Thursday 9 May 2019

कारगिल युद्ध नायक अमर शहीद विक्रम बत्रा के माता पिता से एक मुलाकात

कारगिल युद्ध में "ये दिल मांगे मोर" का नारा बुलंद करने वाले शूरवीर, दुश्मन जिन्हें अपने शौर्य की वजह से शेरशाह के नाम से पुकारता था। जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ, कैप्टेन विक्रम बत्रा की. मात्र 25 वर्ष की आयु में देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देने वाले पराक्रमी कैप्टेन विक्रम बत्रा के माता पिता के चरणों में वंदन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पॉइंट 5140 को फतह करने के बाद पॉइंट 4875 को फतह करते हुए विक्रम बत्रा शहीद हुए थे। इस अदम्य साहस का प्रदर्शन करने के लिए उन्हें परमवीर चक्र (मरणोंप्रांत) से सम्मानित किया गया था.
उनके सम्मान में इस चोटी को अब बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा एक आर्मी कैम्प का नाम भी बत्रा ट्रांजिट कैम्प कर दिया गया है। हम सभी परमवीर चक्र से सम्मानित विक्रम बत्रा के सदैव ऋणी रहेंगें। इस महावीर को हमारा शत शत नमन।

 जय हिन्द.










Tuesday 7 May 2019

शहीद मास्टर अमीर चंद, अवध बिहारी और भाई बाल मुकुन्द के शहीदी दिवस पर नमन

आज मैं इतिहास के कुछ ऐसे पन्ने पलट रहा हूँ जिसे  देशवासियों, विशेषकर,  दिल्ली वालों को अवगत करवाना अत्यंत आवश्यक है। आज का दिन दिल्ली के इतिहास में सदैव याद रखा जाएगा क्योंकि आज ही के दिन यानी 8 मई को तीन और 9 मई को एक अन्य क्रांतिकारी को अंग्रेजी हुकूमत ने फाँसी पर लटका दिया था। इन चारों क्रांतिकारियों के नाम थे मास्टर अमीर चंद, बसंत कुमार बिस्वास, मास्टर अवध बिहारी और भाई बाल मुकुन्द। दिसंबर 1912 में जब भारत की राजधानी को दिल्ली शिफ़्ट करने के अवसर पर तत्कालीन गवर्नर जरनल की शोभा यात्रा जब चाँदनी चौक क्षेत्र से निकल रही थी उस पर बम्ब फैंकने का काम इन चारों शूरवीरों ने सम्पन्न किया। हमले में गवर्नर बच गया पर इन चारों को फाँसी दे दी गयी।

8 मई, 1915 को दिल्ली में अमीर चंद, अवध बिहारी, बाल मुकुंद को फांसी दी गई थी, लेकिन बसंत कुमार बिस्वास को एक दिन बाद अंबाला सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।

 दिल्ली में इन तीन शहीदों को जहां फाँसी पर चढ़ाया गया था वो स्थान 'शहीद स्मारक' मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज (एम.ए.एम.सी.) दिल्ली, परिसर के अंदर है ।  स्वतंत्रता संग्राम के इन नायकों को इस फांसी घर में जा कर नमन कर मेरा जीवन सफल हो गया। कुछ वर्ष पहले ही दिल्ली के लुड़लौ कैसल स्कूलों के नाम इन शहीदों के नामों पर रखे गए हैं। सौभाग्यवश, मैं भी उन्हीं में से एक स्कूल में पढ़ा हूँ।

पुराने दिल्ली जेल परिसर के इस फांसी घर के दर्शन आप भी करें और इन शहीदों को अपनी भाव भीनी श्रद्धांजलि अर्पित करें। जय हिन्द।






Sunday 5 May 2019

एक मुलाकात कर्नल नरेन्द्र बुल कुमार से

कुछ दिन पूर्व  एक ऐसी शख्सियत से रूबरू होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, जो सही मायनों में महानायक हैं। 85 वर्षीय कर्नल नरेंद्र "बुल" कुमार  1965 में भारत के प्रथम विजेता एवेरेस्ट दल के डिप्टी लीडर थे। इसके अलावा कर्नल साहब ने कई सारी चोटियाँ फतेह की हैं, जिसमें भारत की सबसे ऊंची व विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी "कंचनजंगा" भी शामिल है। ये एक मात्र ऐसे अधिकारी हैं जिन्हें कर्नल रैंक में परम वशिष्ठ सेवा मेडल से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा इन्हें कीर्ति चक्र, पदम श्री, अति वशिष्ठ सेवा मैडल व अर्जुन पुरस्कार से भी नवाज़ा जा चुका है।

इनकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये रही कि इन्होंने सियाचिन का बड़ा भाग पाकिस्तान के हाथ जाने से रोक दिया। आज सियाचिन का बड़ा भू भाग हमारे पास केवल और केवल कर्नल कुमार की बदौलत ही है। मैंने जब इनको अपनी पुस्तक भेंट की तो इन्होंने भी तुरंत मुझे अपने कंचनजंगा की फतेह की कहानी बताती अपनी पुस्तक भेंट में दी, जो मेरे लिए अनमोल है।

सेना के इस वीर और भारत माता के पुत्र को ईश्वर लंबी आयु व स्वस्थ जीवन प्रदान करें।

जय हिंद।