Saturday 31 July 2021

अमर शहीद क्रान्तिकारी उधम सिंह की पुण्य तिथि पर नमन

 मित्रों आज भारत माता के एक ऐसे महान सपूत की पुण्यतिथि है जिसने अंग्रेज़ो से जलियांवाला बाग़ हत्या कांड का बदला लेना अपने जीवन का एक मात्र लक्ष्य बना लिया और इस कांड के रचनाकार अंग्रेज़ अफसर माइकल ओड वायर की हत्या कर भारत वासियों को गौरान्वित किया। भारत माता के ऐसे सिपाही का नाम था उधम सिंह।


आज ही के दिन यानी की 31 जुलाई 1940 को उनको अंग्रेजी हुकूमत ने फाँसी पर चढ़ा दिया। पिछले महीने अपने लंदन प्रवास के दौरान मैंने ये तय कर रखा था की मुझे उधम सिंह से जुड़े दो महत्वपूर्ण स्थानों पर अवश्य जाना है और उस पावन स्थान पर अवश्य नमन करना है। पहला स्थान था कॉक्सटन हॉल जहां उधम सिंह ने जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के मुख्य सूत्रधार माइकल ऑड वायर को गोली मारी थी और दूसरा था पैंटोनविल जेल जहां उधम सिंह को फाँसी पर चढ़ाया गया था। आज उनकी पुण्यतिथि पर आप भी इन दोनों स्थानों के दर्शन करवा रहा हूँ।

उधम सिंह जी का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले में हुआ पर उनके माता पिता जी का देहांत बचपन में ही हो गया था उनकी परवरिश अमृतसर के पुतलीघर में स्तिथ अनाथ आश्रम में हुई। उनकी शिक्षा दीक्षा भी यहीं हुई।

जलियांवाला कांड के वो प्रत्यक्ष दर्शी बने और इसी वजह से दिन रात उनके दिलो दिमाग पर जलियांवाला बाग ही छाया रहता, उन्होंने प्रण ले लिया था के किसी तरह से डायर की हत्या कर के पंजाब की और हिंदुस्तान की अस्मिता पर लगे दाग को हमेशा के लिए मिटाना है। उन्होंने इसी को अपने जीवन का मकसद बना लिया। उधम सिंह कौमी एकता के बड़े पक्षधर थे इसीलिए उन्होंने अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आज़ाद भी रख लिया।

अमेरिका में उनका जाना हुआ तो वो ग़दर पार्टी के संपर्क में आ गए और भगत सिंह के कहने पर वहां से अपने साथ 25 क्रांतिकारियों और बहुत से हथियार ले कर के आए ताकि भारत में चल रही क्रांति को गति प्रदान की जा सके। परन्तु, किसी तरह अंग्रेज़ों को इसकी भनक लग गयी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।





कुछ वर्ष बाद,जेल से छूटने के बाद 1934 में अपना लक्ष्य पूरा करने लन्दन पहुँच गए। वहां अपना मकसद पूरा करने के लिए दिन रात लगे रहते इस काम को अंजाम देने के लिए उन्होंने एक पिस्तौल खरीदी और छह कारतूस भी खरीद लिए और इस काम को अंजाम देने के लिए माकूल समय का इंतज़ार करने लगे अन्त: जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के *काक्सटन हालमें जैसे ही माइकल ओड वायर आया तो उधन सिंह जिन्होंने अपनी पिस्तौल एक मोटी किताब को फाड़ कर उसमे छुपा रखी थी, निकाल कर डायर की छाती में उतार दिया।


इस तरह हजारों बेक़सूर भारतीयों की हत्या का बदला ले लिया, अंग्रेज़ो की धरती पर अंग्रेज़ी अफसर को मार कर उन्होंने सिद्ध कर दिया की हिंदुस्तानीं क्रन्तिकारी के जज़्बे में किसी प्रकार की कमी नहीं है। पूरी अंग्रेज़ सरकार हिल गयी। अंत: उनको 31 जुलाई 1940 को जेल- पेंटोन्विल जेल में ही फाँसी पर टांग दिया गया।

इस शूरवीर की पुण्यतिथि पर ऋणी राष्ट्र की ओर से शत शत नमन।