Tuesday 27 December 2016

जनाब मिर्ज़ा ग़ालिब के जन्मदिन पर उनको श्रधांजलि

नमस्कार मित्रों !!!

“हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं के ग़ालिब का है, अंदाज़े बयां ओर”

अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि आज मैं किस शख्सियत की बात करने वाला हूँ!!! जी हाँ दोस्तों, आज उर्दू और फारसी के मशहूर कवि एवं शायर मिर्ज़ा असद उल्ला खां “ग़ालिब” साहब का जन्मदिन है. ग़ालिब साहब अपने दिलकश अंदाज़ और रूह को गहराई तक छूने वाली शायरी के लिए पूरी दुनिया में विख्यात हैं. इनका जन्म 27 दिसम्बर 1797 को आगरा में हुआ और वर्ष 1812 में ये दिल्ली के बाशिंदे हो गए. अपनी काबिलियित के दम पर उन्होंने बहादुर शाह ज़फर के दरबार में अपनी जगह बना ली. सब लोग उन्हें प्यार से मिर्ज़ा नौशा के नाम से भी पुकारते थे, वैसे “ग़ालिब” भी उनका एक उपनाम था.

आज में आपको उनकी हवेली में ले कर चल रहा हूँ, जहाँ उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के कई सारे साल गुजारे थे. चांदनी चौक के मोहल्ला बल्लीमारान, गली कासिम जान में बनी इस हवेली को ग़ालिब स्मारक में बदल दिया गया है, जहाँ उनके जीवन की पूरी तस्वीर दिखाई देती है. उनके द्वारा इस्तेमाल किये गए कपडे भी यहाँ रखे गए हैं. ग़ालिब साहब का इंतकाल 15 फ़रवरी 1869 को दिल्ली में हुआ. मैं आपको उनकी कब्र पर भी ले कर चल रहा हूँ जो निजामुद्दीन बस्ती में बनी हुई है. उनका एक शेर यहाँ खुदा हुआ है, जो काफी मशहूर भी है :-

ना था कुछ, तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने, न होता मैं तो क्या होता

ग़ालिब साहब ने एक बात अपने जीवन काल में ही कह दी थी के मेरे काम की कद्र मेरे मरने के 100 साल बाद होगी, हुआ भी बिलकुल यही. 1969 में ग़ालिब शताब्दी वर्ष मनाया गया और फिर ग़ालिब की कब्र के नजदीक ही ग़ालिब अकादमी की स्थापना हुई, उनपर फिल्में बनी और दूरदर्शन पर मिर्ज़ा ग़ालिब धारावाहिक भी आया जो बहुत मशहूर हुआ. जगजीत सिंह साहब ने भी उनके द्वारा लिखी कई ग़ज़लों को अपना स्वर दिया. मेरे जेहन में भी ग़ालिब साहब के लिए इतना सम्मान, ये सब सुनने और देखने के बाद ही हुआ.

वर्ष 2014 में पहली बार मुझे उनकी हवेली और कब्र पर जाने का मौका मिला. इसके ग़ालिब अकादमी से उनकी कुछ पुस्तकें भी खरीदी. निजी तौर पर मुझे उनका ये वाला शेर बहुत पसंद है:-

हज़ारों खाव्हिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान मगर फिर भी कम निकले

इसके अलावा एक और शेर जो में आपके साथ साँझा करना चाहूँगा :-

हर एक बात पे कहते हो तुम, के तू क्या है
तुम ही कहो के ये अंदाज़े गुफ्तुगु क्या है.

1857 की क्रांति के बाद उनकी पेंशन बंद हो गयी और फिर उनके दिन मुफ़लिसी में कटे. पर इस बात से कोई भी इन्कार नहीं कर सकता कि, ग़ालिब साहब अपनी अज़ीम फनकारी के दम पर हमेशा हमारे जेहन में बसते रहेंगे. उनके जन्मदिन पर उनको भाव भीनी श्रधांजलि.

आज के ब्लॉग की समाप्ति उनके इस शेर के साथ करना चाहूँगा:-

मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त

मैं गया वक़्त नहीं हूँ, कि फिर आ न सकूँ





 

Friday 23 December 2016

दिल्ली की "अग्रसेन की बावड़ी" की सैर

प्रिय मित्रो,
सादर नमस्कार!!!



आज मै आपको अपने शहर दिल्ली की एक ऐसी जगह ले कर चल रहा हूँ, जिसका इतिहास महाभारत के काल से शुरू होता है और आज के युग में भी यह जगह काफी लोकप्रिय हैं. जी हाँ मित्रों इस जगह का नाम है “अग्रसेन की बावड़ी”. मूलतः इसका निर्माण पानी को संग्रहित करने के लिए किया गया. यहाँ मैं बताना चाहूँगा की बावड़ी को गुजराती में वाव कहा जाता है और हिंदी में बावली कहा जाता है और राजस्थानी में इसको बावड़ी कहा जाता है. इस बावड़ी की चौड़ाई 15 फीट और लम्बाई 60 फीट है. अग्रसेन की बावड़ी में कुल 103 सीढींयों है. इस बावड़ी में आमिर खान की “पी के” और सलमान खान की “सुल्तान” की भी शूटिंग हो चुकी है.   


दिल्ली के दिल कनाट प्लेस के पास कस्तूरबा गाँधी मार्ग पर केनिंग रोड के पास बने “ए एस आई” द्वारा संरक्षित स्थल का निर्माण अग्रवाल समाज के संस्थापक राजा अग्रसेन ने किया. 14 वीं शताब्दी में इस बावड़ी का जीर्णोद्वार किया गया. एक ज़माने में   इसमें पानी बिलकुल ऊपर तक भरा रहता था, पर अब तो केवल बारिश के मौसम में ही पानी के दीदार होते हैं. कहा जाता है एक ज़माने इसका जुडाव यमुना नदी के साथ भी था. तो आप कब जा रहें हैं इस बावड़ी को देखने??   

Wednesday 14 December 2016

परमवीर चक्र विजेता निर्मल जीत सिंह सेखों जी की बरसी पर उनको शत शत नमन

मित्रों, आज का दिन न केवल वायु सेना बल्कि देश के इतिहास में भी अत्यंत यादगार है, क्योंकि आज ही के दिन, 14 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान द्वारा श्रीनगर एयर बेस पर अचानक हुए हमले को फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों ने अपने प्राणों का बलिदान दे कर उस हमले का मुँह तोड़ जवाब दिया था. आज का ब्लॉग उनकी शहादत को समर्पित है.   

वायु सेना को आज तक केवल एक बार ही परमवीर चक्र मिला है और वो मिला है शूरवीर निर्मल जीत सिंह सेखों को. 17 जुलाई 1945 को पंजाब के लुधियाना में इनका जन्म हुआ. इनके पिता जी भी भारतीय वायु सेना में थे. बचपन से ही इनका जहाज़ उड़ाने का सपना था. यही सपना जूनून बना और ये वायु सेना में फाइटर पायलट बन गए. 1971 के युद्ध में उनकी तैनाती श्रीनगर एयर बेस पर थी. पाकिस्तान यहाँ हमला करने के नापाक मंसूबे बना चुका था. पाकिस्तान ने प्लान बनाया की पुंछ के पहाड़ों तक वो लो फ्लाइंग करेंगे और पुंछ से एक दम 16000 फीट पर अपने लड़ाकू जहाजों को उठा लेंगे. उनको पता था पुंछ के बाद ही वो भारतीय वायु सेना के राडार द्वारा दिखाई दी सकते हैं लेकिन तब तक भारतीय वायु सेना को सँभालने का समय नहीं मिलेगा क्योंकि पुंछ से श्रीनगर की हवाई दूरी केवल 6 मिनट की थी. इसी प्लान के साथ उन्होंने 14 दिसंबर 1971 को श्रीनगर एयर बेस पर हमला बोल दिया. भारत के लिए करो या मरो की स्तिथि आ गयी क्योंकि श्रीनगर एयर बेस को हर हाल में बचाना जरूरी था.

गोलाबारी के बीच एक नौजवान सिख किसी तरह बचते बचाते अपने विमान तक आया और उड़ान भरते ही पाकिस्तानी विमानों को निशाना बनाने लगा देखते ही देखते दुश्मन के खेमे में हलचल मच गयी उनका इस बात का इल्म नहीं था की ऐसा भी हो सकता है. सेखों ने दुश्मन के दो विमानों  को तहस नहस कर दिया पर उनकी संख्या ज्यादा थी. सेखों के विमान में आग लग गयी और जब वो पैराशुट से कूदे तो बच नहीं पाए और शहीद हो गए. उनको मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाज़ा गया. दिल्ली के एयर फ़ोर्स म्यूजियम में उनकी प्रतिमा लगी हुई है जहाँ उनका विमान भी दिखाया गया है. लुधियाना शहर में भी उनकी प्रतिमा लगी हुई है.


ऐसे निर्भीक, महावीर और जांबाज़ को हमारा शत शत नमन. जय हिन्द, जय भारत.


Thursday 8 December 2016

रोहतांग दर्रा और ब्यास नदी का उद्गम स्थल

प्रिय मित्रों

सादर नमस्कार !!

आज मैं पुन: उपस्थित हूँ, आपको भारत की एक नई जगह की सैर करवाने के लिए. आज आपको ले कर चलता हूँ, हिमाचल प्रदेश के रोहतांग दर्रे और ब्यास कुंड, जो मनाली से लगभग 51 किलोमीटर की दूरी पर है. महर्षि वेद व्यास जी की तपस्थली कहलाने वाला, रोहतांग, हिमालय पर्वत श्रृंखला के “पीर पंजाल” श्रेणी में आता है, जिसकी ऊंचाई 13058 फीट है., और ये अपने आलौकिक सौन्दर्य के लिए बहुत विख्यात है. यहाँ से पूरे साल ही बर्फ के नज़ारे लिए जा सकते हैं. इसीलिए मनाली से आने वाले पर्यटकों का, विशेषकर गर्मियों में, यहाँ ताँता लगा रहता है. रोहतांग एक तरह से हिमाचल प्रदेश की दो मुख्य घाटियों कुल्लू मनाली और लाहौल स्पिति को आपस में जोड़ता है. लेह से मनाली का रूट भी यहीं से हो कर जाता है, जो किसी स्वर्ग के नज़ारे से कमतर नहीं है. पर ये रूट केवल मई से नवम्बर के बीच ही खुलता है.


अब मैं आपको ब्यास नदी के स्रोत पर ले कर चलता हूँ. ब्यास नदी, रोहतांग में ब्यास कुंड से निकलती है. ऐसा माना जाता है की ब्यास नदी का पृथ्वी पर अवतरण महर्षि वेद व्यास जी की तपस्या का परिणाम था. उन्होंने 12 वर्ष तक यहाँ तपस्या कर इस नदी का अवतरण किया था. ब्यास नदी की कुल लम्बाई 470 किलोमीटर है. यहाँ से निकलने के बाद इसका मिलन सतलुज के साथ, पंजाब के कपूरथला जिले में “हरिके” नामक स्थान पर हो जाता है. अगस्त 2016 में मुझे इन दो नदियों का मिलन देखने का सुअवसर मिला. सतलुज आगे जा कर पंजाब के “फिरोजपुर” से पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है. पाकिस्तान में सतलुज और चेनाब का मिलन हो जाता है और फिर अंत: मिठानकोट नामक स्थान पर ये सभी नदियाँ सिन्धु में मिल जाती हैं.   








Wednesday 30 November 2016

कहानी 20 के नोट पर छपी फ़ोटो की

प्रिय मित्रों

सादर नमस्कार !!!





आज मैं आपको एक अत्यंत रोचक जानकारी दूंगा और इतना ही नहीं उस जगह से भी आपका परिचय करवाऊंगा. आज आपको ले कर चलते है उस स्थान पर, जिसकी फोटो आपके सैकड़ों बार देखी है, जी हाँ, सही सुना, सैकड़ों बार......क्या कहा, कहाँ.....अरे !! बताता हूँ...जी हाँ “बीस रूपए” के नोट के पीछे.

मित्रों, बीस रूपए के नोट के पीछे जो तस्वीर आपने कई बार देखी है उस तस्वीर को खिंचा गया है, अंडमान में पोर्ट ब्लेयर के पास बने “माउंट हैरीयट” नेशनल पार्क से. असल में ये तस्वीर है “नार्थ बे द्वीप” यानि की आइलैंड की. पेड़ों के पत्तों के समूह से दिखाई पड़ता है नीला समुद्री पानी और वहीँ से एक लाइट हाउस भी भी दिखाई पड़ता है जो इस जगह की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा देता है. नीले पानी पर चलते पानी के छोटे जहाज़ और नीला आसमान एक अलग छटा बिखरते दिखाई पड़ते हैं. इसी नैसर्गिक सुन्दरता की वजह से शायद इस जगह को बीस के नोट पर जगह मिली.   
  
1969 में बने इस “माउंट हैरीयट” नेशनल पार्क का नाम एक अंग्रेज अधिकारी की पत्नी के नाम पर रखा गया, जिनकी नियुक्ति यहाँ वर्ष 1862 में हुई थी. माउंट हैरीयट अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की तीसरी सबसे ऊँची जगह है और ये स्थान बेहतरीन वन्य जीवों/पक्षियों से भरा पड़ा है जिनमे तितलियाँ, मगरमच्छ, कछुए और केकड़े प्रमुख हैं. आप जब भी अंडमान जायें तो यहाँ जाना मत भूलियेगा.  


Saturday 26 November 2016

मैग्नेटिक हिल, लेह

प्रिय मित्रों

सादर नमस्कार

आपको याद होगा मैंने 29 मई 2016 को कच्छ के काला डूंगर क्षेत्र में बने मैग्नेटिक फील्ड के बारे में बताया था जहाँ गाडी को न्यूट्रल कर के छोड़ दो तो स्वयं चलने लगती है। 

इस ब्लॉग में मैंने आपको लेह में बने मैग्नेटिक हिल के बारे में भी बताया था, यानि के भारत में दो ऐसी जगहें हैं जहाँ गाडी मैग्नेटिक फील्ड की वजह से खुद ब खुद चलने लगती है। आज आपके साथ लेह के मैग्नेटिक हिल का फ़ोटो शेयर कर रहा हूँ।

काला डूंगर वाला ब्लॉग देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें।

Exploringindiawithrishi.blogspot.in/2016/blog-spot_29.html

Thursday 24 November 2016

मेरी जल्द ही आने वाली पुस्तक "देशभक्ति के पावन तीर्थ"

प्रिय मित्रों

सादर नमस्कार

जल्द ही मेरी अगली पुस्तक आ रही है "देशभक्ति के पावन तीर्थ". ये पुस्तक एक प्रयास है आज की युवा पीढ़ी को हमारे शहीदों के बलिदान और भारत में उनसे जुड़े स्थानों से परिचय करवाने का. इसकी भूमिका को लिखा है कारगिल युद्ध के नायक और परमवीर चक्र से सम्मानित सूबेदार योगेंदर सिंह यादव ने. अगले अपडेट तक जय हिन्द जय भारत.

Thursday 17 November 2016

18 नवम्बर 1962 की भारत चीन युद्ध की वो रात और मेजर शैतान सिंह और साथियों की शहादत

प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार !!!

आज मैं पुन: उपस्थित हूँ, आपको एक ऐसे पुनीत स्थान की जानकारी देने के लिए जो एक “तीर्थ स्थान से कम नहीं है. 18 नवम्बर 1962 की वो रात जिसका जिक्र भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से हमेशा हमेशा के लिए अंकित हो गया, इस गाथा को लिखने वाले का नाम था मेजर शैतान सिंह और इस जगह का नाम है, जम्मू कश्मीर राज्य में लद्दाख के चुशूल सेक्टर में बना “रेजांगला”. लगभग 18,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित चीन से सटी “चुशूल” हमारी अत्यंत महत्वपूर्ण चौकी है. यहाँ हमारी हवाई पट्टी भी भी थी जिसकी रक्षा करना नितांत आवश्यक था.

1962 के युद्ध में चीन को सबसे भारी क्षति यहीं चुशूल क्षेत्र में ही हुई थी, मेजर शैतान सिंह और उनके वीर अहीर सिपाहियों ने चीनियों के छक्के छुड़ा दिए थे। 13 कुमाउ रेजिमेंट के मेजर शैतान सिंह की वीरता के किस्से अत्यंत मशहूर हैं। उनके पेट और बाँहों में गोलियां लग चुकी थी, पर फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपने साथियों का हौसला बढ़ाते रहे. उनको पता था की उनके पास हथियार कम हैं और वो ज्यादा देर तक चीनी सैनिकों को चुनौती नहीं दे पाएंगे। वो चाहते तो पीछे भी हट सकते थे, जिसके बाबत उनको उच्च अधिकारियों से आदेश भी मिल चुके थे, पर फिर भी उन्होंने एक महावीर की तरह दुश्मन का सामना करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने साथी सैनिकों को वापस जाने का विकल्प भी दे दिया लेकिन उनके साथी सैनिक भी कम नहीं थे उन्होंने अपने मेजर साहब का मरते दम तक साथ देने का निर्णय लिया. 

अंत में 124 वीरों के दल में 114 भारत माता की सेवा करते हुए शहीद हो गए, पर चीनी सेना के 1310 को मार गिराया. चीन के लिए ये बहुत गहरी चोट थी. उनको इस असाधारण वीरता का प्रदर्शन करने पर “परमवीर चक्र” से सम्मानित किया गया. उनके अन्य साथियों नायक हुकम चंद, नायक गुलाब सिंह यादव, लांस नायक राम सिंह, सूबेदार रामचन्द्र को वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

28 सितम्बर 2016 की रात जब मैंने चुशूल में अपने साथियों के साथ ITBP के कैंप में रात गुजारी तो रात का तापमान शून्य चला गया था तो सोचिये 18 नवम्बर 1962 को जब शैतान सिंह और उनके साथी सैनिकों का दल जब रात्रि में लड़ा होगा तो मौसम और ठण्ड का क्या हाल रहा होगा। कहा जाता है उस रात यानी की 18 नवम्बर को रात्रि तापमान लगभग शून्य से 25 डिग्री नीचे था और उनके पास समुचित मात्र में गरम कपडे भी उपलब्ध नहीं थे. ये सब सोच कर ही शरीर में कंपकपी छुट गई, मैंने मन ही मन उन सभी शूरवीरों को प्रणाम किया।

सुबह हमने देखा की भारतीय सेना ने मेजर शैतान सिंह को श्रधांजलि देने का एक अनूठा रास्ता खोजा हुआ था। यहाँ उनकी धर्मपत्नी के नाम पर “तारा पोस्ट”, पुत्री के नाम पर “हिना पोस्ट” और पुत्र रोहित के नाम पर “रोहित पोस्ट” बना रखी हैं। ऐसी सच्ची श्रधांजलि मैंने आज तक भारत में कहीं और नहीं देखी।

 मेजर शैतान सिंह जी के पुत्र रोहित आजकल सेना में ब्रिगेडियर के पद पर कार्यरत हैं और अपने पिता और दादा की तरह ही देश की सेवा में लगे हुए हैं। अतिथि गृह से निकल कर हम खुले मैदान की और बड़ने लगे जहाँ एक और भारत की पोस्ट हैं और सामने की और चीनी क्षेत्र साफ़ दिखाई देता है। आपके बायं हाथ पर चीन और दायं हाथ पर भारत क्या नज़ारा मिलता है देखने को.

करीब 20 किलोमीटर चलने के बाद आख़िरकार वो महान तीर्थ आ ही जाता है जहाँ रेजांगला के 114 शहीदों का स्मारक बना हुआ है। उन सभी 114 सैनिकों का अंतिम संस्कार भी इसी पुण्य भूमि पर हुआ था। युद्ध स्थल से 114 पत्थर ला कर यहाँ रखें गए हैं ताकि उनकी यादों को संजो कर रखा जा सके। 13 कुमाऊ के इन वीरों का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है। इन सभी शहीदों का कर्ज़ हम सभी भारतवासी कभी नहीं चुका सकते. जोधपुर के रहने वाले मेजर शैतान सिंह के नाम पर उत्तर पश्चिम रेलवे ने जोधपुर जैसलमेर खंड पर एक स्टेशन का नाम भी रखा है “शैतान सिंह नगर”.

इस स्मारक पर नमन करते समय आँखें नम हो गयी और मन अगाध श्रद्धा से भर उठा। अभी हाल ही में नेशनल बुक ट्रस्ट ने मेजर शैतान सिंह पर वीर गाथा सीरीज के तहत बच्चों के लिए कॉमिक्स भी निकाली है ताकि आगे आने वाली पीढ़िया भी ऐसे परम वीरों के बारे में जान सके और उनको सम्मान दे सके। ये बहुत ही स्वागत योग्य कदम है।

कल 18 नवम्बर है तो क्यूँ न इन वीरों को सच्चे मन से याद कर इनको श्रधांजलि अर्पित करें.
रेजांगला युद्ध स्मारक



114 शहीदों  की याद में युद्ध स्थल से लाए गए 114 पत्थर 


चुशूल में ही बना गोरखा रेजिमेंट का स्मारक 

एक तरफ चीन तो एक तरफ भारत





जय हिन्द, जय भारत. 

Sunday 13 November 2016

गुरु नानक देव जी के प्रकाश उत्सव पर गुरुद्वारा कोट लखपत, कच्छ के दर्शन

प्रिय मित्रों

सादर नमस्कार!!!

आज गुरु नानक देव जी के प्रकाश उत्सव पर आपको उनसे जुड़े एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान पर ले कर चलता हूँ, और ये है,  गुजरात के सर क्रीक के पास बना कोट लखपत क्षेत्र।  एक ज़माने में यहाँ एक बहुत बड़ा बंदरगाह था जहाँ से कई देशों के लिए माल और जहाज़ जाते थे। 1819 तक सिंधु नदी इसी किले के मुहाने तक आती थी। 1819 तक खुशहाल इस क्षेत्र को प्राकृतिक आपदा ने वीरान कर दिया और सिंधु नदी को भी चालीस मील दूर धकेल दिया। पाकिस्तानी क्षेत्र का कराची प्रान्त यहाँ से चंद किलोमीटर बाद ही शुरू हो जाता है। अत्यन्त साधारण दिखाई देने वाले इस गुरूद्वारे के कण कण में आप गुरु नानक देव जी की पवित्र उपस्थिति को महसूस कर सकते हैं। उनके द्वारा यहाँ की दीवारों पर लिखे गए उपदेश आज भी सहेज कर रखे गए हैं जो आसानी से देखे जा सकते हैं।

गुरु नानक देव जी मक्का जाते हुए चालीस दिनों तक इसी गुरूद्वारे में रुके थे। इसके बाद एक बार पुनः वो यहाँ पधारे थे। गुरुद्वारा नानक दरबार में आज भी गुरु नानक जी के खड़ाऊ, सोटा और झूला रखा हुआ है। हिन्दू ही नहीं अपितु मुस्लमान भी उनको अपना गुरु मानते थे। हम सब अत्यन्त सौभाग्यशाली हैं, जिन्हें गुरु नानक देव जी जैसे संतों का ओजस्वी मार्गदर्शन मिला है।

उनके प्रकाश उत्सव पर उनको ह्रदय की गहराईयों से नमन और आप सभी को लख लख बधाइयाँ।

Tuesday 8 November 2016

दक्षिण भारत के कश्मीर- केरल के हिल स्टेशन "मुन्नार" की सैर

प्रिय मित्रों
सादर नमस्कार !!!
आज मैं पुन: उपस्थित हूँ, आपको एक नई जगह की सैर करवाने, ये एक ऐसी जगह है जिसे अपनी सुन्दरता की वजह से दक्षिण भारत का कश्मीर कहा जाता है, और इस जगह का नाम है “मुन्नार”.
मुन्नार केरल के इडुकी ज़िले में 1600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक हिल स्टेशन है, जो अपनी विविधता के दम पर विश्व भर में अपनी पहचान बना रहा है. मुन्नार की प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है, जो किसी भी प्रकृति प्रेमी को मन्त्र मुग्ध करने में सक्षम है. कोचीन शहर से मात्र 140 किलोमीटर की दूरी पर बने इस हिल स्टेशन की छटा देखते ही बनती है. मुन्नार का शाब्दिक अर्थ है जहाँ तीन नदियाँ मिलती हैं और यहाँ मिलने वाली तीन नदियों का नाम है मुदीरापुज्ह्हा, नल्लातन्नी और कुंडली. यहाँ मिलने वाले मसाले बहुत प्रसिद्द हैं, काजू भी अच्छे दाम पर ख़रीदे जा सकते हैं. उत्तर भारतीय व्यंजनों का स्वाद हमने टी काउंटी एस्टेट होटल रोड पर बने एक मारवाड़ी भोजनालय में लिया, जिसका उत्तर भारतीय खाना वाकई बहुत स्वादिष्ट था.
यहाँ टी गार्डन यानी की चाय के बागानों की भरमार है, टाटा का टी म्यूजियम देखने लायक है. इसके अलावा एराविकुलम राष्‍ट्रीय उद्यान, मुन्‍नार के मुख्‍य आकर्षण स्‍थलों में से एक है, इसे UNESCO विश्व विरासत यानी की वर्ल्ड हेरिटेज साईट का ख़िताब मिला हुआ है. पश्चिम घाट के पहाड़ों पर बना ये पार्क केरल का पहला राष्ट्रिय पार्क है. इसमें रहना वाली एक जंगली बकरी बहुत प्रसिद्द है जो की तमिलनाडू की राज्य पशु भी है, इसका अधिकारिक नाम है “नीलगिरी तार” इस पर डाक विभाग ने स्टाम्प भी जारी किया हुआ है.
दक्षिण भारत की सबसे ऊंची चोटी, अनामुडी चोटी इस नेशनल पार्क के अंदर ही स्थित है, जिसकी ऊंचाई 2695 मीटर है। मुन्‍नार से 13 किमी. की दूरी पर स्थित मट्टुपट्टी बांध देखने लायक स्थान है. चारों तरफ पहाड़ों से घिरी मुदीरापुज्ह्हा नदी में स्पीड बोट पर जा कर मजा ही आ गया. यहाँ केरल टूरिज्म ने “फ़िश पेडीक्योर” की व्यवस्था की हुई है जो मात्र 100 रूपए में उपलब्ध है, ये पेडीक्योर यहाँ विशेष तौर पर लाई गयी “डाक्टर मछली” या “कांगल मछली” करती है, जो आकार में बहुत छोटी है और सीधे आपके पैरों पर लिपट कर उसकी मैल को खाने लगती है और पैरों को आनंद का एक नया अनुभव प्रदान करती हैं. हमने भी इसका आनंद उठाया और यकीन मानिए ये यादगार लम्हा साबित हुआ. पल्‍लीवसल और चिन्‍नाकनाल ( जो पॉवर हाउस वॉटरफॉल्‍स के नाम से भी जाने जाते हैं) जिनको देख कर आनंद आ गया.
टॉप स्‍टेशन, मुन्‍नार का सबसे ऊंचा प्‍वाइंट है जहां से मनोरम दृश्‍य देखने को मिलते हैं, वापसी में थेकड़ी आते हुए रास्ता बहुत ही मनोरम है. बल खाती पतली काली सडकें प्रकृति के सौन्दर्य में चार चाँद लगा देती हैं. यहाँ रास्ते में आपको बहुत से स्पाइस गार्डन भी मिलते हैं, जिन्हें देख कर बहुत ज्ञान मिला. मुन्नार देखने के लिए आपको किसी ख़ास मौसम का इंतज़ार नहीं करना पड़ता आप वर्ष में किसी भी महीने में यहाँ आ सकते हैं. तो कब आ रहे हैं आप......मुन्नार!!!!