Tuesday 18 April 2017

विश्व धरोहर दिवस (World Heritage Day) पर सैर महाबलीपुरम की

प्रिय मित्रों,
सादर नमस्कार !!
आज यानि कि 18 अप्रैल, “विश्व धरोहर दिवस” यानि की वर्ल्ड हेरिटेज डे है, आज का दिन ये सन्देश देता है की हम अपने खूबसूरत एवं ऐतिहासिक स्थानों को सहेज कर रखें ताकि आने वाली पीढियां भी इन अमूल्य धरोहरों से रूबरू हो सकें. आज ही के दिन महान क्रन्तिकारी तात्या टोपे को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था, इस महान हुतात्मा तात्या टोपे को शत शत नमन कर आगे की यात्रा शुरू करते हैं.
विश्व में लगभग 1052 विश्व विरासत स्थल हैं, जिनमे इटली, सबसे ज्यादा 51 जगहों के साथ पहले स्थान पर है, वहीँ अपना प्यारा भारत इस सूची में 35 स्थानों के साथ विश्व में छठे स्थान पर आता है. आज मैं आपको भारत वर्ष के इन्ही 35 में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान “महाबलीपुरम” की सैर पर ले कर चल रहा हूँ. वर्ष 1984 में इसको UNESCO ने विश्व विरासत का दर्जा दे दिया.  
आजकल महाबलीपुरम को “ममल्लपुरम” भी कहा जाता है.  ये स्थान तमिलनाडू के कांचीपुरम ज़िले में है जो चेन्नई से मात्र 55 किलोमीटर की दूरी पर बंगाल कि खाड़ी में स्थित है । यह स्थान अपने पौराणिक मंदिरों एवं विशाल समुद्रतट के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। देसी विदेशी पर्यटकों का यहाँ सदा ही ताँता लगा रहता है. सातवीं शताब्दी में इस शहर को पल्लव राजाओं ने अपनी राजधानी बनाया था, उन्होंने ही यहाँ इतने खूबसूरत, शिल्प कला से संपन्न मंदिरों का निर्माण करवाया. इसके साथ साथ उन्होंने यहाँ बंदरगाह का भी निर्माण करवाया. तमिल में इस स्थान को कडलमला, जिसका शाब्दिक अर्थ है समुद्र पहाड़, कहा जाता था.














सबसे पहले हमने “पंचरथ” देखा जिसे पांच पांडवों के नाम से भी जाना जाता है, हालाँकि यहाँ पांडव कभी भी आए नहीं थे. ये स्थान अपनी नक्काशी एवं कलात्मक शैली के लिए अत्यंत प्रसिद्द है, यहाँ कुल पांच मंदिर हैं जो की माँ दुर्गा, भोलेनाथ, ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र को समर्पित हैं इसके अलावा यहाँ शेर, हाथी और बैल की भी प्रतिमाएं हैं जो श्याद भगवानों के वाहन के तौर पर यहाँ दर्शाए गए हैं. इसकी सबसे बड़ी विशेषता है की इन सभी को यह एक ही पत्थर से काटकर बनाया गया है. हालाँकि, इस स्थान का निर्माण कार्य पल्लव और चालुक्य राजाओं में युद्ध छिड जाने से अधूरा ही रह गया.

एक और जगह यहाँ बहुत प्रसिद्द है इसको भी चट्टानों को काट कर बनाया गया है, इसमें पृथ्वी पर गंगा के अवतरण को दिखाया गया है, राजा भगीरथी तपस्या कर रहे हैं और स्वर्ग से माँ गंगा का अवतरण हो रहा है. इसके अलावा कृष्ण जी को समर्पित गुफाएं भी हैं और यहाँ का शोर टेम्पल यानि की तटीय मंदिर विश्व के सबसे पुरातन मंदिरों में से है. एक ज़माने में ये मंदिरों का समूह था जिनमे से कुछ सुनामी आने के बाद समुद्र में समा चुके हैं कभी कभार जब समुद्र में पानी कम हो जाता है तो उनका ऊपरी हिस्सा दिखाई दे जाता है. कुल मिला कर “महाबलीपुरम” देखने लायक स्थान है जहाँ न केवल आपको इतिहास से रूबरू होने का मौका मिलता है अपितु अपने देश की समृद्ध संस्कृति पर गर्व भी होता है. तभी तो कहा जाता है मेरा भारत महान !!!

Wednesday 12 April 2017

13 अप्रैल : जालियांवाला बाग के शहीदों को नमन

प्रिय मित्रों
सादर नमस्कार !!

बैसाखी के पावन पर्व पर आप सभी को शुभकामनाएँ. आज का दिन बहुत ऐतिहासिक है क्यूंकि आज ही के दिन अमृतसर के जालियांवाला बाग में निहत्थे और मासूम भारतीयों को दमनकारी अंग्रेजी सरकार ने गोलियों से भून दिया था. भारत का इतिहास जालियांवाला बाग के बारे में लिखे बिना सदैव अधुरा ही रहेगा. भारत के स्वतंत्रा आन्दोलन में इतना बड़ा और जघन्य हत्याकांड कभी भी कहीं भी अंग्रेज सरकार ने नहीं किया. इस बर्बर्पुरण कृत्य के लिए हिंदुस्तान कभी भी अंग्रेजी हुकूमत को माफ़ नहीं कर सकता. इस कांड की पीड़ा को आज भी हम महसूस करते हैं. यहाँ जा कर हर हिन्दुस्तानी की आँख नम हो जाती है और मन में क्रोध की अग्नि प्रव्ज्वालित हो जाती है जब हम दीवारों पर बने गोलियों के निशानों को देखते हैं. ऐसा लगता है गोलियों के निशान दीवारों पर नहीं अपितु किसी ने हमारे दिल की दीवारों को कुरेद कर बना दिए हैं. हमारे स्वतंत्रा संग्राम का ये महानतम प्रतीक एक महातीर्थ है जहाँ अगर जीवन में एक बार जा कर सीस नहीं नवाया तो हिंदुस्तान की पावन धरती पर जन्म लेना ही व्यर्थ है.






बचपन से ही हम सभी जालियांवाला बाग की गाथाएं सुनते और पढ़ते चले आ रहे हैं, कैसे निहत्थे हिन्दुस्तानियों पर अंग्रेज अफसर डायर ने गोलियों की बोछार कर दी थी और कैसे एक मैदान चंद मिनटों में ही खून से सने स्थान और लाशों के ढेर में परिवर्तित हो गया था. जालियावाला कांड को समझने से पहले हमको उस दौरान चल रही राजनीतिक घटनों को जानना होगा जिनकी वजह से अंग्रेज इतने हताश हो गए की उनको इसके अलावा कोई रास्ता सुझा ही नहीं.

कहा जाता है की पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओड वायर ने ही इस नरसंहार का ताना बाना जरनल डायर के साथ बुना था. वो किसी भी तरीके से पंजाब के लोगों को ऐसा सबक सिखाना चाहते थे जो उनको गहरी चोट पहुंचा दी और हुआ भी ऐसा था.

ओर फिर 13 अप्रैल 1919 का दिन इस दुर्दांत घटना को अंजाम देने के लिए चुना गया. सिख पंथ की स्थापना इसी दिन हुई थी और पंजाब का प्रमुख त्यौहार बैसाखी भी इसी दिन मनाया जाता है. पंजाब के लोगों के घावों पर नमक छिड़कने का इससे अच्छा तरीका डायर को सुझा ही नहीं. जरनल डायर ने इस कुकृत्य को अंजाम देने के लिए फौज का इस्तेमाल करने का फैसला लिया अमृतसर शहर में फौज ने फ्लैग मार्च किया उन्हें पता था की आज जलिय्यांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए कई सारे लोग इकठ्ठा हो रहे हैं सभा करीब शाम 4.30 पर शुरू हुई, और करीब एक घंटे के बाद डायर अपनी फौज के साथ आ धमका वो तो शुक्र है के जालियांवाला बाग का मुख्य प्रवेश द्वार छोटा है जिसमें से टैंक अन्दर नहीं जा सका वर्ना डायर तो इसकी तैयारी कर के आया था. 65 गोरखा सिपाहियों और 25 बलूच सिपाहियों के साथ डायर ने निहत्थे लोगों, जिनमे आदमी, औरतें और छोटे बच्चे भी शामिल थे उनपर 303 ली इनफिल्ड बंदूकों के साथ गोलियां बरसानी शुरू कर दी. लोगों में भगदड़ मच गयी. कहते हैं डायर और उसके सिपाही दस मिनट तक लगातार गोलियां चलते रहे और कुल 1650 राउंड फायर किये. कहा जाता है की इस गोलीबारी में कुल 388 लोग शहीद हो गए और 200 लोग घायल हो गए. गैर सरकारी आँकड़ों के अनुसार इस नरसंहार में 1000 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए। इस हमले से बचने के लिए भगदड़ मच गयी और कई लोग तो भगदड़ में ही मारे गए, कुछ लोग जान बचने के लिए वहां बने कुँए में कूद गए, बाद में इस कुँए से १२० शवों को निकाला गया. जालियांवाला बाग की दीवारों पर बने गोलियों के निशाँ आज भी उन जख्मों को हरा कर देते हैं.


जालियांवाला बाग शहीदों की याद सदैव हमारे दिलों में रहेगी उनको शत शत नमन. 

Saturday 8 April 2017

8 अप्रैल 1857 और 1929 : नमन भगत सिंह और मंगल पाण्डेय को

प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार!!

आज यानि की 8 अप्रैल देश के इतिहास में ऐसी तारीख है जिसे भुलाना नामुमकिन है, क्यूंकि आज से 88 वर्ष पूर्व 8 अप्रैल 1929 के दिन ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बहरी अंग्रेजी सरकार को देश की आवाज़ सुनवाने के लिए केन्द्रीय विधान सभा यानि की आज के संसद भवन में बम धमाके किये थे और “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” द्वारा छापे गए पर्चे वितरित किये गए थे. इन्कलाब जिंदाबाद के नारों से पूरा सदन गूँज उठा था. इस ऐतिहासिक घटना से तो लगभग हम सभी परिचित हैं. पर आज मैं आपको कुछ हट कर बताना चाहता हूँ, और ये सारी घटनाएं 8 अप्रैल की प्रमुख घटना से जुडी हुई हैं.

इस पूरी घटना को अंजाम देने का विचार भगत सिंह जी के दिमाग की उपज था. उन्होंने एक फ़्रांसिसी क्रन्तिकारी के बारे में पढ़ा था, जिसने अपनी बहरी सरकार को अपनी आवाज़ सुनाने के लिए ऐसा ही कुछ कारनामा किया था. पर यहाँ ये बहुत स्पष्ट था के बम से किसी को किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं पहुंचाई जाएगी, केवल और केवल अपने विचार और अपना पक्ष सरकार तक पहुँच जाये बस यही एकमात्र लक्ष्य था.
तय हुआ की केन्द्रीय विधान सभा में बम फोड़ने सुखदेव और बटुकेश्वर दत्त जायेंगे और फिर भगत सिंह द्वारा बहुत दबाव बनाए जाने पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को भेजना तय हुआ. पुरानी दिल्ली के चावडी बाज़ार के सीता राम बाज़ार में एक अन्य क्रन्तिकारी जयदेव कपूर और शिव वर्मा ने भगत सिंह के रहने की व्यवस्था करवाई. ये जगह आज के हौज़ काज़ी थाने से मात्र 100 गज की दूरी पर ही है.

जयदेव कपूर ने ही अथक प्रयासों से भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के लिए केन्द्रीय विधान सभा में प्रवेश के लिए पास की व्यवस्था करवाई. क्रांतिकारियों ने सोचा की जब बम फटेंगे तो जनता ये जानना चाहेगी की भगत सिंह है कौन?? कैसा दिखता है और इनकी  विचारधारा क्या है ??? इसीलिए तय हुआ की भगत सिंह की एक अच्छी सी तस्वीर खिंचवाई जाए इसीलिए 3 अप्रैल 1929 को कश्मीरी गेट इलाके में रामनाथ फोटोग्राफर के यहाँ भगत सिंह ने “हैट” पहन कर ये फोटो खिंचवाया जो बाद में इतिहास बन गया. ये स्टूडियो एक ज़माने में दिल्ली का सबसे विख्यात स्टूडियो था क्यूंकि बढ़िया तस्वीरें निकालने की व्यवस्था यहीं उपलब्ध थी. ये स्टूडियो कुदेसिया बाग के बिलकुल नजदीक है और कश्मीरी गेट मेट्रो के गेट नंबर 4 से चंद क़दमों की दूरी पर ही है. दुर्भाग्यवश दो वर्ष पूर्व ये स्टूडियो बंद हो गया है, पर भगत सिंह के ऐतिहासिक चित्र की वजह से इस स्टूडियो का नाम इतिहास के पन्नों में सदा सदा के लिए दर्ज हो चूका है.




आख़िरकार 8 अप्रैल का दिन आ गया, सुबह पहले सुखदेव ने भगत सिंह की मुलाकात दुर्गा भाभी, भगवती चरण वोहरा और सुशीला दीदी से आज के कश्मीरी गेट मेट्रो के पास बने कुदेसिया बाग में करवाई जहाँ सुशीला दीदी ने अपने खून से भगत सिंह के माथे पर तिलक किया और अपना आशीर्वाद दिया. इसके बाद भगत सिंह अपने काम को अंजाम देने निकल पड़े और दोपहर के 12.30 बजे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बारी बारी से तीन बम खाली स्थान पर फेंके ताकि किसी को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे. उन्होंने इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए हवा में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के पर्चे हवा में उडाए जिन पर ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ बातें लिखीं गयी थीं और इसके बाद इन दोनों ने अपनी गिरफ्तारी दे दी. 
फिर वैसा ही हुआ जैसा की क्रांतिकारियों ने सोचा था, 8 अप्रैल के बाद “भगत” देश के हर युवा के आदर्श बन गए, लाखों दिलों पर राज़ करने लगे. HSRA के लोगों ने इस फोटो को कई मीडिया वालों तक पहुँचाया पर सरकार के डर से मीडिया वाले इसे छापने से बचते रहे और इंतज़ार करते रहे की पहले कौन छापेगा. अतंत: 12 अप्रैल 1929 को लाहौर के अखबार वन्दे मातरम ने इस तस्वीर को प्रकाशित किया फिर उसके बाद तो ये तस्वीर देश के हर कोने तक पहुँच गयी.
उस समय पंडित नेहरु भी भगत सिंह की प्रसिद्धि से आश्चर्य चकित थे. गली, मोहल्लों और हर चौक पर उनका हैट लगा फोटो प्रमुखता से लगाया जाने लगा. भगत सिंह ने ये हैट लाहौर से उस समय ख़रीदा था जब वो सांडर्स हत्याकांड के बाद लाहौर से निकल रहे थे. आज उसी 8 अप्रैल को शहीद ए आजम भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को याद करते  हुए उन्हें भावभीनी श्रधान्जली. देश सदैव आपका ऋणी रहेगा. आपको शत शत नमन.
दुसरा आज ही के दिन 1857 की क्रांति के अगुआ मंगल पाण्डेय को अंग्रेजी सरकार ने फांसी पर चड़ा दिया था. उनको भी हमारा नमन. अगले ब्लॉग में उनको दी गयी फांसी के बारे में विस्तार से बताऊंगा.
“मेरे ज़ज्बातों से इस कदर वाकिफ़ है मेरी कलम, मैं इश्क़ भी लिखना चाहूं तो इन्कलाब लिख जाता है” 
साभार  Bhagat Singh: The Eternal Rebel by Malwinder Jit Singh Waraich
A revolutionary history of Interwar India by Kama Maclean
देशभक्ति के पावन तीर्थ लेखक ऋषि राज