Monday 28 August 2017

कारगिल शहीद कैप्टेन अनुज नैय्यर को उनके जन्मदिन पर नमन

प्रिय मित्रों,
सादर नमस्कार !!!

आज ही के दिन यानि कि 28 अगस्त वर्ष 1975 को कारगिल युद्ध के नायकों में से एक कैप्टेन अनुज नैय्यर का जन्मदिन है. कारगिल युद्ध में कैप्टेन अनुज ने 9 पाकिस्तानी जवानों को मार कर  और पाकिस्तान के तीन बंकरों को नष्ट कर के दुश्मन के खेमे में तहलका मचा दिया था. चौथे बंकर को नष्ट करते समय अनुज वीरगति को प्राप्त हो गए थे. कैप्टेन अनुज नैय्यर को मरणपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. आज उनके जन्मदिन पर ऋणी राष्ट्र की ओर से उनको शत शत नमन. उस समय उनका परिवार दिल्ली के जनक पुरी में रहा करता था. उनका वो मकान आज भी वहां है, लेकिन उनकी माता जी अब वहां नहीं रहतीं.
पिछले दिनों मुझे उनकी माता जी श्रीमती मीना नैय्यर जी मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ काफी देर तक चर्चा हुई, आजकल वो पेट्रोल पंप को संभालतीं हैं जो भारत सरकार ने अनुज जी की शहादत पर उनके परिवार को आबंटित किया था. उनके कक्ष में चारों और अनुज जी की तस्वीरें मानो ये बयां कर रहीं थी की अनुज बस वहीँ मौजूद हैं. महावीर पुत्र को जन्म देने वाली और देश प्रेम के जज्बातों को भरने वाली ऐसी माता जी के चरणस्पर्श करके मन को सुकून प्राप्त हुआ. उनकी शहादत को राष्ट्र कभी भूलेगा नहीं, शहीद अनुज नैय्यर को पुन: शत शत वंदन.     

आज ही के दिन वर्ष 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत ने जम्मू कश्मीर “हाजी पीर” नामक दर्रे पर मेजर रंजित दयाल के नेतृत्व में विजय प्राप्त की थी. पिछले दिनों मेरी मुलाकात ब्रिगेडियर अरविंदर सिंह जी से हुई जिन्होंने हाजी पीर की इस इतिहासिक लड़ाई में भाग लिया था.
ये दिन भी भारत के इतिहास में सदैव यादगार रहेगा. भारत माता की जय.   


अमर शहीद कैप्टेन अनुज नैय्यर

अनुज जी की माता जी श्रीमती मीना नैय्यर जी के साथ लेखक
मेजर रणजीत दयाल

ब्रिगेडियर अरविंदर के साथ लेखक





Saturday 26 August 2017

महाराष्ट्र में स्थित अमर शहीद राजगुरु के घर का विडियो


प्रिय मित्रों

24 अगस्त को अमर शहीद राजगुरु का जन्मदिन था, इस पवित्र दिन पर नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से आपको उनके घर के दर्शन करवा रहा हूँ . जय हिन्द.



https://youtu.be/B-KLxJSlAYU

Friday 18 August 2017

जापान में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के स्मारक रेंकोजी मंदिर में नमन

मित्रों आज 18 अगस्त है और कहा जाता है की आज ही के दिन वर्ष 1945 में ताइवान में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जी का विमान दुर्घटना ग्रस्त हुआ था, यहाँ मैं पहले आप सभी को बता दूं के मेरा लक्ष्य केवल नेताजी को याद करने और और उनको ह्रदय से श्रधांजलि देने का है, क्यूंकि आज तक ये प्रमाणित नहीं हो पाया है कि नेताजी की मृत्यु इसी विमान दुर्घटना में हुई थी. 

जून में अपने टोक्यो (जापान) प्रवास के दौरान मैंने ये तय कर रखा था की नेताजी जी की याद में बने रेंकोजी मंदिर में मैं शीश नवाने अवश्य जाऊंगा. आख़िरकार लोगों से पूछता हुआ मैं इस पवित्र स्थल पर पहुँच ही गया. यहाँ आने वालों भारतीयों की सूचि में पंडित नेहरु, डाक्टर राजेन्द्र  प्रसाद, इंदिरा गाँधी और अटल बिहारी वाजपेयी सरीखे नेताओं के नाम प्रमुख है. भारत ही नहीं जापान में आज भी सुभाष बाबु को लोग बहुत सम्मान से याद करते हैं हर वर्ष उनके जन्मदिन 23 जनवरी को जापानी भारी संख्या में रेंकोजी में आते हैं और सुभाष बाबु को भावभीनी श्रधांजलि अर्पित करते हैं.  ये कहा जाता है की यहाँ नेताजी की अस्थियाँ एक कलश में रखी गयी हैं, इस बात की  पुष्टि हालाँकि मैं नहीं कर सकता. 

28 मार्च-30 मार्च वर्ष 1942 को टोक्यो के सानो होटल में "भारतीय स्वतंत्रा सम्मलेन" हुआ था जिसकी  अध्यक्षता रास बिहारी बोस ने की थी जिसमे उनके अलावा 18 अन्य भारतीय शामिल हुए थे. भारत को आज़ाद करवाने की ये बड़ी कोशिश थी. वर्ष 1942 के अंत में सुभाष बाबू भी जापान दौरे पर गए, सुभाष बाबू के जापानियों से प्रेम को सभी जानते हैं, जो सहयोग उनको जापान से मिला शायद ही किसी अन्य देश से मिला होगा. सुभाष बाबु का टोक्यो और जापान के अन्य कई भागों में आना हुआ था यहाँ तक की जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री हिडेकी तोजो से भी उनकी मुलाकात हुई थी. इसके बारे में विस्तार फिर कभी करूँगा. 

भारत माता के इस सच्चे सपूत को ऋणी देश का शत शत नमन. जय हिन्द जय भारत.




Wednesday 16 August 2017

गुजरात का भालका तीर्थ : जहाँ श्री कृष्ण ने किया था अपने प्राणों का त्याग

दोस्तों, आशा है आप सभी ने स्वतंत्रता दिवस और श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाया होगा. आज मै आपको श्री कृष्ण जी से जुड़े एक ऐसे स्थान पर ले कर चल रहा हूँ जहाँ से उन्होंने स्वर्ग लोग की ओर कूच किया था. इस स्थान का नाम है, “भालका तीर्थ”, ये गुजरात के “वेरावल” में स्थित है और प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ जी मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर है.

इस प्रसंग से तो आप सभी भली भांति परिचित होंगे की जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो रहा था तभी गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दिया था की जिस प्रकार से यादवों ने कुरु वंश का नाश किया है वैसे ही तुम्हारा यानि की यदुवंशियों का 36 वर्षों के पश्चात नाश हो जायेगा. समय चक्र ने जब 36 वर्ष पूरे किये तो उस समय यदुवंशियों में आपसी द्वेष चरम पर था जिससे खिन्न हो कर बलराम जी ने योग द्वारा शरीर का त्याग किया और श्री कृष्ण जंगल की ओर समाधी अवस्था में चले गए वहां एक पीपल के पेड़ के नीचे समाधी लगा ली, एक दिन “जरा” नामक शिकारी ने उनके बाएं पैर के तलुवे पर एक मृग का मुख समझ कर तीर चला दिया, जिससे भगवान कृष्ण का पैर घायल हो गया. ये सब देख शिकारी विलाप करने लगा तब श्री कृष्ण ने उसको बताया की तुम त्रेता युग में बाली थे और मै राम था., ये सब मेरी ही लीला थी. जिस पीपल के वृक्ष के नीचे  श्री कृष्ण बैठे थे वो वृक्ष आज भी इस मंदिर प्रांगण में मौजूद है. लगभग 5100 वर्ष पुराना ये पेड़ आज तक हरा भरा है जो अपने आप में चमत्कार है.


श्री कृष्ण ने जरा का अपराध क्षमा कर दिया और घायल पैर के साथ वहां से करीब 1.5  किलोमीटर दूर हिरण नदी पर जा कर अपने शरीर समेत स्वर्गलोक की ओर कूच कर गए. श्री कृष्ण के धरती से स्वर्ग प्रस्थान को द्वापर युग का अंत और कलयुग की शुरुआत माना जाता है. इसी हिरण नदी के तट पर आज भी उनके चरण दर्शन किये जा सकते हैं, इसी वजह से इस स्थान को “देहोत्सर्ग तीर्थ” भी कहा जाता है. आप जब भी भालका तीर्थ जाएं तो सोमनाथ दर्शनों के साथ साथ शेरों के लिए विश्व प्रसिद्द “गिर” अभ्यारणय और दीव जाना न भूलें. 



फोटो आभार श्री सोमनाथ ट्रस्ट 

फोटो आभार श्री सोमनाथ ट्रस्ट
















     

Saturday 5 August 2017

यूनेस्को विश्व विरासत स्थल : एलोरा की गुफाओं की सैर

प्रिय मित्रों,
सादर नमस्कार !!!

आज मैं आपको यूनेस्को विश्व विरासत में शामिल भारत वर्ष के ऐसे स्थान पर ले कर चल रहा हूँ जिसे देख कर आपको अपने भारतीय होने पर गर्व की अनुभूति होगी, जी हाँ आज मैं आपको ले कर चल रहा हूँ महाराष्ट्र के औरंगाबाद ज़िले में स्थित “एलोरा” की गुफाओं में. एलोरा को वेरुल के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन भारतीय शिल्प कला का अद्भुत नमूना “एलोरा” की गुफाएं अवश्य ही देखने लायक हैं. यहाँ कुल 34 गुफाएं हैं जिनकी उम्र 1400 वर्ष पुरानी है, जी हाँ, सही पढ़ा 1400 वर्ष!! पांचवी से ग्याहरवीं सदी के बीच बनी इन गुफाओं की कुल संख्या 34 है. अपनी पाषण शिल्प स्थाप्त्य कला की वजह से वर्ष 1983 में इन गुफाओं को यूनेस्को विश्व विरासत स्थल में स्थान दिया गया.

जिनमें 1 से 12 गुफाएं बौध धर्म से सम्बंधित हैं और एलोरा के दक्षिणी भाग में स्थित हैं, इसके बाद 13 से 29 गुफाएं हिन्दू धर्म से सम्बंधित हैं और एलोरा के मध्य भाग में स्थित हैं और अंत में 30 से 34 अंक की गुफाएं जैन धर्म से सम्बंधित हैं और एलोरा के उत्तरी भाग में स्थित हैं.
एलोरा में सबसे महत्वपूरण संरचना गुफा संख्या 16 में बना कैलास मंदिर है, जिसकी गणना विश्व की सबसे बड़े विखंड सरंचना यानि की “मोनोलिथिक स्ट्रक्चर” के रूप में होती है. इस कैलास मंदिर का निर्माण एक बड़े पहाड़ को ऊपर से नीचे तराशते हुए किया गया है. कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में करीब 200 वर्षों का समय लगा और 10 पीढ़ियों का जीवनकाल इसे बनाने में समर्पित हो गया. ऐसा माना जाता है की कैलास मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में राष्ट्रकूट राजाओं के वंशजों ने करवाया. 
    
एलोरा की गुफाएं तीन प्रमुख धर्मों हिन्दू, बौध और जैन का प्रतिनिधित्व करती हैं, कमाल की बात ये है के तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत पर भी इन्ही तीनों धर्मों के लोग जाते हैं. एलोरा की गुफाएँ देखने के लिए दिल्ली से सीधी ट्रेन और फ्लाइट की व्यवस्था है वैसे मुंबई से यहाँ की दूरी 380 किलोमीटर है और रोजाना कई सारी गाड़ियाँ मुंबई और औरंगाबाद के बीच चलती हैं. प्रसिद् घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग यहाँ से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. इसके अलावा कई सारे पर्यटन स्थल हैं औरंगाबाद में. तो कब जा रहें हैं आप एलोरा की गुफाएं देखने.






















कैलाश मंदिर में बना विराट शिवलिंग