Monday 29 May 2017

1965 में भारतीय प्रथम दल द्वारा एवेरेस्ट फ़तेह और मेजर हरी पाल सिंह अहलुवालिया


प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार !!

मई के महीने में अक्सर हमें पढने को मिलता है की एवेरेस्ट पर फलां फलां लोग चढ़ गए, इतनी बार चढ़ गए इत्यादि, ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि मौसम के हिसाब से मई का महीना विश्व के सबसे ऊँचे शिखर पर चढाई करने का सबसे माकूल समय होता है. चालू मई महीने में जहाँ एक ओर अरुणाचल प्रदेश की अंशुल जेम्सेंग्पा ने पांचवी बार एवेरेस्ट चढ़ने का और एक ही महीने में दो बार एवेरेस्ट चढ़ने का रिकॉर्ड कायम किया वहीँ उत्तराखंड के लवराज धरमसकत्तू ने छठी बार एवेरेस्ट चढ़ एक नया रिकॉर्ड कायम कर दिया है. अब तो एवेरेस्ट फ़तेह करने वाले भारतीयों की फेहरिस्त काफी लम्बी हो गयी है. लेकिन भारत द्वारा पहली बार चोटी फ़तेह करने की ख़बर का जो आनंद आया होगा यकीनन वो अलग ही रहा होगा.  
   
ऐसी ही एक खबर, जिसका इंतज़ार हर हिन्दुस्तानी बड़ी बेचैनी से कर रहा था, 20 मई 1965 में आई, जब प्रथम भारतीय दल की चार टोलियों में से पहली टोली (जिसकी अगुआई लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार चीमा कर रहे थे) ने एवेरेस्ट फ़तेह करने में कामयाबी पा ली. 1965 में भारत एवेरेस्ट फ़तेह करने वाला विश्व का चौथा देश बन गया. ये हम सभी के लिए गौरव का क्षण बन गया. इस दल में कुल नौ सदस्य थे और सभी शिखर चढ़ गए, ये भी एक रिकॉर्ड बना. दल का नेतृत्व कैप्टेन एम एस कोहली ने किया उनके अलावा दल में आठ अन्य सदस्य थे:
कर्नल अवतार सिंह चीमा, मेजर हरी पाल सिंह अहलुवालिया, अंग कामी, हरीश रावत, फु डोरजी, सोनम वांग्याल, नवांग गोम्बू, सोनम ग्यात्सो और सी पी वोहरा जी.

29 मई 1965 को इसी दल की चौथी टोली ने भी एवेरेस्ट फ़तेह कर लिया, आज उसी दल में शामिल के एक जांबाज़, बेख़ौफ़ और अत्यंत वीर सदस्य से आपका परिचय करवाता हूँ, उनका नाम है मेजर हरी पाल सिंह अहलुवालिया. एवेरेस्ट को पहली बार फ़तेह करने वाले सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोरगे ने भी इसे 29 मई को ही फ़तेह किया था, केवल वो वर्ष 1953 था. ये तो सभी को ज्ञात ही है के माउंट एवेरेस्ट विश्व का सबसे ऊँचा शिखर है जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर यानि की 29,002 फीट है. इसको नेपाली भाषा में सागरमाथा (अर्थात स्वर्ग का शीर्ष) और तिब्बत भाषा में चोमूलंगमा (अर्थात पर्वतों की रानी) कहा जाता है. माउंट एवेरेस्ट नेपाल और चीनी सीमा पर है.  

वर्ष 1996 में मेजर अहलुवालिया द्वारा लिखी गयी एक पुस्तक मेरे हाथ लगी जिसका शीर्षक था “Higher Than Everest” इसमें उनके एवेरेस्ट फ़तेह करने की पूरी कहानी को बहुत ही रोचक तरीके से बताया गया है. तभी से मैं इनका मुरीद हो गया, ये पुस्तक 1973 में आई थी और इसका आमुख तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने लिखा था.
 
मई 1965 में मेजर अहलुवालिया ने एवरेस्ट फतेह किया और सितंबर 1965 में उन्हें भारत पाकिस्तान युद्ध में शामिल होने का आदेश प्राप्त हो गया। अपनी जांबाजी का प्रदर्शन करते हुए उन्होनें दुश्मन से जमकर लोहा लिया। पर अचानक दुश्मन की एक गोली उनकी रीढ़ की हड्डी पर आ लगी जिसकी वजह से उस दिन से लेकर आज तक उनको व्हील चेयर का सहारा लेना पड़ता है। अपनी ज़िंदादिली और साहस के दम पर उन्होनें न केवल इस चुनौती को स्वीकार किया बल्कि दिल्ली के वसंत कुंज में इंडियन स्पाइन इंजरी हॉस्पिटल की स्थापना की जहाँ ऐसे मरीजों का इलाज किया जाता है। अपनी इसी ज़िंदादिली और साहसिक जज़्बे की वजह से उनको पद्म भूषण’, पद्म श्री और अर्जुन अवार्ड से नवाजा जा चुका है। वर्ष 2015 में इनसे पहली मुलाकात हुई और उसके बाद तो कई बार हो चुकी है. इनकी Higher Than Everest का नवीन संस्करण छपा है जिसमे इन्होने अपनी सिल्क रूट की यात्रा को भी शामिल कर लिया है. ये पुस्तक किसी ग्रन्थ से कम नहीं है हर युवा को इस पुस्तक को पढना चाहिए और इससे प्रेरणा लेनी चाहिए.


अपने साहसिक कार्यों और अद्मय साहस की वजह से मेजर अहलुवालिया न केवल मेरे बल्कि हर भारतीय के लिए एक आदर्श हैं. 

Friday 19 May 2017

उत्तराखंड चार धाम यात्रा सीरीज : यमुनोत्री

प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार !!

अपने वायदे अनुसार, आज आपको  उत्तराखंड के दूसरे धाम यमुनोत्री धाम की यात्रा पर ले कर चल रहा   हूँ. यमुना सूर्य और देवी संजना की पुत्री है और यम की बहन है, इसी वजह से इनको यमुना नाम मिला . यमुनोत्री का वास्तविक स्त्रोत्र एक बर्फ की जमी हुई झील है, जिसे चंपासर ग्लेशियर कहते हैं. यह “कालिंदी पर्वत”  पर स्थित है.  ब्रह्मांड पुराण और ॠग्वेद में भी “यमुना” का उल्लेख मिलता है। ऐसा भी माना जाता है की पाण्डव भी यमुनोत्री धाम की पावन यात्रा पर आए थे. भगवान श्री कृष्ण ने अपनी कई लीलाएँ यमुना के तट पर ही की थी. यमुना से उन्हें भी बहुत प्रेम था. इन सभी कारणों से हिन्दू शास्त्रों में “यमुना” को माँ का दर्जा दिया गया है.  हमारे देश में करीब 6 करोड़ लोग आजीविका के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से माँ यमुना पर आश्रित हैं.

यमुना यमुनोत्री मंदिर 10000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यमुनोत्री के कपाट भी अक्षय तृत्या पर खुलते हैं और भाईदूज  के दिन श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए जाते है और इस दौरान माँ यमुना कि मूर्ति को पास ही के खरसाली” गाँव में बड़े धूम धाम से ले जाया जाता है और फिर यहाँ के पंडित एवं पुरोहित इनकी पूजा करते है.

मेरे दिल्ली के मित्र शायद ये सोच रहे हैं के मैं भला किस यमुना की बात कर रहा हूँ, क्यूंकि दिल्ली आते आते यमुना का जल अत्यंत प्रदूषित हो जाता है, स्नान तो दूर, इसके जल का आचमन करते हुए भी दिल घबराता है. दोस्तों, यमुनोत्री जा कर यमुना का स्वच्छ और निर्मल जल देख कर आत्मा प्रसन्न हो जाती है. वहां पूजा के दौरान मैंने माँ यमुना से एक ही प्रार्थना करी कि माँ कभी मेरे शहर दिल्ली में भी ऐसी निर्मल धारा के साथ आओ. पर प्रदुषण तो मानव रचना है भला माँ को इसमें कैसे दोषी ठहरा सकते हैं??

यमुना नदी की कुल लम्बाई 1376 किलोमीटर है, उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली और अन्त: उत्तर प्रदेश  के इलाहाबाद में यमुना का संगम माँ गंगा के साथ हो जाता है. यमुनोत्री मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित है. एक ज़माने में वाहन केवल हनुमान चट्टी जाते थे वहां से मुख्य मंदिर की चढाई 14 किलोमीटर थी, अभी कुछ वर्ष पूर्व ही सड़क मार्ग को जानकी चट्टी तक विस्तृत कर दिया गया है, अब वाहन जानकी चट्टी तक जाते हैं. यहाँ से मुख्य मंदिर केवल 6 किलोमीटर रह गया है. जानकी चट्टी में गढ़वाल मंडल विकास निगम का रेस्ट हाउस है. यहाँ से बर्फ से ढकी चोटियाँ देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है. हमने ये यात्रा मई 2015 में की थी उस समय दिल्ली का तापमान लगभग 42 डिग्री था यहाँ जानकी चट्टी में रात को रजाई ओढ़ कर सोना पड़ा था.

पर अभी भी ये चढाई अच्छे अच्छों के पसीने छुड़ा देती है. यहाँ साफ़ लिखा है की अगर आपको ब्लड प्रेशर, शुगर या कोई अन्य बीमारी है तो आप खच्चर से जायें. बुजुर्गों के लिए यहाँ कंडी (टोकरी) भी मिल जाती है  जिसमे पीछे बैठ कर वो आराम से मंदिर तक पहुँच सकते हैं. रास्ते का नज़ारा तो मन को मोह लेता है. बर्फ से ढकी चोटियाँ चढाई कर रहे यात्रिओं में स्फूर्ति का नया संचार कर देती हैं

यमुनोत्री पहुंचते ही  सबसे पहले गौरीकुंड में स्नान करके यात्री अपनी यात्रा की थकान दूर करते है . मंदिर प्रांगण में एक विशाल शिला स्थल है और इसे “दिव्य शिला” के नाम से जाना जाता है, इस शिला को दिव्य ज्योति शिला के नाम से भी जाना जाता है .  माँ यमुना की पूजा करने से पहले भक्त इस शिला की पूजा करते है  . दिव्य शिला के निकट ही पानी के मुख्य स्त्रोतों में से एक सबसे सुप्रसिद्ध कुंड सूर्य कुंड है जो गरम पानी का स्त्रोत है . यह कुंड अपने उच्तम तापमान के लिए विख्यात है, कहा जाता है कि इस कुंड में स्वयं सूर्य भगवान एक किरण के रूप में विध्यमान है . भक्तगण देवी यमुना को प्रसाद के रूप में चढ़ाने के लिए कपडे कि पोटली में चावल बांध कर इसी कुंड के जल में पकाते है . देवी को प्रसाद चढ़ाने के पश्चात इन्ही पकाए गए चावलों को घर ले जाया जाता है और प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है

ज्यादा जानकारी के लिए आप गंगोत्री यमुनोत्री यात्रा पर बनी मेरी डाक्यूमेंट्री फिल्म भी देख सकते हैं जो यू ट्युब पर मेरे चैनल यानि की Exploring India with Rishi पर उपलब्ध है. या आप इस लिंक पर भी क्लिक कर के जा सकते हैं https://www.youtube.com/watch?v=_5B0DNoMXlc&t=25s.



जल्द ही आपको बद्री विशाल की यात्रा पर ले कर चलेंगे तब तक, जय बद्री विशाल.