Saturday 1 September 2018

सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का टैंक जिसमें लड़ते लड़ते वो शहीद हो गए थे

सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल, परमवीर चक्र।
रेजिमेंट : 17, पूना हॉर्स
(कृपया पूरा अवश्य पढ़ें)
जुलाई मास में मुझे महाराष्ट्र के अहमदनगर में भारतीय सेना द्वारा निर्मित "टैंक म्यूजियम" में जाने का अवसर मिला, जहां मुझे कई प्रकार के टैंक देखने को मिले, पर मेरी आंखें केवल एक ही टैंक को ढूंढ रही थी, और वो था, सबसे छोटी आयु में परमवीर चक्र से सम्मानित किए जाने वाले शूरवीर, सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का, जिसमें लड़ते लड़ते वो शहीद हो गए थे।
इस असाधारण वीरता का प्रदर्शन कर के वो हमेशा हमेशा के लिए हर भारतीय के दिल में अपनी जगह बना गए। ड्यूटी पर तैनात अधिकारी से जब मैंने उस टैंक के बारे में जानकारी माँगी तो बताया गया कि वो टैंक अरुण खेत्रपाल जी की रेजीमेंट "पूना हॉर्स" के साथ ही रहता है और पूना हॉर्स इसका रख रखाव बहुत ही श्रद्धा से रखती है। ये जानकारी प्राप्त करने के बाद मेरा मन बेताब हो उठा कि काश ! मुझे भी किसी प्रकार से महावीर अरुण खेत्रपाल जी का वो टैंक देखने का सौभाग्य प्राप्त हो।
वो कहते हैं ना, जहां चाह वहां राह। चंद रोज़ बाद ही मुझे पूना हॉर्स के ठिकाने का पता चल गया और मुझे उस टैंक को देखने का न केवल अवसर मिला बल्कि अरुण खेत्रपाल जी के जीवन से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण बातों की जानकारी मिली। ये भी पता चला की आज भी पूना हॉर्स रेजिमेंट कितनी शिद्दत व सम्मान के साथ अपने शहीद साथियों की स्मृतियों को संजो कर रख रहें हैं और कैसे आज के जवानों को उनकी शौर्य गाथाओं से प्रेरित कर रहें हैं। अब आपको मैं उस 21 वर्षीय नौजवान की अमूल्य वीर गाथा से अवगत करवाता हूँ।
एक 21 वर्ष का नौजवान फौज़ी अफ़सर ट्रेनिंग के बाद जिसे सेना में आए हुए अभी 6 महीने भी पूरे नही हुए थे वो युद्ध में शामिल होने निकल पड़ा। 1971 का भारत पाकिस्तान का युद्ध चरम पर था, दिल्ली के रहने वाले इस नौजवान अधिकारी का नाम था अरुण खेत्रपाल ।
बसंतर नदी के नजदीक शकरगढ़ सेक्टर में अपने सेनचुरियन टैंक जिसका नाम था "फामागुस्ता" पर सवार ये नौजवान अधिकारी अपना शौर्य सिद्ध करने के लिए बेताब था। होता भी क्यों नही आखिरकार सेना में जा देश की सेवा करना इन्होंने अपने पुरखों से ही तो सीखा था। इनके पिता ब्रिगेडियर मदन लाल खेत्रपाल सेना के इंजीनियर कोर में कार्यरत थे। अरुण के दादा और पड़दादा भी सेना में सेवारत रह चुके थे। अरुण खेत्रपाल के टैंक का नाम फामागुस्ता क्यों था, इसके पीछे भी एक कहानी है, फामागुस्ता असल में सायप्रस के पूर्वी तट पर बसा एक नगर है जहां 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पूना हॉर्स तैनात थी।
16 दिसंबर 1971 का वो दिन जब पाकिस्तानी सेना को रौंदता हुआ अरुण खेत्रपाल अपने फामागुस्ता टैंक से शत्रु के नाक में दम किए हुआ था। अभी तक इस शूरवीर ने पाकिस्तान के 10 पैटन टैंकों को खत्म कर दिया था। इस दौरान उनके टैंक पर पहला हमला हुआ जिसे वो झेल गए, टैंक को थोड़ा नुकसान भी हुआ, उन्हें वापस आने के लिए कहा गया पर इन्होंने जवाब दिया "अभी मेरी बन्दूक चल रही है, और जब तक ये चल रही है, मैं वापस नही आऊंगा' देशभक्ति का जुनून सर चढ़ कर बोल रहा था। झल्लाये दुश्मन ने थोड़ी ही देर बाद उनके टैंक पर गोला दाग पुनः हमला किया, हमला इतना तीव्र था की, वो गोला टैंक की लगभग 6 इंच मोटी लोहे की परत को काटते हुआ सीधे अरुण को जा लगा और वो वीरगति को प्राप्त हो गए। उन्होंने भारत माता की आन, बान और शान के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान कर दिया।
टैंक के उस क्षतिग्रस्त हिस्से को जब मैंने अपने हाथों में उठा कर देखा तो मेरे रौंगटे खड़े हो गए और मैं सोचने लगा कि इतने मोटे लोहे को भला एक गोला कैसे काट सकता है। पर नियति को यही मंज़ूर था। इसी असाधरण वीरता के प्रदर्शन की वजह से ही इस शूरवीर की जांबाज़ी के किस्से आज भी हर भारतीय के जेहन में ताज़ा हैं।
शहीद अरुण खेत्रपाल के टैंक को देखते ही पहले तो सैलूट किया फिर उस टैंक पर लगी चार तस्वीरों के बारे में जाना वो तीन सैनिक उस समय अरुण खेत्रपाल के साथ टैंक में मौजूद थे। चौथी तस्वीर शहीद अरुण खेत्रपाल की थी। हमले में सबसे पहले रेडियो ऑपरेटर नंद सिंह वीरगति को प्राप्त हुए और फिर अरुण खेत्रपाल। उनके बाकी दो साथी टैंक चालक प्रयाग सिंह और गनर नत्थू सिंह बुरी तरह घायल हो गए पर किसी तरह बच गए।
17 दिसंबर 1971 को जम्मू के समीप सांभा में अरुण खेत्रपाल का अंतिम संस्कार कर दिया। 26 दिसंबर 1971 को जब उनकी अस्थियां उनके परिवार को सौंपी गई, तो उस उसी समय उनके परिवार वालों को उनकी शहादत के बारे में पता चला। 6 फुट 2 इंच लंबे इस नौजवान को सेना ने अपने अदम्य साहस के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया। 26 जनवरी 1972 को तत्कालीन राष्ट्रपति वी वी गिरी ने ये सम्मान शहीद अरुण खेत्रपाल जी की माता जी को प्रदान किया।
एन डी ए, पुणे में परेड ग्राउंड का नाम अरुण खेत्रपाल के नाम पर रखा गया है। यहीं एन डी ए में अरुण ने सेना का प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
मुझे उनके भाई श्री मुकेश खेत्रपाल से मुलाकात का सौभाग्य मिल चुका है। मेरी पुस्तक "देशभक्ति के पावन तीर्थ" का विमोचन उनके हाथों हुआ है। इस विमोचन में कारगिल शहीद वीर चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट विजयंत थापर के माता पिता कर्नल थापर और श्रीमती तृप्ति थापर भी शामिल हुए थे। उन्होंने बताया की विजयंत, अरुण खेत्रपाल के जीवन से अत्यंत प्रभावित थे और विजयंत अक्सर दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में बने अरुण खेत्रपाल के घर के आगे से निकलते थे और उस अमर शहीद को श्रधांजलि दिया करते थे। कारगिल युद्ध में विजयंत ने देश पर अपनी जान कुर्बान कर कहीं न कहीं अरुण खेत्रपाल के जीवन का सच्चा अनुसरण ही किया।
बॉलीवुड ने शहीद अरुण खेत्रपाल के जीवन पर फ़िल्म बनाने का निर्णय लिया है जो वाक़ई स्वागत योग्य है। अमर शहीद अरुण खेत्रपाल को शत शत नमन। मेरा आप सभी से अनुरोध है की इस पोस्ट को अपने मित्रों व रिश्तेदारों के साथ अवश्य सांझा करें।
जय हिन्द।