Wednesday 31 October 2018

लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल जनम जयंती

Image may contain: sky and text


आज पूरा देश लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जन्म जयंती मना रहा है। सरदार पटेल का जन्म 31 अक्तूबर 1875 को अपने ननिहाल गुजरात के नाडियाड में हुआ था, पर उनके जीवन के आरम्भिक कई सारे वर्ष आनंद ज़िले में "करमसद" नामक स्थान पर बीते।



Image may contain: 2 people, including Risshi Raj




आज मैं आपको उनके मेमोरियल व उनके घर के दर्शन करवा रहा हूँ, जहां उनका लालन पालन हुआ। अप्रैल 2018 में मुझे इस पवित्र स्थान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ये तो आप सभी जानते हैं कि जब भारत को आज़ादी की सौगात मिली तो देश 565 रियासतों में बंटा हुआ था और फिरंगियों ने सभी रियासतों को अपनी इच्छा अनुसार भारत या पाकिस्तान में विलय होने की आज़ादी दे दी थी। सभी देशवासी सरदार पटेल के सदैव ऋणी रहेंगे क्योंकि उनकी दृढ़इच्छा शक्ति की वजह से ही सभी 565 फ़ूल एक टोकरी में एकत्रित हो पाए और हमारे स्वर्णिम भारत का निर्माण होना संभव हो पाया।








इस कठिन कार्य का निष्पादन निश्चित तौर पर अत्यंत कठिन था पर ये सरदार की दूर दृष्टि, सूझ बूझ और दृष्ट इच्छा शक्ति का ही परिणाम था के हमारे राष्ट्र का निर्माण हो पाया, वर्ना अंग्रेजों ने तो जाते जाते भी हमें प्रताड़ित करने में कोई कसर नही छोड़ी थी। इस महान विभूति को शत शत नमन।
जय हिंद।

Friday 19 October 2018

साईं बाबा समाधी के सौ वर्ष

आज मेरे गुरु शिरडी वाले साईं बाबा को समाधि लिए 100 वर्ष पूरे हो गए। रह रह कर मेरे जेहन में आज उस दिन का ख्याल आया रहा है जब मुझे पहली बार शिरडी से बुलावा आया। वो संस्मरण आपसे सांझा करना चाहता हूं।शिरडी की पहली यात्रा सन् 1996 में हुई। उन दिनों मेरे जेहन में एक अजीब सी खलबली मची हुई थी। शिरडी जाने को मैं इतना बेताब था कि एक दिन मैंने मुंबई जाने का निर्णय लिया और अपना काम खत्म करने के बाद उसी रात शिरडी जाने का कार्यक्रम बनाया। मैंने पता किया कि मुंबई से रात को 'दादर एक्सप्रेस' पकड़कर मनमाड तक जाया जा सकता है और वहाँ से शिरडी की दूरी मात्र 50 कि. मी. है, जोकि बस द्वारा तय की जाती है। मन में शिरडी पहुँचने की आस लिए रात को मैं 'दादर एक्सप्रेस' पर पहुँच गया। सीधे एक आरक्षित वातानुकूलित डिब्बे में घुस गया और परिचालक को अपना परिचय देकर बोला कि मुझे मनमाड जाना है।
No automatic alt text available.गाड़ी मुंबई में करीब रात 9:30 बजे छूटी और मनमाड रात को करीब दो बजे आना था। मेरी आँखों से तो नींद जैसे उड़ी हुई थी। हर स्टेशन पर लगता, कहीं मनमाड तो नहीं आ गया! कहीं ऐसा न हो कि मनमाड निकल ही जाए और मैं कहीं सोता ही रह जाऊँ! ऐसी आशंकाओं से मेरा मन भ्रमित हो रहा था। बस एक ही आस थी शिरडी पहुँचने की। इसी उधेड़-बुन में अंतत: मनमाड आ ही गया। रात्रि दो बजे आँखें नींद से भरी हुई थी। पूरे दिन मुंबई में घूमकर थकान भी बहुत हो गई थी। किसी रेलवे वाले से पूछा तो उसने बताया कि पहली बस सुबह सात बजे मिलेगी और तब तक मुझे विश्राम-गृह में आराम करने की सलाह दी। मनमाड एक बहुत बड़ा जंक्शन स्टेशन है। यहाँ से नासिक, पुणे, हैदराबाद, औरंगाबाद और दिल्ली के लिए लाइनें निकलती है। विश्राम-गृह स्टेशन के दूसरे कोने पर था। जैसे तैसे अंधेरे में मैंने विश्रामगृह को ढूँढ़ा और बिस्तर ढूँढ़कर पड़ गया। सुबह 6:30 बजे पुनः उठ गया और बस पकड़ने बस स्टैंड पर पहुँच गया। बस आई और मैं उसमें सवार हो गया।
Image may contain: 1 personमैं बहुत खुश था और सौभाग्यशाली समझ रहा था, क्योंकि थोड़ी ही देर में मैं शिरडी जो पहुँचने वाला था। अचानक मुझे किसी ने झकझोरकर उठाया, वह बस का कंडक्टर था, जिसके कंधे पर मैं सर रखकर सो गया था। शायद पिछली रात की थकान की वजह से ऐसा हो रहा था। मैं पहली बार महाराष्ट्र के छोटे शहरों से गुज़र रहा था, क्योंकि अभी तक तो मैं सिर्फ मुंबई ही घूमा था। यह अनुभव मेरे लिए थोड़ा अलग किंतु बढ़िया था। थोड़ी ही देर में बस शिरडी बस अड्डे पर पहुँच गई। उन दिनों बस स्टैंड मंदिर के बहुत पास था। मैं उतरकर अपना बैग और जूते जमा कराकर सीधे दर्शनों के लिए चल पड़ा। उन दिनों मंदिर का ढाँचा बहुत ही साधारण था। मंदिर का प्रवेश द्वार भी छोटा था। उन दिनों यहाँ भीड़ भी बहुत ज़्यादा नहीं होती थी। मैंने कुछ पुष्प खरीदे और दर्शनों के लिए लाइन में लग गया, वह भी अपना कैमेरा लेकर, उन दिनों मंदिर परिसर में तस्वीरें लेना वर्जित नहीं था।
मैंने बाबा की सुंदर तस्वीरें ली और उन्हें दिल से धन्यवाद दिया वहाँ बुलाने के लिए।
ये सिलसिला 1996 में शुरू हुआ जो अभी तक अविरल रूप से जारी है, बाबा बस ऐसे ही बुलाते रहें और हम अपनी हाज़री लगाते रहें।
विजयदशमी की शुभकामनाओं के साथ
जय साईं राम।

Saturday 6 October 2018

कोहिमा में कारगिल युद्ध नायक कैप्टन केनगुरुसे (महावीर चक्र) के युद्ध स्मारक पर नमन

पिछले सप्ताह अपनी कोहिमा यात्रा के दौरान मेरा ये लक्ष्य था की मुझे कोहिमा से करीब 22 किलोमीटर दूर एक गांव "नेरहेमा" जाना है, जहां एक महावीर, कारगिल युद्ध के अमर शहीद कैप्टेन केन्गुरसे का जन्म हुआ था। कारगिल युद्ध में अत्यंत असाधारण वीरता का प्रदर्शन करने के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया था। इसी स्थान पर उनकी शहादत को सदा सदा के लिए याद करता एक स्मारक बनाया गया है, जहां नमन करना मेरे लिए अत्यंत सौभाग्य की बात थी।

26 जून 1999 की वो रात को जब कारगिल युद्ध अपने चरम पर था, 16000 फ़ीट की ऊंचाई और तापमान था माइनस 16 डिग्री, जगह थी द्रास की "ब्लैक रॉक" नामक चोटी। 2 राजपूताना राइफल्स के शूरवीर दुश्मन पर जीत के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए मौत का सेहरा सर पर बांध तैयार बैठे थे। शत्रु के बंकर को तोड़ना अत्यंत आवश्यक हो गया था।

कैप्टेन केन्गुरसे ने इस खड़ी चट्टान पर चढ़ने के लिए अपने जूते खोल दिए ताकि शीघ्रता और सुगमता से चढ़ा जा सके। दुश्मन भयंकर गोलाबारी कर रहा था। ऊपर बैठा दुश्मन हमेशा फायदे की स्तिथि में होता है। पर हमारे सैनिकों के हौसले बुलंद थे। दुश्मन की गोलाबारी में घायल होने के बावजूद कैप्टेन केन्गुरसे ने अपनी बंदूक से दो पाकिस्तानियों को हलाक कर दिया और अपने कमांडो चाकू से दो अन्य पाकिस्तानियों को मौत के घाट उतार कर अपनी पलटन की विजय सुनिश्चित की। पर स्वयं की जान भारत माता पर कुर्बान कर सेना की सर्वोच्च परम्पराओं का पालन किया।

15 जुलाई 1974 को नेरहेमा, कोहिमा ज़िला, नागालैंड में इनका जन्म हुआ। 1994 से 1997 तक कोहिमा में अध्यापन का कार्य किया। चाहते तो अपना जीवन सरलता व आराम से अपने क्षेत्र में जी सकते थे पर देश की सेना में जा कर देश की सेवा को प्राथमिकता दी। ऐसे शूरवीर को मेरा शत शत नमन। जय हिन्द।