Monday 31 October 2016

दर्शन पंढरपुर के विट्ठल जी महाराज (विष्णु भगवान ) के

प्रिय मित्रों
सादर नमस्कार !!!
आज मैं पुन: उपस्थित हूँ, आपको एक नई जगह की सैर करवाने. आज आपको ले कर चल हूँ विष्णु भगवान जी को समर्पित कृष्ण जी का एक मशहूर और दिव्य मंदिर जो की पंढरपुर, महाराष्ट्र में है. भारत वर्ष में विष्णु जी के प्रमुख मंदिरों में इसकी गणना होती है.
महाराष्ट्र के शोलापुर ज़िले में भीमा नदी (इसे अपने चन्द्राकर की वजह से यहाँ चंद्रभागा भी पुकारा जाता है) के तट बने इस मंदिर में कृष्ण जी को विठोबा, विट्ठल और पंढरीनाथ के नाम से भी पुकारा जाता है. ये भी कहा जाता है के पंढरपुर का नाम एक पुंडलिक के नाम के बाबा पर पड़ा जो “हरि” यानि विष्णु जी के अनन्य भक्त थे और उन्हें आत्मज्ञान यहीं प्राप्त हुआ था.
13वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी के बीच यहाँ कई सारे संतो का आना जाना रहा और अपनी भक्ति और रचनाओं से वो बहुत प्रसिद्द भी हुए हैं जिनमें सन्त नामदेव, सन्त ज्ञानेश्वर, सन्त तुकाराम प्रमुख हैं. अपने धार्मिक महत्व की वजह से पंढरपुर को महाराष्ट्र की आध्यात्मिक राजधानी भी कहा जाता है. आषाढ, यानि की जून- जुलाई में यहाँ विशेष यात्रा का आयोजन होता है जिसमे भारत वर्ष से लाखों श्रधालु आते हैं और विट्ठल से आशीर्वाद पाते हैं.
मंदिर परिसर में कुल छ: प्रवेश द्वार हैं, पूर्वी प्रवेश द्वार को “नामदेव द्वार” से जाना जाता है. यहाँ विठोबा के अलावा माता रुक्मणि जी को भी पूजा जाता है, उनकी भी यहाँ मूर्ति स्थापित है. विष्णु जी को तुलसी अत्यंत प्रिय है जिसकी वजह से यहाँ विष्णु जी को तुलसी की माला चढाई जाती है. पंढरपुर के रेलवे स्टेशन की इमारत पर पंढरीनाथ की बिलकुल वैसी मूर्ति लगी है जैसी यहाँ के मुख्य मंदिर में स्थापित है. दिल्ली से यहाँ पहुँचने के लिए पुणे से पहले एक स्टेशन पड़ता है “दौंड” यहाँ से पंढरपुर की दूरी मात्र 140 किलोमीटर के आसपास है.
“मथुरा का श्याम, वही अयोध्या का राम
पंढरी में हुआ विट्ठल यही नाम,
युगों युगों से खड़ा है भक्त प्रेम पाने हेतु
इसीलिए तीर्थ यही सारे तीर्थों में बडा है
चंद्रभागा में नहाए, दर्शन विट्ठल जी के पाए
तन मन खुशियों से लहराए, मन भर भर आए”
(अज्ञात)
बोलो विट्ठल महाराज की जय.




Sunday 23 October 2016

कारगिल युद्ध हीरो परमवीर चक्र विजेता योगेन्द्र सिंह यादव जी से मुलाकात

आज का दिन मेरे लिए अत्यंत यादगार है क्योंकि आज कारगिल युद्ध के हीरो और परमवीर चक्र से सम्मानित शूरवीर योगेन्द्र सिंह यादव जी से भेंट करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भारत के युद्ध इतिहास में परमवीर चक्र से सम्मानित होने वाले ये सबसे कम उम्र के योद्धा हैं, 1999 में मात्र 19 वर्ष की आयु में इन्होंने वो कर दिखाया जिसे करने में जीवन लग जाता है। ईश्वर ने इन्हें भारत माँ की सेवा करने का अभूतपूर्व अवसर प्रदान किया और इन्होंने भी अपना शौर्य सिद्ध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और पाकिस्तान को धूल चटा दी।

22 दिन तक लगातार तोलोलिंग की चोटी पर लड़ाई लड़ी  और उस पर तिरंगा फहराने के बाद टाइगर हिल पर अपना जोहर दिखाते हुए तीन गोलियां खाई और चार पाकिस्तानियों को हलाल कर दिया। गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद हौसला नहीं खोया और दुश्मन को गंभीर चुनौती दी। यादव जी से पहले  सबसे कम उम्र में परमवीर चक्र पाने वाले अरुण खेत्रपाल थे। इन्हें 1971 के भारत पाकिस्तान के युद्ध में मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाज़ा गया था।

योगेन्द्र सिंह यादव जी का निवास  ग़ाज़ियाबाद के पास साहिबाबाद में लाजपत नगर कॉलोनी में है। आज इस रियल लाइफ हीरो को मिलकर सल्यूट किया और इनकी वीरता के लिए इनको ढ़ेरों धन्यवाद व् कृतज्ञता व्यक्त की।  आप ऐसे ही देश की सेवा करते रहें। जय हिन्द। जय भारत।

Wednesday 19 October 2016

लेह में बना रेंचो का स्कूल

प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार!!!

आज आपके ले कर चलते हैं मश्हूर फ़िल्म "थ्री इडियट" वाले जनाब रेंचो के स्कूल में। ये स्कूल लेह से 15 किलोमीटर दूर शेय नामक स्थान पर है।

इस स्कूल का असली नाम है Druk White Lotus School जिसे प्यार से रेंचो का स्कूल भी कहा जाता है। इस स्कूल की शुरुआत आज की पीढ़ी को स्थानीय तिब्बती बौद्ध संस्कृति से अवगत करवाने के लिए की गयी है।
हम इस स्कूल की बिल्डिंग देख कर हैरान रह गए क्योंकि ये न केवल भूकंप विरोधक् है बल्कि अपनी बिजली की पूर्ति भी सोलर पैनल्स से करती है। पूरी बिल्डिंग इको फ्रेंडली है।  ये स्कूल एशिया और विश्व में कई सारे अवार्ड अपने नाम कर चुका है। यहाँ स्कूल की अपनी स्मारिका की दुकान यानि सोवेनिएर शॉप भी है जहाँ कई सारी सामग्री उपलब्ध है, आप यहाँ से यादगार के तौर पर कई वस्तुएं खरीद सकते हैं। ये पैसा स्कूल के विकास में लगाया जाता है।

पहाड़ों के बीच बना ये स्कूल वाकई अनूठा है।

Sunday 16 October 2016

लेह में गुरुद्वारा श्री पत्थर साहिब जी के दर्शन

प्रिय मित्रों

सादर नमस्कार!!!

आज मैं आपको लेह क्षेत्र में बने एक ऐसे गुरूद्वारे के दर्शन करवाता हूँ, जहाँ वर्ष 1517 में गुरु नानक देव जी ने स्वयं पधार कर आम जनता को एक राक्षस के आतंक से बचाया था और उनके यहाँ तपस्या किए जाने के कारण यहाँ गुरुद्वारा स्थापित हुआ और इसका नाम रखा गया पत्थर साहिब गुरुद्वारा.

जब गुरु नानक देव यहाँ तपस्या में लीन थे, तभी उस राक्षस ने उनकी हत्या के इरादे से एक बडा चट्टान का पत्थर उनकी ओर धकेल दिया, जैसे ही उस पत्थर का स्पर्श गुरु नानक जी की देह से हुआ, तभी वो मोम में बदल गया और पत्थर का जो भाग गुरु नानक देव से टकराया वहां एक गड्डा बन गया. आज भी कई श्रदालुओं को उस भाग में गुरु नानक देव के दर्शन होते हैं.

इस गुरूद्वारे का रख रखाव भारतीय सेना द्वारा किया जाता है और हर समय लंगर का प्रशादा मुहैया करवाया जाता है. हमने भी यहाँ प्रशादे के रूप में गरमा गर्म हलवे और चाय का सेवन किया.
वाहे गुरु जी खालसा वाहे गुरु जी की फ़तेह.







Tuesday 4 October 2016

स्वतंत्रा सेनानी श्याम जी कृष्ण वर्मा जी का जन्मस्थान "मांडवी" गुजरात।

मित्रों सादर नमस्कार!!!

आज एक महान क्रन्तिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा का जन्मदिन है। उनका जन्म आज ही के दिन 1857 में गुजरात के मांडवी में हुआ था। आज मैं आपको ले कर चलूँगा कच्छ ज़िले के माण्डवी क्षेत्र में बने "क्रांति तीर्थ" पर जहाँ स्वतन्त्रता सेनानी श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा के जन्मस्थान पर उनका एक विशाल स्मारक बना हुआ है.  इसी साल फरवरी में मुझे यहाँ नमन् करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा ने  लन्दन में इण्डिया हाउस की स्थापना की जो इंग्लैण्ड जाकर पढ़ने वाले भारतीय छात्रों का मुख्य केंद्र था जहाँ वो मिल कर विचार विमर्श करते और भारत की आजादी पर परस्पर योजनाएं बनाते रहते. इस तरह से वर्मा जी स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए निरंतर कार्य करते रहे. उनके सहयोगियों में वीर सावरकर, मदन लाल ढींगरा, भीकाजी कामा आदि क्रन्तिकारी प्रमुख रहे। श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा का देहान्त वर्ष 1930 में जिनेवा में हुआ, पर उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनकी अस्थियों को केवल आजाद भारत मे ही ले जाया जाए। 22 अगस्त 2003 में भारत की स्वतन्त्रता के 55 वर्ष बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को मांडवी ले कर आए और उनकी अंतिम इच्छा को पूरा किया गया. लंदन में जिस इंडिया हाउस मे वो रहा करते थे उसकी हुबहू ईमारत का निर्माण यहाँ किया गया है। कभी आप भी मांडवी जाएँ तो यहाँ शीश नवाने अवश्य जाएं। जय हिन्द जय भारत।