Saturday 18 November 2017

1962 के भारत चीन युद्ध के नायक परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की कहानी


प्रिय दोस्तों

नमस्कार

भारत के इतिहास में आज के दिन का विशेष महत्व है, वर्ष था 1962, भारत और चीन के बीच युद्ध अपने चरम पर था और पूरा देश चीन द्वारा हमारी पीठ में छुरा घोंप देने से स्तब्ध था। वहीं आज ही के दिन यानी कि 18 नवम्बर 1962 को एक नायक ऐसा भी था जिसने चीनी सेना के छक्के छुड़ा दिए थे, इस अमर बलिदानी का नाम था "मेजर शैतान सिंह"। उन्होंने अपने और अन्य 114 वीर अहीर, साथी सैनिकों के प्राणों को हाथ पर रख कर भारत माता को समर्पित कर दिया और चीन के 1310 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। लद्दाख के चुशुल सेक्टर के रेज़ांगला में हुई इस अभूतपूर्व शौर्य गाथा को मैं आप तक एक वीडियो की शक्ल में ले कर आया हूँ, आशा है, इसे न केवल आप देखेंगे अपितु अपने बच्चों और आज की युवा पीढ़ी को भी दिखाएंगे ताकि वो भी अवगत हो सकें कि किस प्रकार असँख्य शूरवीरों ने हमारे देश की अस्मिता बचाने हेतु व हमारी स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए हंसते हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था। आज जहाँ एक ओर मेजर शैतान सिंह और उनके 114 साथियों का बलिदान दिवस है वहीं दूसरी ओर भगत सिंह के करीबी साथी रहे बटुकेश्वर दत्त का जन्मदिन है। केन्द्रीय असेंबली में बम्ब फोड़ने के समय बटुकेश्वर और भगत सिंह साथ ही थे।

ऋणी राष्ट्र की ओर से इन महावीरों को शत शत नमन। हर उगते सूरज और ढलते दिन के साथ इन शहीदों को नमन करना हम सभी का कर्तव्य है।
जय हिंद।

Major Shaitan Singh - PVC (1962 Indo - China War)



ऋषि राज
Exploring India with Rishi

साभार
देशभक्ति के पावन तीर्थ
प्रभात प्रकाशन

Sunday 12 November 2017

जापान के टोयोटा कार म्यूजियम की सैर

प्रिय दोस्तों,
आज के युग में कारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, भारत में एक ज़माना था केवल गिनती की गाड़ियाँ दिखती थीं जैसे की एम्बेसडर और फ़िएट. फिर वर्ष 1981 में आगाज़ हुआ मारुती सुजुकी का जिसने भारत में एक क्रांति ला दी और यात्री कारों में एक नए अध्याय का श्री गणेश हुआ. मारुती ने जिस समय भारत में प्रवेश किया लगभग उसी समय एक और कम्पनी भी भारत में प्रवेश पाना चाहती थी पर शायद आर्थिक नीतियों और बंद बाज़ार अवधारणा के तहत उसको प्रवेश नहीं मिल सका. उस कम्पनी का नाम था “टोयोटा”, सुजुकी की भांति टोयोटा भी एक जापानी कंपनी है जो आज विश्व में सबसे ज्यादा वाहनों का निर्माण करती है जो इसे विश्व की सबसे बड़ी कार निर्माण करने का गौरव प्रदान करती है.
आज मैं आपको “टोयोटा” की कहानी सुनाने जा रहा हूँ, 11 जून 1994 को जापान के नागोया शहर में टोयोटा द्वारा एक म्यूजियम की स्थापना की गयी जिसमे टोयोटा की यात्रा को बखूबी दिखाया गया है. दरअसल, टोयोटा मोटर कॉर्पोरेशनके की विधिवत स्थापना किइचिरो टोयोडा ने इसी स्थान पर की थी. इस यात्रा के असली नायक रहे किइचिरो टोयोडा के पिता साकिची टोयोडा, जिन्होंने टोयोटा समूह की नीव पहले पहल कपडा उद्योग पर रखी. वर्ष 1911 में साकिची टोयोडा पहले स्वचलित कपडा बुनने वाली मिल की स्थापना की. साकिची के आविष्कारों ने जापान के कटाई बुनाई उद्योग के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई थी. अपने जीवन काल में साकिची कई सारे पेटंट अपने नाम किए.
किइचिरो टोयोडा, ने अपने पिता के सपने को चुनौती के रूप में अपनाया । 1 सितम्बर 1933 ऑटोमोटिव प्रोडक्शन डिवीज़न की स्थापना की और जापान की जनता के लिए पहली कार बनाने का मुश्किल काम शुरू हुआ. शेवरले कार के तमाम पुर्जों को अलग किया गया और उनके रेखा चित्र तैयार किये गए. अंत:, किइचिरो टोयोडा की टीम ने 1935 में जापान का पहला प्रोटोटाइप ऑटोमोबाइल इंजन विकसित किया, उन्होंने लगभग असंभव को पूरा किया टोयोडा की पहली प्रोटोटाइप ऑटोमोबाइल की रचना, मॉडल ए1 की कल्पना की गई, डिजाइन किया गया और सिर्फ पांच वर्षों में आरंभ से अंत तक बनाया ।
1936 में, जब साकिची टोयोडा के बेटे किइचिरो टोयोडा ने कारों का निर्माण शुरू करने का फैसला किया तो उन्हें अपने नए उद्यम के लिए एक नाम/ प्रतीक चिन्ह की आवश्यकता थी। इसके लिए, प्रतियोगिता आयोजित की गई जीतने वाले डिजाइन में "टोयोटा" शब्द शामिल हुआ इस प्रकार से "डा" की जगह “टा” ने ले ली और टोयोडा-टोयोटा हो गया. इस म्यूजियम में हैंडलूम मशीनों से ले कर आधुनिक कार निर्माण तक की कहानी दर्शाई गयी है. मैंने भी यहाँ रुई से धागा बनाने की तकनीक पर हाथ आजमाया और सफलता पाई.
वक़्त के साथ कैसे कैसे टोयोटा अपनी तकनीक, इंजन, सीटों, टायरों और यात्री सुरक्षा में सुधार करती गयी उसका सिलसिलेवार प्रदर्शन इस म्यूजियम में किया गया है. इतना ही नहीं वर्ष 1911 में बनी ईंटो की दिवार को आज भी इस म्यूजियम के अन्दर सहेजा हुआ है. आखिर में एक सोवेनिएर शॉप भी है जहाँ आप यादगारी के तौर पर कई सारी वस्तुएं खरीद सकते हैं.
आज के युग में टोयोटा की गाड़ियाँ केवल भारत ही विश्व भर में धूम मचा रहीं हैं. अपनी क्वालिटी, सर्विस और ग्राहकों के प्रतिबद्धता टोयोटा को विश्व स्तरीय बनाए हुए है. तो आईये आप भी मेरे साथ इस म्यूजियम का आनंद लीजिये.













Tuesday 7 November 2017

जीवनदायिनी नदी "सिन्धु" के दर्शन

प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार !!

भारत में हम सभी लोग गंगा नदी के विषय में बखूबी जानते हैं, एक अन्य नदी जो सदा से मुझे आकर्षित करती रही है, और इसका नाम है “सिन्धु”. कहा जाता है हिन्दू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु से ही हुई और सिन्धु घाटी सभ्यता भी इसी नदी के मुहाने पर ही पनपी. वर्ष 2007 में पहली बार मुझे सिन्धु के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ जब मैं अपनी पहली लेह-लद्दाख की यात्रा पर निकला हुआ था. अगर आप हवाई मार्ग से लेह जातें हैं तो, आसमान से ही आपको सिन्धु के दर्शन हो जाते हैं. सिन्धु नदी का जिक्र हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी प्रमुखता से मिलता है, ऐसा माना गया है कि ऋग्वेद में सिन्धु का जिक्र 176 बार किया गया है. लेह में एक स्थान है जहाँ हर वर्ष सिन्धु दर्शन महोत्सव का आयोजन किया जाता है और यह महोत्सव पिछले 21 वर्षों से निरंतर जारी है. जून मास में होने वाले इस महोत्सव में देश भर से करीब 5000 लोग यहाँ एकत्रित होते हैं और सिन्धु की पूजा अर्चना करते हैं, यह महोत्सव एक तरह से देशभक्ति के ज़ज्बे को भी जागृत करता है. सिन्धी समाज के लोगों के लिए सिन्धु का महत्व कुछ अधिक है, ऐसा माना जाता है कि सिंधियों के धर्म प्रमुख झूलेलाल जी वरुण देवता का ही रूप थे और उन्होंने इसी सिन्धु के तट पर तपस्या की थी. लेह स्थित इस नवनिर्मित घाट का उद्घाटन जून 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था.   
एक हिन्दू होने के नाते मेरे लिए सिन्धु नदी के दर्शन करना एक विशेष महत्व रखता है, अपने मित्रों के साथ इस स्थान पर गया और सिन्धु के जल का आचमन किया. यहाँ आ कर एक अलग से सुकून की अनुभूति हुई, जिसको शब्दों में बयां करना थोडा कठिन है. सिन्धु का वास्तविक स्रोत कैलाश पर्वत क्षेत्र को माना जाता है जिसकी ऊंचाई हिमालय क्षेत्र में लगभग 18000 फीट की ऊंचाई पर मानी जाती है. हालाँकि, अपने दुर्गम रास्तों की वजह से वहां इसकी धारा को चिन्हित करना थोडा कठिन कार्य है, वर्ष 2012 में अपनी कैलाश मानसरोवर की यात्रा के दौरान मैंने भी यह प्रयास किया था लेकिन ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई.

भारत में "सिन्धु" जम्मू कश्मीर के “डेमचोक” नामक स्थान से प्रवेश करती है, वर्ष 2016 में अपनी लेह-लद्दाख की दूसरी यात्रा के दौरान जब मैं चुशूल से मनाली की ओर आ रहा था तब मुझे "डेमचोक" के काफी नजदीक से गुज़रने का मौका मिला था. दुर्गम पहाड़ों के बीच से निकल कर आती सिन्धु एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है. यहाँ सिन्धु का जल एकदम स्वच्छ, पवित्र, ठण्डा और कल-कल की मधुर ध्वनि उत्पन्न करते हुए बह रहा है, एकबारगी तो लगता है मानो आप साक्षात् स्वर्गारोहण पर हैं. एक तस्वीर आपके साथ साँझा कर रहा हूँ जिसे मैंने माही पुल के ऊपर से खींचा था.  

लेह में संगम नामक स्थान पर सिन्धु और झंस्कर का संगम होता है जो देखने लायक है, एक तरफ से हरे रंग में इठलाती सिन्धु आती है और दूसरी ओर मटमैली झंस्कर का संगम एक अलग समा बांध देता है.  कारगिल के समीप बटालिक नामक स्थान से सिन्धु पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर इलाके में प्रवेश कर जाती है. वर्ष 2007 में इस स्थान को देखने का अवसर प्राप्त हुआ था. कारगिल युद्ध के दौरान परमवीर चक्र विजेता कैप्टेन मनोज कुमार पांडे ने इसी इलाके में पाकिस्तानी सेना को धूल चटाई थी.

सिन्धु पाकिस्तान की न केवल सबसे लम्बी नदी है बल्कि जीवन दायिनी भी है.  सिन्धु की कुल लम्बाई 3610 किलोमीटर है, जिसकी कुल लम्बाई का तिब्बत में केवल 2 प्रतिशत भारत में 5 प्रतिशत और पाकिस्तान में बचा हुआ 93 प्रतिशत हिस्सा बहता है और अन्त: “सिन्धु” अरब सागर में विलीन हो जाती है, हालाँकि वर्ष 1819 तक इसका एक हिस्सा भारत के कच्छ के रण के कोट लखपत क्षेत्र तक था. यहाँ एक बहुत बडा बंदरगाह भी हुआ करता था, प्राकृतिक आपदा ने वर्ष 1819 में इस क्षेत्र को बंजर बना दिया और सिन्धु नदी को यहाँ से चालीस मील दूर धकेल दिया. इसी पवित्र स्थान पर गुरु नानक देव जी अपनी मक्का यात्रा पर जाने से पहले यहाँ कुछ समय के लिए रुके थे. वर्ष 2016 में यहाँ दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ.


आशा करता हूँ, सिन्धु नदी पर आज का ब्लॉग आपको पसंद आया होगा. मेरा प्रयास रहेगा भविष्य में ऐसी विविध जानकारियाँ आप तक ऐसे ही पहुंचाता रहूँ. जय हिन्द.  


लेह में सिन्धु और झंस्कर का संगम स्थल 

लेह में सिन्धु का एक सुन्दर दृश्य

सिन्धु घाट पर सिन्धु का मनमोहक दृश्य

सिन्धु घाट, लेह 




डेमचोक के पास सिन्धु का दृश्य



माही पुल से सिन्धु का दृश्य 

माही पुल से सिन्धु का दृश्य 

लेह हवाई अड्डे पर उतरने से पहले हवाई जहाज़ से सिन्धु का विहंगम दृश्य