Monday 25 July 2016

कारगिल विजय दिवस : मेरी कारगिल यात्रा की यादें
















मेरे प्रिय मित्रों,
सादर नमस्कार !!!
कल कारगिल विजय दिवस है, यानी की देश के इतिहास का वो गौरवशाली दिन है जब हमने अपने दुश्मन को उसके धोखे और गददार्री का मुँह तोडा जवाब दिया था. ये दिन है अपने वीर जवानों को याद करने का और उनको श्रद्धांजलि देने का जिन्होंने हँसते हँसते देश पर आपके और हमारे लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी. मुझे आज भी वो पल याद आता है जब में 23 जुलाई 1999 को अमरनाथ की यात्रा पर था और अभी भी कारगिल युद्ध खत्म होने में तीन रोज़ बाकी थे. पर उस समय में वहां नहीं जा सका, फिर अंत: वो पावन दिन आ गया जब मुझे इस महातीर्थ के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हो ही गया यानि की जुलाई 2007 में. 
लेह में युद्ध स्मारक पर श्रधांजलि अर्पित कर हम कारगिल की ओर निकल पड़े थे, रास्ते में सबसे पहले एक स्थान आया “बटालिक”  यहीं कैप्टन मनोज कुमार पाण्डेय शहीद हुए थे. उन्हें इस युद्ध कौशल और बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से नवाज़ा गया था. सबसे पहले उनको श्रधान्जली दी. थोड़ी ही देर में कारगिल पहुँच गए. हम उस सड़क से गुजर रहे थे जहाँ से पाकिस्तानी हमें देख सकते थे. हमारे लिए ऐसा पहला अनुभव था. कारगिल का मुख्य युद्ध यहाँ से 60 किलोमीटर आगे द्रास में लड़ा गया था. हम कारगिल होते हुए द्रास पहुँच गए. उस रोज़ मौसम खुला ना होने के कारण बादल बहुत ज्यादा थे। शायद इसी कारण टाइगर हिल का दीदार होने में लगातार विलंब होता जा रहा था।
सबसे पहले हमने वो स्थान देखा जहां कारगिल युद्ध के दौरान बोफोर्स गोले दागा करती थी और बरखा दत्त भी इसी स्थान से कई बार रिपोर्टिंग करती थी। मैंने सबसे पहले मन ही मन कैप्टन विक्रम बत्रा को श्रद्धांजली दी। जम्मू कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा जो अपनी जांबांजी के कारण कारगिल युद्ध में अपनी अमिट छाप छोड़ गए और उनकी इसी जांबाजी और अभूतपूर्व शौर्य के लिए परमवीर चक्र से नवाजा गया । उनका एक इंटरव्यू बहुत प्रसिद्ध हुआ था जिसमे उन्होने कहा था “ये दिल मांगे मोर”, वो इंटरव्यू इसी जगह पर हुआ था। पाकिस्तानी सैनिक भी उनके नाम से कांपते थे उनका नाम उन्होने शेहंशाह रखा हुआ था। थोड़ी ही देर में हमने मशकोह घाटी में प्रवेश किया। अपने अप्रतीम सौन्दर्य के लिए मशहूर इसी घाटी में दिल्ली के जनकपुरी के रहने वाले और जाट रेजीमेंट के कैप्टन अनुज नय्यर ने अपने प्राण न्योछावर किए थे । मरने से पहले इन्होंने नौ  पाकिस्तानियों को मौत के घाट उतारा। इन्हे मरणोपरांत महावीर चक्र प्रदान किया गया। मेजर विवेक गुप्ता का भी जिक्र करना बहुत आवश्यक है तोलोलिंग को फ़तेह करते हुए वो शहीद हो गए. अगले दिन जब उनका पार्थिव शरीर दिल्ली में  लाया गया तो तो उनकी पत्नी जो की स्वयं एक आर्मी ऑफिसर हैं डॉक्टर राजश्री गुप्ता उनको वर्दी में अंतिम प्रणाम या सलामी देने आई . ऐसे भावुक क्षण पर एक पत्नी का इस तरह अपने पति के पार्थिव शरीर को सलामी देने आना उनकी कर्त्य परायणता, सोच, द्रिड निच्च्यता और सहास को दर्शाता है. मैं डॉक्टर राजश्री के जज्बे को हज़ार बार सलाम करता हूँ और वो चित्र जो उन दिनों इंडिया टुडे में छपा था वो में ताउम्र नहीं भुला सकता हूँ. 
इस युद्ध में जब 2, राजस्थान राइफल्स के लेफ्टिनेंट विजयंत थापर को भेजा तो उन्होंने अपने माँ बाप को एक पत्र लिखा था जिसमे उन्होंने कहा था की जब तक यह पत्र उनके पास पहुंचेगा तो स्वर्ग की अप्सरायें उनकी सेवा कर रही होंगी. शायद उनको ये एहसास हो गया था की वो वहां से कभी वापिस नहीं आयेंगे. और हुआ भी यही. उन्होंने दो बहुत अहम् बातें उसमे लिखी एक की उनको मरने का कोई ग़म नहीं है, यद्यपि वो चाहते हैं की अगर उनका दुबारा जन्म हो तो वो पुन: सेना में भर्ती हो देश की सेवा करना चाहेंगे, दुसरे वो चाहते थे की लोग कारगिल में आ कर देखें की कैसे सेना के लोगों ने उनके कल को बचने के लिए अपना आज समर्पित कर दिया. विजयंत थापर एक सैनिक परिवार से आतें हैं, इनके पिता जी और दादा जी दोनों ही ने सेना की और से देश की सेवा की है. नॉएडा के रहने वाले विजयंत के नाम पर एक मुख्य मार्ग का नामकरण किया गया है “शहीद विजयंत थापर मार्ग”. 29 जून को वो शहीद हुए थे और इसी बीती त़ारीख को मुझे उनके नॉएडा आवास पर उनके वीर माता पिता जी से मुलाकात का सौभाग्य मिला. धन्य हैं ऐसे माँ बाप जिन्होंने ऐसे वीर को जन्म दिया.
इस युद्ध में योगेंदर सिंह यादव और राइफल मैन संजय सिंह को भी परम वीर चक्र प्रदान से सम्मानित किया गया. वायु सेना के अजय आहूजा जी को वीर चक्र से समान्नित किया गया. लंच के बाद हम लोग द्रास वार मेमोरियल देखने गए । वहाँ युद्ध में शामिल हुए सैनिकों के एवं हथियार प्रदर्शित किए गए हैं।
 द्रास ही एक ऐसी जगह है जहाँ एक बार तापमान शून्य से 54 डिग्री नीचे चला गया था वो तारीख थी नौ जनवरी 1995  और यह सोच कर तो कंपन ही होने लगती है के युद्ध के दौरान ठंडी रातों में हमारे सैनिक कैसे लड़े होंगें। यह सोच कर सिर श्रद्धा से झुक जाता है। अंततः टाइगर हिल का दीदार हो ही गया। टाइगर हिल भारत के गौरव का प्रती है। इस पर कब्जा करना हमारे लिए इसलिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि वहाँ बैठ कर पाकिस्तानी राष्ट्रिय राजमार्ग 1 को बाधित कर सकते थे और समय रहते हम कब्जा नहीं करते तो लेह और फिर सियाचिन क्षेत्र को भी पाकिस्तान से खतरा  हो सकता था। अगले दिन सुबह हम लोग काम्प्लेक्स 43 को देखने गए. ये काम्प्लेक्स LOC पर है जहाँ से पाकिस्तानी सिपाही अपनी चोव्कियों पर साफ़ तौर पर देखे जा सकते थे. ये भी अपने आप में यादगार अनुभव था.

हमें हर हाल में ये सुनिश्चित करना होगा की हम कभी भी अपने वीर जवानों की शहादत को विस्मृत न करें. उनको याद करते रहे उनके परिवारों को समय समय पर मिलते रहे. कारगिल के सभी शहीदों को शत शत नमन.  

10 comments:

  1. जय हिन्द
    भाई सच में आप के जज्बे को सलाम
    आप की यात्रा बहुत ही ज्ञानवर्धक है।आपसे बहुत कुछ सीखने की कोशिश करता हूँ। धन्य हूँ मैं जो मुझे आप जैसा बड़ा भाई मिला।

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  2. जय हिन्द
    भाई सच में आप के जज्बे को सलाम
    आप की यात्रा बहुत ही ज्ञानवर्धक है।आपसे बहुत कुछ सीखने की कोशिश करता हूँ। धन्य हूँ मैं जो मुझे आप जैसा बड़ा भाई मिला।

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  3. जय हिन्द
    भाई सच में आप के जज्बे को सलाम
    आप की यात्रा बहुत ही ज्ञानवर्धक है।आपसे बहुत कुछ सीखने की कोशिश करता हूँ। धन्य हूँ मैं जो मुझे आप जैसा बड़ा भाई मिला।

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  4. जय हिन्द
    भाई सच में आप के जज्बे को सलाम
    आप की यात्रा बहुत ही ज्ञानवर्धक है।आपसे बहुत कुछ सीखने की कोशिश करता हूँ। धन्य हूँ मैं जो मुझे आप जैसा बड़ा भाई मिला।

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  5. Rishi great contribution for enlightening us & giving tribute to all who sacrificed their life for the nation .

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  6. Rishi great contribution for enlightening us & giving tribute to all who sacrificed their life for the nation .

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  7. Rishi great contribution for enlightening us & giving tribute to all who sacrificed their life for the nation . Jai hind .

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  8. जय हिन्द जय भारत ,साहब

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