Sunday 29 May 2016

कच्छ का रण - काला डूंगर का चुम्बकीय क्षेत्र

चुम्बकीये क्षेत्र को दर्शाता बोर्ड
मित्रों, नमस्कार!!!

आज मै आपको कच्छ के काला डूंगर क्षेत्र में ले कर चलता हूँ जो कच्छ के रण क्षेत्र का सबसे ऊँचा स्थान है. इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 462 मीटर है और ये भुज से करीब 97 किलोमीटर की दूरी पर है.  यहाँ रास्ते में एक चुम्बकीय क्षेत्र है जहाँ गाडी को न्यूट्रल कर के छोड़ दो तो अपने आप चलने लगती है. पहले तो हमें यकीन ही नहीं हुआ पर जब स्वयं कर के देखा तो अचंभित होना पड़ गया. 

दत्तात्रेय मंदिर जाते हुए रास्ते में ये स्थान पड़ता है. हमारी गाडी को सुरक्षा अधिकारीयों ने रोक दिया क्योंकि हमारे ठीक आगे आसाम के राज्यपाल श्री पी बी आचार्य चुम्बकीये क्षेत्र का जायज़ा ले रहे थे वो भी गाडी के साथ. पहले तो हमने भी सोचा की गाडी सिर्फ ढलान पर चलती होगी, पर हैरानी तो तब हुई जब गाडी थोड़ी चढाई पर भी अपने आप चल रही थी.

भारत में ये ऐसा दूसरा स्थान है, पहला है लेह में जो मैग्नेटिक हिल कहलाता है और ये लेह से कारगिल जाते  हुए आता है. ये अपने आप में किसी अजूबे से कम नहीं है.

कहते हैं दत्तात्रेय मंदिर 400 साल पुराना है. यहाँ चावलों का प्रशाद तैयार किया जाता है जो यहाँ के सियारों (jackal) को खिलाया जाता है.यहाँ दत्तात्रेय मंदिर में ईश्वर को नमन किया, श्री आचार्य से मुलाकात की और वहीँ से इंडिया ब्रिज को देखा जो की पाकिस्तानी सीमा तक जाने का अंतिम स्थान है. इस ब्रिज से आगे जाने की इजाज़त आम नागरिको को नहीं है केवल BSF के सैनिक ही जा सकते हैं. आप जब भी कच्छ का रण जाए तो यहाँ अवश्य पधारें. 

चुम्बकीय क्षेत्र 

हमारे दल के सदस्य परमजीत सिंह, तरुण जी और गजराज सिंह 

यहाँ डागर भाई भी फोटो में सम्लित हो गए

400 वर्ष पुराना दत्तात्रेय मंदिर 

दत्तात्रेय मंदिर से दिखता कच्छ का विहंगम दृश्य

आसाम के राज्यपाल श्री आचार्य के साथ







Thursday 26 May 2016

होगेनक्कल फाल्स तमिलनाडु

मित्रों इस बार तिरुपति से आते हुए हमने तमिलनाडु के सबसे प्रसिद्द वाटर फॉल यानी की होगेनक्कल जाने का निर्णय लिया। होगेनक्कल शब्द का निर्माण कन्नड़ के दो शब्दों को मिला कर हुआ है और वो हैं होगे और कल। होगे का अर्थ है धुआँ और कल का अर्थ है चट्टान। यानी चट्टान से उठता धुआँ। होगेनक्कल तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमा पर है। इस झरने में तमिलनाडु और कर्नाटक दोनों तरफ से प्रवेश कर सकते हैं।

कावेरी नदी पर बना ये झरना अपनी सुंदरता और विराट स्वरुप के लिए जाना जाता है। बारिशों में तो यहाँ करीब 52 झरने बन जाते हैं जो नियाग्रा फॉल को भी पीछे छोड़ देते हैं। तिरुपति से चित्तूर, वेल्लोर और धर्मापुरी होते हुए करीब छे घंटों में हम होगेनक्कल पहुंचे। बारिशों का मौसम न होने की वजह से बहुत सुन्दर दृश्य तो नहीं मिला परंतु जो भी मिला वो भी अलौकिक और बिलकुल भिन्न था।

बांस से बनी नौका में बैठ कर नौकायान का आनंद जीवन में पहली बार उठाया। पहले चरण में नौका से एक छोटे टापू पर गए और फिर वहां से नाविक ने नौका को कंधे पर उठाया और अन्य स्थान पर ले गया जहाँ से एक अलग नज़ारे ने समां बांध दिया।

एक छोर से लोग तमिलनाडु से प्रवेश करते हैं और दूसरे छोर पर कर्नाटक से आने वाले। दोनों प्रदेशों के नाविकों की वर्दी भी अलग अलग है। नौकायान करने के बाद हम लोगों ने वहां फॉल के नीचे स्नान भी किया। स्थानीय लोग तेल की बोतल ले कर घुमते दिखाई देते हैं जो नहाने से पहले शरीर पर मसाज कराने का आग्रह करते हैं।

कुल मिला कर देखने योग्य स्थान है।

Sunday 22 May 2016

मेरा ब्लॉग परिचय

भारत दर्शन के नाम पर बचपन से माता पिता जी साथ हरिद्वार और वैष्णो देवी जाने का मौका मिलता रहा, और जब 17 साल की उम्र में रेलवे के वोकेशनल कोर्स (वीसीआरसी) में चयन हो गया तो पहली बार दिल्ली से अकेले निकलने का अवसर मिला तो सबसे पहले अपने मित्र विशाल के गृह नगर आगरा जाने का अवसर प्राप्त हुआ और उसके बाद तो जैसे ईश्वर ने मेरे पैरों में चक्र लगा दिया. 1993 में शुरू हुआ ये सफ़र आज तक अविरल रूप से धारा प्रवाह चल रहा है. 

भारत वर्ष के 36 में से 31 राज्यों में जाना किसी सौभाग्य से कम नहीं है. इस बात को सम्पूर्ण विश्व जानता है  की भारत वर्ष की सांस्कृतिक विरासत अनूठी है जहाँ हर राज्य की एक अलग पहचान है. इन्ही राज्यों और अनूठे स्थानों को घुमने के लिए ही मैं निकलता रहता हूँ. उत्तर में लेह लद्दाख, दक्षिण में कन्याकुमारी, पूरब में अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम में कच्छ का रण देखने के बाद इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता की विश्व में भारत जैसा कोई दूसरा देश भी है. 

भाग्यशाली हूँ मैं, जो इस पावन धरा पर मेरा जन्म हुआ,, भारत माँ की गोद में खेलकर जीवन मेरा धन्य हुआ, काश ! कभी चुका पाऊं क़र्ज़ इस धरा का रात दिन ध्यान रहता इसी का.