबसे ऊँची धार्मिक यादगार है. बुर्ज तीन हिस्सों में विभाजित है जो तीन जीतों के महत्व को दर्शाता है पहली समाना फ़तेह, दूसरी साढोरा फ़तेह और फिर चप्परचिड़ी फ़तेह. इसका उद्घाटन वर्ष 2011 में हुआ. अगले ब्लॉग मैं आपको सरहिंद की पवित्र भूमि पर ले कर चलूँगा जहाँ गुरु गोबिंद सिंह साहब के दोनों छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फ़तेह सिंह जी को 26 दिसंबर 1704 को सरहिंद में ईटों में चिनवा दिया था.









तब तक “वाहे गुरु जी खालसा श्री वाहे गुरु जी की फ़तेह.”   


Tuesday 8 May 2018

दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में बने शहीद स्मारक पर नमन

आज मैं इतिहास के कुछ ऐसे पन्ने पलट रहा हूँ जिसे देशवासियों, विशेषकर, दिल्ली वालों को अवगत करवाना अत्यंत आवश्यक है। आज का दिन दिल्ली के इतिहास में सदैव याद रखा जाएगा क्योंकि आज ही के दिन यानी 8 मई को तीन और 9 मई को एक अन्य क्रांतिकारी को अंग्रेजी हुकूमत ने फाँसी पर लटका दिया था। इन चारों क्रांतिकारियों के नाम थे मास्टर अमीर चंद, बसंत कुमार बिस्वास, मास्टर अवध बिहारी और भाई बाल मुकुन्द। दिसंबर 1912 में जब भारत की राजधानी को दिल्ली शिफ़्ट करने के अवसर पर तत्कालीन गवर्नर जरनल की शोभा यात्रा जब चाँदनी चौक क्षेत्र से निकल रही थी उस पर बम्ब फैंकने का काम इन चारों शूरवीरों ने सम्पन्न किया। हमले में गवर्नर बच गया पर इन चारों को फाँसी दे दी गयी।

8 मई, 1915 को दिल्ली में अमीर चंद, अवध बिहारी, बाल मुकुंद को फांसी दी गई थी, लेकिन बसंत कुमार बिस्वास को एक दिन बाद अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।

दिल्ली में इन तीन शहीदों को जहां फाँसी पर चढ़ाया गया था वो स्थान 'शहीद स्मारक' मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज (एम.ए.एम.सी.) दिल्ली, परिसर के अंदर है । स्वतंत्रता संग्राम के इन नायकों को इस फांसी घर में जा कर नमन कर मेरा जीवन सफल हो गया। कुछ वर्ष पहले ही दिल्ली के लुड़लौ कैसल स्कूलों के नाम इन शहीदों के नामों पर रखे गए हैं। सौभाग्यवश, मैं भी उन्हीं में से एक स्कूल में पढ़ा हूँ।

पुराने दिल्ली जेल परिसर के इस फांसी घर के दर्शन आप भी करें और इन शहीदों को अपनी भाव भीनी श्रद्धांजलि अर्पित करें। जय हिन्द जय भारत.





Saturday 5 May 2018

प्रसिद्द हॉकी खिलाड़ी श्री बलबीर सिंह सीनियर से एक यादगार मुलाकात


दोस्तों नमस्कार,

पिछले दिनों एक ऐसे शख्स से मुलाकात हुई, जिनका स्थान भारतीय हाकी में  शीर्ष पर रहा है उन्होंने कई सारे मुकाबलों में भारत का नाम कई बार रोशन किया है, भारत के सर्वश्रेठ सेंटर फॉरवर्ड के रूप में पहचाने जाने वाली इस विराट शक्सियत का नाम है “श्री बलबीर सिंह जी” जिन्हें बलबीर सिंह सीनियर के नाम से भी जाना जाता है. चंडीगढ़ में रहने वाले बलबीर सिंह जी वैसे तो 95 वसंत देख चुके हैं, लेकिन उनकी उर्जा और उनमें प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने वाला उनका रूहानी रूप आत्मा को छू जाता है. उनके जीवन से जुड़े अनेक पहलुओं पर उनसे विस्तार से बातचीत हुई.

लन्दन-1948, हेलसिंकी-1952 और मेलबोर्न-1956 के तीनों ओलिंपिक में भारत को हॉकी का स्वर्ण दिलवाने में बलबीर सिंह जी की सक्रिय भूमिका थी. अपने जीवन के सबसे यादगार क्षण, वो याद करते हुए, बताते हैं की वर्ष 1948 में, जब, लन्दन की धरती पर अंग्रेजों के खिलाफ फाइनल जितना अत्यंत गर्व का क्षण था. जीत के बाद तिरंगा फहराया गया और जब तिरंगा ऊपर जा रहा था उस समय लगा कि मैं भी उस तिरंगे के साथ ऊपर जा रहा था. 12 अगस्त 1948 को ये मैच लन्दन के वेम्बले स्टेडियम में खेला गया था, जिसकी यादें आज तक बलबीर जी के जेहन में बिलकुल ताज़ा हैं. इस मैच का जिक्र करते हुए उनकी आँखों में जीत व् ख़ुशी की चमक साफ़ दिखाई दे रही थी. 200 वर्षों तक जिन अंग्रेजों ने भारत पर राज़ किया उन्हें उन्ही की धरती पर हराना किसी कीमती भारी भरकम सौगात से कम नहीं था. लन्दन ओलिंपिक में बलबीर जी ने कुल 8 गोल मारे थे. आज़ाद हिंदुस्तान का हॉकी में ये पहला स्वर्ण था. इसी एतिहासिक जीत पर अगस्त में अक्षय कुमार की एक पिक्चर भी आ रही है “गोल्ड”. आप समझ सकते हैं इस जीत का हर भारतीय के दिल में एक महत्वपूर्ण स्थान है, और सदा ही रहेगा.

फिर 1952 के हेलसिंकी ओलिंपिक में बलबीर जी ने 9 गोल मारे और भारत को स्वर्ण दिलवाया, बलबीर जी ने इस मैच के फाइनल में हॉलैंड के खिलाफ 6 में से 5 गोल दाग कर न केवल इतिहास रच दिया बल्कि गिनिस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम अर्जित करवा लिया. 1956 के मेलबोर्न ओलिंपिक में भी भारत को हॉकी स्वर्ण दिलवाने में इनकी अग्रणी भूमिका रही, मेलबोर्न ओलंपिक्स इन्होने कुल 5 गोल मारे. आजादी के बाद भारतीय हॉकी को 6 में से 5 स्वर्ण दिलवाने में बलबीर सिंह जी ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया. 1957 में तत्कालीन राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद के हाथों “पदम् श्री” हासिल करने वाले बलबीर जी देश के पहले ऐसे खिलाडी बने जिन्हें ये सम्मान प्राप्त हुआ.

एक और घटना यहाँ बताने वाली है की जब 1975 में हॉकी विश्व कप (कुवालालामपुर) के लिए बलबीर सिंह जी कोच के तौर पर चुनाव हुआ तो इन्होने कैसे जी जान से टीम को तैयार किया और देश ने आज तक का इकलौता हॉकी विश्व  कप में स्वर्ण पदक जीता. जब टूर्नामेंट की तैयारी चल रही थी उसी दौरान बलबीर सिंह के पिता जी का देहांत हो गया इनके पिता जी स्वर्गीय दलीप सिंह जी एक स्वतन्त्रा सेनानी रहे हैं. इन्होने कैंप से केवल आधे दिन की छुट्टी ली और पिता जी के क्रिया क्रम से निवृत हो कर तुरंत टीम को तैयार करने में जुट गए. इसी दौरान इनकी पत्नी को ब्रेन हैमरेज हो गया पर ये अस्पताल केवल रात में ही जाते थे जब पुरे दिन की ट्रेनिंग पूरी हो जाती थी. ऐसी लगन और मेहनत और जज़्बे को तो ईश्वर भी सम्मान देंगे और हुआ भी ऐसा ही, बलबीर जी का त्याग रंग लाया और भारत ने 1975 के हॉकी विश्व कप जीत अपनी जीत का परचम फेहरा दिया.

वर्ष 2015 में इन्हें भारतीय हॉकी फेडरेशन ने लाइफ टीम अचिवेमेंट अवार्ड से सम्मानित करते हुए 30 लाख का चेक दिया जिसे इन्होने बड़ी विनम्रता से ठुकरा दिया और कहाँ के इस राशि का इस्तेमाल भारत में हॉकी के विकास के लिए लगाया जाए. ऐसे संत आज के समाज में कम ही देखने को मिलते हैं. सबसे ज्यादा ख़ुशी तब हुई जब 2012 में लन्दन ओलंपिक्स के 116 वर्षों की यात्रा के 16 सर्वश्रेठ खिलाडियों की सूची में बलबीर सिंह जी को शुमार किया गया. न केवल भारत बल्कि एशिया से वो एक मात्र खिलाडी थे जो इस सूची में अपना स्थान बना सके. उनकी तीन किताबें भी आ चुकी हैं जिसमें से गोल्डन गोल का हिंदी संस्करण जल्द ही आप लोगों को पढने को मिलेगा. बलबीर सिंह जी का जीवन हम सभी के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है और हमें निरंतर आगे बढ़ने की शक्ति देता है और ये भी सिखाता है की देश से बढ़ कर कुछ नहीं होता. आज 95 वर्ष की आयु में उनका एक ही सपना है और वो है भारत को पुन: ओलम्पिक्स में हॉकी का स्वर्ण जीतते हुए देखना. ईश्वर उनकी इस इच्छा को जल्द पूरा करें ऐसी मेरी ह्रदय से कामना है.

मित्रों, आने वाली 12 अगस्त को हम लन्दन ओलंपिक्स के गोल्ड के 70 साल पूरे करे रहे हैं, मुझे लगता है ये एक ऐसा विषय है एक ऐसा पर्व है जिसे हर हिन्दुस्तानी को गर्व से मनाना चाहिए इस दिन अपनी युवा पीढ़ी को इस कारनामे से न केवल अवगत करवाएं बल्कि अपने अपने घरों पर या मोहल्लों में तिरंगा फेहरा कर इसे एक पर्व में परिवर्तित कर दें ताकि आने वाली नस्लें भी इस गौरवपूर्ण अध्याय को सदा सदा के लिए याद रखें. इस विषय में मैं भी कुछ प्रयास कर रहा हूँ और जल्द ही आपको उसके बारे में सूचित करूँगा.

इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि आज की युवा पीढ़ी को बलबीर सिंह जी जैसे महान व्यक्तित्व से अवगत करवाया जा सके और 12 अगस्त को एक यादगार दिवस में परिवर्तित करने का संकल्प लें. जय हिन्द.