Tuesday 26 December 2017

शहीद उधम सिंह और लेफ्टिनेंट विजयंत थापर को उनके जन्मदिवस पर नमन

आज भारत माता के एक ऐसे महान सपूत का जन्मदिवस है जिसने अंग्रेजों से जलियांवाला बाग़ हत्या कांड का बदला लेना अपने जीवन का एक मात्र लक्ष्य बना लिया और इस कांड के रचनाकार अंग्रेज अफसर माइकल ओड वायर की हत्या कर भारत वासियों को गौरान्वित किया। भारत माता के ऐसे सिपाही का नाम था उधम सिंह।

उधम सिंह जी का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले में हुआ पर उनके माता पिता जी देहांत बचपन में ही हो गया था उनकी परवरिश अमृतसर के पुतलीघर में स्तिथ अनाथ आश्रम में हुई. उनकी शिक्षा दीक्षा भी यहीं हुई. जलियांवाला कांड के वो प्रत्यक्ष दर्शी बने और इसी वजह से दिन रात उनके दिलो दिमाग पर जलियांवाला बाग ही छाया रहता उन्होंने प्रण ले लिया था के किसी तरह से डायर की हत्या कर के पंजाब की और हिंदुस्तान की अस्मिता पर लगे दाग को हमेशा के लिए मिटाना है. उन्होंने इसी को अपने जीवन का मकसद बना लिया. उधम सिंह कौमी एकता के बड़े पक्षधर थे इसीलिए उन्होंने अपना नाम राम मोहम्मद सिंह आज़ाद भी रख लिया.

अमेरिका में उनका जाना हुआ तो वो ग़दर पार्टी के संपर्क में आ गए और भगत सिंह के कहने पर वहां से अपने साथ 25 क्रांतिकारियों और बहुत से हथियार ले कर के आए ताकि भारत में चल रही क्रांति को गति प्रदान की जा सके. परन्तु, किसी तरह अंग्रेजों को इसकी भनक लग गयी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. कुछ वर्ष बाद जब जेल से छूटने के बाद 1934 में अपना लक्ष्य पूरा करने लन्दन पहुँच गए. वहां अपना मकसद पूरा करने के लिए दिन रात लगे रहते इस काम को अंजाम देने के लिए उन्होंने एक पिस्तौल खरीदी और छह कारतूस भी खरीद लिए और इस काम को अंजाम देने के लिए माकूल समय का इंतज़ार करने लगे अन्त: जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में जैसे ही माइकल ओड वायर आया तो उधन सिंह जिन्होंने अपनी पिस्तौल एक मोटी किताब को फाड़ कर उसमे छुपा रखी थी, निकाल कर डायर की छाती में उतार दिया और इस तरह हजारों बेक़सूर भारतीयों की हत्या का बदला ले लिया, अंग्रेजों की धरती पर अंग्रेजी अफसर को मार कर उन्होंने सिद्ध कर दिया दी हिंदुस्तानीं क्रन्तिकारी के जज्बे में किसी प्रकार की कमी नहीं है. पूरी अंग्रेज सरकार हिल गयी. अंत: उनको 31 जुलाई 1940 को जेल में ही फाँसी पर टांग दिया गया. आज एक अन्य शूरवीर कारगिल युद्ध के नायक लेफ्टिनेंट विजयंत थापर का भी जन्मदिन है उनको भी शत शत नमन।

साभार
देशभक्ति के पावन तीर्थ
लेखक :ऋषि राज
प्रकाशक :प्रभात प्रकाशन

इन शूरवीरों के जन्मदिवस पर ऋणी राष्ट्र की और से शत शत नमन।

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Monday 18 December 2017

काकोरी कांड के शहीदों को शत शत नमन

प्रिय मित्रों
सुप्रभात व सादर नमस्कार!!!
आज का दिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि आज ही के दिन यानि कि 19 दिसम्बर 1927 को काकोरी कांड के तीन मुख्य अभियुक्तों को अंग्रेजी सरकार ने बड़ी बेरहमी से फाँसी पर लटका दिया था। ये तीनों शूरवीर थे अशफाकउल्ला खां, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल व रोशन सिंह।
ये क्रांतिकारी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे जिन्होंने भारत माता को हर हाल में स्वाधीन करवाने की कसम खाई थी। इनके एक अन्य साथी राजेन्द्र नाथ लाहिड़ी को इनसे दो दिन पहले यानी कि 17 दिसम्बर को गोण्डा जेल में फाँसी पर लटका दिया गया था।
आज ही के दिन अशफ़ाक़ को फैज़ाबाद जेल में, बिस्मिल को गोरखपुर जेल और रोशन सिंह को नैनी जेल (इलाहाबाद) में फाँसी पर लटका कर शहीद कर दिया था।
काकोरी कांड के इन नायकों को ऋणी राष्ट्र की ओर से शत शत नमन।
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Exploring India with Rishi

Sunday 10 December 2017

प्रथम ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ जी के दर्शन

प्रिय मित्रों सादर नमस्कार !!!

वर्ष का अंतिम महीना चल रहा है, आशा है आप सभी नववर्ष के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे होंगे. आज मैं आपको ले कर चल रहा हूँ भोले नाथ जी की प्रथम ज्योतिर्लिंग यात्रा पर, जो गुजरात के सौराष्ट्र के प्रभास क्षेत्र में स्थित है और इस ज्योतिर्लिंग का नाम है “सोमनाथ”. इस मंदिर की स्थापना चंद्रदेव ने किया था. ऋग्वेद में भी इस स्थान का उल्लेख मिलता है. सोमनाथ जाने के लिए नजदीकी स्टेशन पश्चिम रेलवे का “वेरावल” व् सोमनाथ है। सोमनाथ की अहमदबाद से दूरी लगभग 410 किलोमीटर है.  

हिन्दू पुराणों के अनुसार जिस जिस स्थान पर भोले नाथ प्रकट हुए थे वहीँ ज्योतिर्लिंगों की स्थापना हुई है. हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दाद्श ज्योतिर्लिंग अत्यंत पवित्र स्थल माने गए हैं. शिव पुराण में बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम निम्न लिखित हैं :-

सौराष्ट्र सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम
उज्जयिनयां महाकल्मोकारे परमेश्वरम
केदारं वित्प्रष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम
वाराणस्यां च विश्वेसं त्रियंबकं गौतमीतेटे
वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने
सेतुबन्धे च रामेशंवर घुश्मेशं तू शिवालये
द्वादशेतानि नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत
सर्वपौर्विर्निर्मुक्त सर्वसिद्धिफलं लभेत
इतिहास में कई बार यह मंदिर को कम से कम छह बार तोड़ा गया व लूटा गया. इस पर हमला करने वालों में प्रमुख नाम थे गजनी, अल्लाउदीन खिलजी, ज़फर खान, महमूद बगदा व् औरंगजेब. सरदार पटेल कहते थे किसी भी संस्कृति को नष्ट किया जा सकता है पर मिटाया नहीं जा सकता. सोमनाथ इसका जीता जागता उदहारण है. इसको जितनी बार तोडा गया उसके बाद उतना ही भव्य इसका पुनर्निर्माण हुआ. ये मंदिर केवल गुजरात ही नहीं अपितु समूचे हिन्दू समाज के गौरव की ज्वलंत मिसाल है. वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरंभ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् सरदार वल्लभभाई पटेल ने करवाया जिसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी ने किया उसके पश्चात् इसके नवीनीकरण का पुन: उद्घाटन पहली दिसंबर 1995 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने किया।

यहाँ का शिवलिंग एवं मंदिर भारत के अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में सबसे विशाल एवं अनूठा है। अरब सागर के तट पर इस मंदिर की बनावट बहुत वृहद है और मंदिर बहुत ही विशाल एवं सुंदर दिखाई देता है। भोले नाथ की कृपा से मुझे यहाँ अब तक तीन बार जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।  मंदिर परिसर में  सभी 12 ज्योतिर्लिंगों की झांकी लगाई गई है तथा सम्पूर्ण जांकारी दी गई है जो बहुत ज्ञानवर्धक है। सभी मंदिरों की भांति यहाँ भी विशेष पूजा की व्यवस्था है परंतु एक विशेष बात यहाँ गंगाजल से जलाभिषेक करने की। अगर आप निश्चित मूल्य देकर जलाभिषेक पूजा करते हैं तो आपके द्वारा चड़ाया गया जल शिवलिंग से करीब 15 फीट पहले बने स्थान पर डाल दिया जाता है और फिर मोटर द्वारा वो जल स्वतः ही शिवलिंग तक पहुँच जाता है। ऐसा अनूठा प्रयोग मैंने सिर्फ यहीं देखा। मुख्य मंदिर के सामने ही एक पुराना मंदिर है जिसका निर्माण अहिल्या देवी ने करवाया था। कहा जाता है कि मूल पुरातन शिवलिंग इसी मंदिर में है पर एक खास बात मुझे सोमनाथ की यह लगी कि यहाँ मुझे कभी भी बहुत भीड़ नहीं मिली या शायद परिसर ही इतना बड़ा है जिसमें भीड़ समा जाती है और पता ही नहीं चलता चाहे जितनी भी भीड़ हो।
मंदिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घंटे का साउंड एंड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मंदिर के इतिहास का बड़ा ही सुंदर सचित्र वर्णन किया जाता है।
सोमनाथ के बिलकुल पास ही तीन नदियां हिरण, कपिला व् सरस्वती नदियाँ में मिलती हैं इसे त्रिवेणी घाट संगम भी कहा जाता है.

इससे पहले मैं आपको ले जा चुका हूँ भीमा शंकर ज्योतिर्लिंग की यात्रा पर, आशा करता हूँ जल्द ही आपको बाकी दस ज्योतिर्लिंगों की यात्रा पर भी जल्द ही ले कर चलूंगा. तब तक हर हर महादेव.  



श्री सोमनाथ मंदिर 

सोमनाथ मंदिर वर्ष 1895 फोटो श्री नेल्सन/ब्रिटिश लाइब्रेरी 

फोटो गूगल 








अहिल्याबाई द्वारा स्थापित मंदिर 













Saturday 18 November 2017

1962 के भारत चीन युद्ध के नायक परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की कहानी


प्रिय दोस्तों

नमस्कार

भारत के इतिहास में आज के दिन का विशेष महत्व है, वर्ष था 1962, भारत और चीन के बीच युद्ध अपने चरम पर था और पूरा देश चीन द्वारा हमारी पीठ में छुरा घोंप देने से स्तब्ध था। वहीं आज ही के दिन यानी कि 18 नवम्बर 1962 को एक नायक ऐसा भी था जिसने चीनी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे, इस अमर बलिदानी का नाम था "मेजर शैतान सिंह"। उन्होंने अपने और अन्य 114 वीर अहीर, साथी सैनिकों के प्राणों को हाथ पर रख कर भारत माता को समर्पित कर दिया और चीन के 1310 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। लद्दाख के चुशुल सेक्टर के रेज़ांगला में हुई इस अभूतपूर्व शौर्य गाथा को मैं आप तक एक वीडियो की शक्ल में ले कर आया हूँ, आशा है, इसे न केवल आप देखेंगे अपितु अपने बच्चों और आज की युवा पीढ़ी को भी दिखाएंगे ताकि वो भी अवगत हो सकें कि किस प्रकार असँख्य शूरवीरों ने हमारे देश की अस्मिता बचाने हेतु व हमारी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए हंसते हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। आज जहाँ एक ओर मेजर शैतान सिंह और उनके 114 साथियों का बलिदान दिवस है वहीं दूसरी ओर भगत सिंह के करीबी साथी रहे बटुकेश्वर दत्त का जन्मदिन है। केन्द्रीय असेंबली में बम्ब फोड़ने के समय बटुकेश्वर और भगत सिंह साथ ही थे।

ऋणी राष्ट्र की ओर से इन महावीरों को शत शत नमन। हर उगते सूरज और ढलते दिन के साथ इन शहीदों को नमन करना हम सभी का कर्तव्य है।
जय हिंद।

Major Shaitan Singh - PVC (1962 Indo - China War)



ऋषि राज
Exploring India with Rishi

साभार
देशभक्ति के पावन तीर्थ
प्रभात प्रकाशन

Sunday 12 November 2017

जापान के टोयोटा कार म्यूजियम की सैर

प्रिय दोस्तों,
आज के युग में कारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, भारत में एक ज़माना था केवल गिनती की गाड़ियाँ दिखती थीं जैसे की एम्बेसडर और फ़िएट. फिर वर्ष 1981 में आगाज़ हुआ मारुती सुजुकी का जिसने भारत में एक क्रांति ला दी और यात्री कारों में एक नए अध्याय का श्री गणेश हुआ. मारुती ने जिस समय भारत में प्रवेश किया लगभग उसी समय एक और कम्पनी भी भारत में प्रवेश पाना चाहती थी पर शायद आर्थिक नीतियों और बंद बाज़ार अवधारणा के तहत उसको प्रवेश नहीं मिल सका. उस कम्पनी का नाम था “टोयोटा”, सुजुकी की भांति टोयोटा भी एक जापानी कंपनी है जो आज विश्व में सबसे ज्यादा वाहनों का निर्माण करती है जो इसे विश्व की सबसे बड़ी कार निर्माण करने का गौरव प्रदान करती है.
आज मैं आपको “टोयोटा” की कहानी सुनाने जा रहा हूँ, 11 जून 1994 को जापान के नागोया शहर में टोयोटा द्वारा एक म्यूजियम की स्थापना की गयी जिसमे टोयोटा की यात्रा को बखूबी दिखाया गया है. दरअसल, टोयोटा मोटर कॉर्पोरेशनके की विधिवत स्थापना किइचिरो टोयोडा ने इसी स्थान पर की थी. इस यात्रा के असली नायक रहे किइचिरो टोयोडा के पिता साकिची टोयोडा, जिन्होंने टोयोटा समूह की नीव पहले पहल कपडा उद्योग पर रखी. वर्ष 1911 में साकिची टोयोडा पहले स्वचलित कपडा बुनने वाली मिल की स्थापना की. साकिची के आविष्कारों ने जापान के कटाई बुनाई उद्योग के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई थी. अपने जीवन काल में साकिची कई सारे पेटंट अपने नाम किए.
किइचिरो टोयोडा, ने अपने पिता के सपने को चुनौती के रूप में अपनाया । 1 सितम्बर 1933 ऑटोमोटिव प्रोडक्शन डिवीज़न की स्थापना की और जापान की जनता के लिए पहली कार बनाने का मुश्किल काम शुरू हुआ. शेवरले कार के तमाम पुर्जों को अलग किया गया और उनके रेखा चित्र तैयार किये गए. अंत:, किइचिरो टोयोडा की टीम ने 1935 में जापान का पहला प्रोटोटाइप ऑटोमोबाइल इंजन विकसित किया, उन्होंने लगभग असंभव को पूरा किया टोयोडा की पहली प्रोटोटाइप ऑटोमोबाइल की रचना, मॉडल ए1 की कल्पना की गई, डिजाइन किया गया और सिर्फ पांच वर्षों में आरंभ से अंत तक बनाया ।
1936 में, जब साकिची टोयोडा के बेटे किइचिरो टोयोडा ने कारों का निर्माण शुरू करने का फैसला किया तो उन्हें अपने नए उद्यम के लिए एक नाम/ प्रतीक चिन्ह की आवश्यकता थी। इसके लिए, प्रतियोगिता आयोजित की गई जीतने वाले डिजाइन में "टोयोटा" शब्द शामिल हुआ इस प्रकार से "डा" की जगह “टा” ने ले ली और टोयोडा-टोयोटा हो गया. इस म्यूजियम में हैंडलूम मशीनों से ले कर आधुनिक कार निर्माण तक की कहानी दर्शाई गयी है. मैंने भी यहाँ रुई से धागा बनाने की तकनीक पर हाथ आजमाया और सफलता पाई.
वक़्त के साथ कैसे कैसे टोयोटा अपनी तकनीक, इंजन, सीटों, टायरों और यात्री सुरक्षा में सुधार करती गयी उसका सिलसिलेवार प्रदर्शन इस म्यूजियम में किया गया है. इतना ही नहीं वर्ष 1911 में बनी ईंटो की दिवार को आज भी इस म्यूजियम के अन्दर सहेजा हुआ है. आखिर में एक सोवेनिएर शॉप भी है जहाँ आप यादगारी के तौर पर कई सारी वस्तुएं खरीद सकते हैं.
आज के युग में टोयोटा की गाड़ियाँ केवल भारत ही विश्व भर में धूम मचा रहीं हैं. अपनी क्वालिटी, सर्विस और ग्राहकों के प्रतिबद्धता टोयोटा को विश्व स्तरीय बनाए हुए है. तो आईये आप भी मेरे साथ इस म्यूजियम का आनंद लीजिये.













Tuesday 7 November 2017

जीवनदायिनी नदी "सिन्धु" के दर्शन

प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार !!

भारत में हम सभी लोग गंगा नदी के विषय में बखूबी जानते हैं, एक अन्य नदी जो सदा से मुझे आकर्षित करती रही है, और इसका नाम है “सिन्धु”. कहा जाता है हिन्दू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु से ही हुई और सिन्धु घाटी सभ्यता भी इसी नदी के मुहाने पर ही पनपी. वर्ष 2007 में पहली बार मुझे सिन्धु के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ जब मैं अपनी पहली लेह-लद्दाख की यात्रा पर निकला हुआ था. अगर आप हवाई मार्ग से लेह जातें हैं तो, आसमान से ही आपको सिन्धु के दर्शन हो जाते हैं. सिन्धु नदी का जिक्र हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी प्रमुखता से मिलता है, ऐसा माना गया है कि ऋग्वेद में सिन्धु का जिक्र 176 बार किया गया है. लेह में एक स्थान है जहाँ हर वर्ष सिन्धु दर्शन महोत्सव का आयोजन किया जाता है और यह महोत्सव पिछले 21 वर्षों से निरंतर जारी है. जून मास में होने वाले इस महोत्सव में देश भर से करीब 5000 लोग यहाँ एकत्रित होते हैं और सिन्धु की पूजा अर्चना करते हैं, यह महोत्सव एक तरह से देशभक्ति के ज़ज्बे को भी जागृत करता है. सिन्धी समाज के लोगों के लिए सिन्धु का महत्व कुछ अधिक है, ऐसा माना जाता है कि सिंधियों के धर्म प्रमुख झूलेलाल जी वरुण देवता का ही रूप थे और उन्होंने इसी सिन्धु के तट पर तपस्या की थी. लेह स्थित इस नवनिर्मित घाट का उद्घाटन जून 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था.   
एक हिन्दू होने के नाते मेरे लिए सिन्धु नदी के दर्शन करना एक विशेष महत्व रखता है, अपने मित्रों के साथ इस स्थान पर गया और सिन्धु के जल का आचमन किया. यहाँ आ कर एक अलग से सुकून की अनुभूति हुई, जिसको शब्दों में बयां करना थोडा कठिन है. सिन्धु का वास्तविक स्रोत कैलाश पर्वत क्षेत्र को माना जाता है जिसकी ऊंचाई हिमालय क्षेत्र में लगभग 18000 फीट की ऊंचाई पर मानी जाती है. हालाँकि, अपने दुर्गम रास्तों की वजह से वहां इसकी धारा को चिन्हित करना थोडा कठिन कार्य है, वर्ष 2012 में अपनी कैलाश मानसरोवर की यात्रा के दौरान मैंने भी यह प्रयास किया था लेकिन ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई.

भारत में "सिन्धु" जम्मू कश्मीर के “डेमचोक” नामक स्थान से प्रवेश करती है, वर्ष 2016 में अपनी लेह-लद्दाख की दूसरी यात्रा के दौरान जब मैं चुशूल से मनाली की ओर आ रहा था तब मुझे "डेमचोक" के काफी नजदीक से गुज़रने का मौका मिला था. दुर्गम पहाड़ों के बीच से निकल कर आती सिन्धु एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है. यहाँ सिन्धु का जल एकदम स्वच्छ, पवित्र, ठण्डा और कल-कल की मधुर ध्वनि उत्पन्न करते हुए बह रहा है, एकबारगी तो लगता है मानो आप साक्षात् स्वर्गारोहण पर हैं. एक तस्वीर आपके साथ साँझा कर रहा हूँ जिसे मैंने माही पुल के ऊपर से खींचा था.  

लेह में संगम नामक स्थान पर सिन्धु और झंस्कर का संगम होता है जो देखने लायक है, एक तरफ से हरे रंग में इठलाती सिन्धु आती है और दूसरी ओर मटमैली झंस्कर का संगम एक अलग समा बांध देता है.  कारगिल के समीप बटालिक नामक स्थान से सिन्धु पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर इलाके में प्रवेश कर जाती है. वर्ष 2007 में इस स्थान को देखने का अवसर प्राप्त हुआ था. कारगिल युद्ध के दौरान परमवीर चक्र विजेता कैप्टेन मनोज कुमार पांडे ने इसी इलाके में पाकिस्तानी सेना को धूल चटाई थी.

सिन्धु पाकिस्तान की न केवल सबसे लम्बी नदी है बल्कि जीवन दायिनी भी है.  सिन्धु की कुल लम्बाई 3610 किलोमीटर है, जिसकी कुल लम्बाई का तिब्बत में केवल 2 प्रतिशत भारत में 5 प्रतिशत और पाकिस्तान में बचा हुआ 93 प्रतिशत हिस्सा बहता है और अन्त: “सिन्धु” अरब सागर में विलीन हो जाती है, हालाँकि वर्ष 1819 तक इसका एक हिस्सा भारत के कच्छ के रण के कोट लखपत क्षेत्र तक था. यहाँ एक बहुत बडा बंदरगाह भी हुआ करता था, प्राकृतिक आपदा ने वर्ष 1819 में इस क्षेत्र को बंजर बना दिया और सिन्धु नदी को यहाँ से चालीस मील दूर धकेल दिया. इसी पवित्र स्थान पर गुरु नानक देव जी अपनी मक्का यात्रा पर जाने से पहले यहाँ कुछ समय के लिए रुके थे. वर्ष 2016 में यहाँ दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ.


आशा करता हूँ, सिन्धु नदी पर आज का ब्लॉग आपको पसंद आया होगा. मेरा प्रयास रहेगा भविष्य में ऐसी विविध जानकारियाँ आप तक ऐसे ही पहुंचाता रहूँ. जय हिन्द.  


लेह में सिन्धु और झंस्कर का संगम स्थल 

लेह में सिन्धु का एक सुन्दर दृश्य

सिन्धु घाट पर सिन्धु का मनमोहक दृश्य

सिन्धु घाट, लेह 




डेमचोक के पास सिन्धु का दृश्य



माही पुल से सिन्धु का दृश्य 

माही पुल से सिन्धु का दृश्य 

लेह हवाई अड्डे पर उतरने से पहले हवाई जहाज़ से सिन्धु का विहंगम दृश्य 


Tuesday 31 October 2017

यू ट्यूब पर मेरा नया विडियो :- भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव की समाधी पर नमन

दोस्तों, देश को आज़ादी दिलवाने के लिए करीब 7.5 लाख देशभक्तों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी, तब जा कर हमें आज़ादी नसीब हुई।
आज की युवा पीढ़ि को महान देशभक्तों की बलिदान गाथा से अवगत करवाने के लिए इस वीडियो का निर्माण किया है। इसे वीडियो को हर नौजवान और बच्चे को दिखाएँ ताकि उन्हें भी पता चला कि कैसे नौजवानों ने हंसते हंसते देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे। भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव के चरणों में इस वीडियो को अर्पित कर रहा हूँ।
जय हिंद।।।।

https://www.youtube.com/watch?v=1JNbMyS_fhQ&t=10s

Wednesday 27 September 2017

शहीद ए आज़म भगत सिंह के जन्मदिन पर उनके पैतृक निवास पर नमन

प्रिय दोस्तों,

सादर नमस्कार !!!

कल यानि 28 सितंबर को मेरे और मेरे जैसे करोड़ों नौजवानों के प्रेरणा स्रोत शहीद-ए- आज़म सरदार भगत सिंह जी का जन्मदिन है, माता विध्यावती जी ने कोई आम बालक नहीं अपितु एक शेर को जन्म दिया था, जो भले ही आज हमारे बीच नहीं है पर जब तक धरती, चाँद और सितारे रहेंगे भगत सिंह जी की याद हमारे जेहन में खुशबू की तरह महकती रहेगी.

इस पवित्र अवसर पर मैं आपको ले कर चल रहा हूँ, पंजाब के खटकड़ कलां, जहाँ भगत सिंह जी का पुश्तैनी मकान आज भी उस महान शहीद की शूर वीरता की गाथाएँ बयां कर रहा है. भगत सिंह जी का जन्म 28 सितम्बर 1907 को गाँव बंगा, जिला लायलपुर, पाकिस्तान (अविभाजित भारत) में हुआ था, लेकिन उनके जन्म के कुछ ही समय बाद उनका परिवार यहाँ, यानि की पंजाब के खटकड़ कलां आ गया था. इसी पवित्र स्थान पर भगत सिंह जी ने अपने जीवन के कई वर्ष बिताए हैं इसी घर में उनको ऐसे संस्कार मिले जिससे उनको देश पर बलिदान करने की प्रेरणा मिली होगी.  

इस पवित्र वो खेत आज भी मौजूद हैं, जहाँ नन्हा भगत सिंह अनाज के तरह ही बंदूकें उगाना चाहता था, ताकि भारत माँ को जल्द से जल्द आज़ादी दिलवाई जा सके. इस पैतृक निवास में आप देख सकते हैं उनके जीवन से जुडी तमाम वस्तुएं जिनका उन्होंने इस्तेमाल किया था, जैसे की चारपाई, बर्तन, अलमारी, चूल्हा, चक्की  और  पुराने ट्रंक. इसी घर के आँगन में एक कुआँ भी है. इस पैतृक निवास से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर बना है भगत सिंह जी म्यूजियम जहाँ भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव का अस्थि कलश आज भी संजो कर रखा हुआ है, यहाँ भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव के खून से सना अख़बार भी रखा हुआ है, इसके अलावा यहाँ भगत सिंह की जन्मपत्री उनके परिवार वालों और अन्य क्रन्तिकारी मित्रों की तस्वीरें और उनकी हड्डियों के कुछ अवशेष भी यहाँ रखे हुए हैं. यहाँ वो कलम भी संभाल कर रखी गयी जिसके इन शहीदों की फांसी की सजा लिखी गयी थी. उनका मृत्यु आदेश पत्र भी यहाँ आप देख सकते हैं. इस संग्राहलय को देख कर शरीर का रोम रोम सक्रिय हो जाता है और सिर अगाध श्रद्धा से झुक जाता है.

हर भारतीय को अपने जीवन काल में इस पवित्र स्थान पर एक बार तो अवश्य ही जाना, आख़िरकार आज़ादी की फिज़ा में जो सांस हम ले पा रहे हैं वो इन्ही शहीदों की कुर्बानियों का नतीजा ही है.

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का बाकी यही निशां होगा

इस पवित्र दिवस पर ऋणी राष्ट्र की ओर से भगत सिंह जी को शत शत नमन. 

स्रोत :- देशभक्ति के पावन तीर्थ (प्रभात प्रकाशन)