Tuesday 28 March 2017

नवरात्रों के पावन अवसर पर माँ ज्वाला जी के चमत्कारी मंदिर में नमन

प्रिय मित्रों,
सादर नमस्कार!!
सर्वप्रथम हिन्दू नववर्ष विक्रमी संवत 2074, चैत्रीय नवरात्रे और गुड़ी पाडवा की हार्दिक बधाई. आने वाला वर्ष आप सभी के जीवन को खुशियों से भर दे.

आज का दिन बहुत विशेष एवं शुभ है, आज से माँ दुर्गा के नवरात्रे भी आरम्भ हो गए हैं, इसी पावन बेला पर आज आपको मैं माँ के एक स्थान पर कर चल रहा हूँ, जहाँ जाने के बाद ईश्वर के आस्तित्व पर उठने वाली तमाम शंकाओं का अंत हो जाता है. जी हाँ इस पुण्य जगह का नाम है हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले में स्थित ज्वाला जी का मंदिर. इस मंदिर की गणना माता के 52 शक्ति पीठों में होती है. कहा जाता है कि यहाँ माता जी की जिव्हा गिरी थी.  

इस मंदिर में कुल 11 ऐसे स्थान हैं, जहाँ से प्राकृतिक रूप से अग्नि की जोतों के रूप में माता यहाँ प्रकट हो रहीं हैं. ये अग्नि जोतें हजारों वर्षों से निरंतर प्रज्वलित हो रहीं हैं. अकबर भी माँ की गाथा सुन कर मंदिर आया उसने लोहे की मोटी मोटी चादरों से जोतों को ढकने की कोशिश की, इतना ही नहीं पानी की नहरें जोतों के ऊपर डलवा दी ताकि जोतें बुझ जायें, पर माँ के साक्षात् रूप में विराजी जोतें अविरल रूप से जलती रहीं और तभी से युगों युगों से जोतें निरंतर माँ के रूप में अपने भक्तों को आशीर्वाद दे रहीं हैं. ये सब देख अकबर अच्चम्भित हो गया और माता को भेंट स्वरुप सोने का विराट छत्तर लाया पर मन में अहंकार आ गया, छत्तर अर्पित करते ही वो एक ऐसी धातु में परिवर्तित हो गया जिसकी पहचान आजतक नहीं हो पाई है. आज भी वो छत्तर यहीं रखा है जो माता की कृपा और अकबर के अहम् को बयां कर रहा है.

मुख्य मंदिर में 7 जोतें और उसके पास ही ऊपर की और बने गोरख डिब्बी मंदिर में 3 जोतें और अंतिम जोत एक अन्य मंदिर जिसे महालक्ष्मी का मंदिर कहा जाता है वहां से निकल रहीं हैं. यहाँ मंदिर परिसर में एक अन्य मंदिर है जिसे शैया भवन कहा जाता है, कहा जाता है, यहाँ रोज़ रात्रि को माँ दुर्गा विश्राम करने आती हैं. सुबह जब मंदिर के कपाट खुलते हैं तो बिस्तर की चादर में सिलवटें मिलती हैं, प्रशाद का भोग लगा होता है और माता के लिए रखी दातुन भी इस्तेमाल की हुई होती है. अब इससे बडा और क्या सबूत चाहिए ईश्वर के होने का. ये सभी चमत्कार आप स्वयं भी देख सकते हैं.
भारत सरकार का तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग भी यहाँ वर्षों तक प्राकृतिक गैस की खोज में लगा रहा. उनको भी यही लगा के हो न हो यहाँ कहीं प्राकृतिक गैस के भंडार हैं जिसकी वजह से यहाँ माता की जोतें जलती रहती हैं. पर कई साल की मेहनत के बाद भी उनको यहाँ ऐसा कुछ नहीं मिला. वो भी समझ गए की ये माँ की कृपा और अजूबे के अलावा कुछ और नहीं है.

आप भी कभी समय निकाल कर माँ के इस अद्भुत नजारों को देखने अवश्य जायें. आप सभी के लिए नवरात्रे शुभ हों. जय माता दी.







Thursday 23 March 2017

शहीदी दिवस पर भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव की समाधी और उनके पैतृक निवास पर नमन

प्रिय मित्रों

सादर नमस्कार !!

23 मार्च के दिन का भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, इसी दिन वर्ष 1931 को लाहौर की जेल में भारत माता के तीन सपूतों भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गयी थी. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ऐसे नाम हैं जिनका क़र्ज़ हम भारत वासी कभी उतार ही नहीं सकते. 22-23 साल की अल्पायु में हँसते हँसते फांसी के फंदे को चूम को हमेशा के लिए मौत के आगोश में समा जाने वाले इन तीन महापुरुषों को हर दिन के चढ़ते सूरज के साथ हर देश प्रेमी नमन करता है.

असल में फांसी की तय तिथि 24 मार्च थी, परन्तु अंग्रेजी सरकार इतनी खौफज़दा थी, कि इन तीनों को फांसी एक दिन पहले यानी की 23 मार्च, 1931 को सायं 7.33 मिनट पर ही दे दी गयी. एक भारतीय होने के नाते इस इतिहासिक घटना की जानकारी तो हम सभी को होगी, पर जो जानकारी आज मै आपके साथ साँझा कर रहा हूँ वो शायद कम ही मित्रों को मालूम होगी, और वो है, इन तीन महान हुतात्माओं के जन्म स्थानों/पैतृक निवास स्थान. इतना ही नहीं आज आपको उस तीर्थ स्थान के भी दर्शन करवाऊंगा जहाँ इन तीनों का अंतिम संस्कार किया गया, जी हाँ उस पुण्य भूमि का नाम है फिरोजपुर स्थित हुसैनी वाला राष्ट्रिय शहीद स्मारक.
इतिहासकारों के अनुसार, लाहौर जेल में फांसी देने के बाद अंग्रेज सरकार ने इन तीनों के शवों के टुकड़े कर उनको बोरों में भर कर जेल के पिछले दरवाज़े से चुपचाप रावी नदी में बहा देने के लिए भेज दिए., उनको डर था कहीं कोई दंगा न भड़क जाए. पर रावी पानी कम था, कहीं शव ठीक से न बहें और कहीं लोगों के हाथ न पड़ जायें, इसीलिए, शवों को तुरंत ही हुसैनीवाला की और रवाना कर दिया गया. वहां पुलिस वालों ने मिट्टी का तेल डाल कर शवों से भरे बोरों को आग लगा दी, आग की लपटें देख वहां गाँव वाले आ गए, तभी पुलिस वालों ने इन अधजली लाशों को सतलुज में बहा दिया और भाग खड़े हुए, गाँव वालों को शक हुआ तो उन्होंने सतलुज से शवों को बाहर निकला और पहचान के बाद पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया.

इसी पावन पवित्र भूमि पर आज भी हर बरस मेले का आयोजन होता है जहाँ तीनों शहीदों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लोग अपनी भाव भीनी श्रधांजलि अर्पित करते हैं. आज भी इन शहीदों के सम्मान में 24 घंटें यहाँ अखंड जोत जलती रहती है, जो हमें याद दिलाती है के हम कभी भी इन वीरों के बलिदान को विस्मृत न करें. इस घटना को मैंने अपनी पुस्तक “देशभक्ति के पावन तीर्थ” के “हुसैनीवाला” अध्याय में और ज्यादा विस्तार से बताया है. किसी ने सही कहा है:

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का बाकी यही निशां होगा.

भगत सिंह जी का पुश्तैनी मकान पंजाब के खटकड कलां में है, यहाँ पंजाब सरकार ने एक म्यूजियम भी बनाया हुआ. सुखदेव जी का पूरा नाम सुखदेव थापर था और इनका घर लुधियाना पंजाब के “नौ घरा” चौड़ा बाज़ार में स्थित है और अंत में राजगुरु का निवास महाराष्ट्र के राजगुरु नगर में है जो पुणे से मात्र 44 किलोमीटर की दूरी पर है.

मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूँ के मुझे इन तीनों शहीदों के घरों की पवित्र भूमि पर नमन करने का मौका मिला है. आज मैं आपके यही ले कर चल रहा हूँ. मेरा आप सभी से हाथ जोड़ कर निवेदन है की आप अपने बच्चों को आज इन शहीदों के बारे में विस्तार से बताएं ताकि आज की पीढ़ी भी हमारे इन महान कर्मयोगियों के बारे में जान सके










सुखदेव थापर का पैतृक निवास

राजगुरु का
पैतृक निवास

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शहीदी दिवस के मौके पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को मेरा शत शत नमन.

Saturday 11 March 2017

वृन्दावन का निधि वन, जहाँ आज भी, कृष्ण, रोज रास करने आते हैं

प्रिय मित्रों
सादर नमस्कार !!
सबसे पहले होली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ, ईश्वर आपके जीवन को विभिन्न रंगों में रंग दे ऐसी मेरी कामना है. आज इस पावन पर्व पर मैं आपको श्री कृष्ण से जुड़े एक ऐसे अलबेले स्थान पर ले कर चल रहा हूँ जहाँ श्री कृष्ण रोजाना गोपियों के साथ आ कर लीला करते हैं. ये स्थल है श्री कृष्ण की नगरी वृन्दावन में बना “निधि वन”. ये स्थान इतना पवित्र है की यहाँ के कण कण में कृष्ण जी के प्रेम की उपस्तिथि को सहज ही महसूस किया जा सकता है.   

रोजाना होने वाली लीला वाले तथ्य पर यकीन न करने वालों के लिए “रंग महल” मंदिर एक जीते जागते साक्ष्य के तौर पर आज भी मौजूद है, जहाँ शाम सात बजे से पहले राधा माँ और कान्हा के लिए चन्दन की सेज को सजा दिया जाता है. ऐसी मान्यता है इस रंग महल राधा कृष्ण दोनों ही रोज़ रात में आते हैं. पलंग के पास में एक लोटा पानी, दातुन, पान और राधा जी के श्रृंगार का सामान रखा जाता है. सुबह पांच बजे जब इस रंग महल के कपाट खोले जाते हैं तो सारा सामान अस्त व्यस्त मिलता है, दातुन इस्तेमाल हुई अवस्था में होती है, श्रृंगार का सामान भी इस्तेमाल किया होता है और पान का कुछ हिस्सा भी खाया हुआ मिलता है. शाम की अंतिम आरती के बाद यहाँ ताला लगा दिया जाता है और पूरा निधि वन क्षेत्र पूरी तरह से बंद हो जाता है. यहाँ तक की संध्या पश्चात पशु पक्षी भी यहाँ नहीं जाते. आसपास के घरों में या तो खिड़की है ही नहीं यदि है तो उनके पट संध्या पश्चात बंद हो जाते हैं. कहने का अर्थ ये है किसी को भी संध्या से ले कर सुबह तक यहाँ देखने की अनुमति नहीं है. जिन लोगों ने इस प्रथा को तोडा यानी वे कृष्ण जी के प्रेम में उनके दर्शन पाने के लिए छुप के रात्री में निधि वन में रुक गए, या तो वो मानसिक रोगी हो गए और कुछ तो शरीर छोड़ गए. ऐसे भक्तों की समाधियाँ भी निधि वन में देखी जा सकती हैं.

इसी निधि वन में स्वामी हरी दास जी की भी समाधी है, बांके बिहारी जी का प्रकाट्य स्थल भी यहीं है. यहाँ बने छोटे छोटे पेड़ों की लताएँ टेढ़ी मेढ़ी यानी बिलकुल अलग सी दिखाई देती हैं ऐसा मानना है की यही लताएं रात्रि में कृष्ण जी की गोपियाँ बन जाती हैं और पूरा निधि वन श्री कृष्ण की रास स्थली. कुछ समय पहले ज़ी न्यूज़ की टीम इस पूरे तथ्य को विधिवध रूप से अपने कैमरे में कैद किया था वो विडियो यू ट्युब पर आज भी उपलब्ध है.

भारत में निधि वन के अलावा ऐसी के और जगह है जहाँ रात्रि में माँ दुर्गा आती हैं शयन करती हैं, सुबह बिस्तर पर सिलवटें होती हैं, और वहां भी पूजा का सामान इस्तेमाल किया हुआ मिलता है. इस जगह के बारे में आपको बताऊंगा पहले नवरात्रे वाले दिन यानी की 28 मार्च को.





जो लोग ईश्वर के आस्तित्व को नकारते हैं उन्हें ऐसे स्थानों पर अवश्य जाना चाहिए. होली की पुन: हार्दिक बधाई. जय श्री कृष्णा........




Monday 6 March 2017

कुदरत का करिश्मा-महाबलीपुरम का कृष्णा बटर बॉल

प्रिय मित्रों
सादर नमस्कार !!
फाल्गुन का महीना चल रहा है, अगर इसमें रंगों और कान्हा की बात न हो ऐसा हो नहीं सकता. आज मैं आपको भारत के एक ऐसे रहस्यमयी स्थान पर ले कर चल रहा हूँ जो सदियों से कौतुहल का विषय बना हुआ है. ये असल में एक चट्टान है जिसे कृष्णा बटर बॉल यानि की श्री कृष्ण का मक्खन का गोला कहा जा सकता है. ये चट्टान चेन्नई से मात्र 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित महाबलीपुरम में है. इस चट्टान का वजन लगभग 250 टन का है. ये एक दूसरी चट्टान के ऊपर चिपक कर टेढ़ी मुद्रा में सदियों से पड़ा हुआ है. इसकी ऊंचाई 6 मीटर है और चौड़ाई लगभग 5 मीटर की है. इस स्थान पर ये चट्टान करीब 1200 वर्षों से पडी हुई है.
आज तक कोई आंधी, तूफ़ान, भूकंप और यहाँ तक की सुनामी भी इसका कुछ बिगाड़ नहीं पाई है. अंग्रेजी शासन काल में जनता की सुरक्षा दृष्टि से इस चट्टान को यहाँ से हटाने के लिए तत्कालीन गवर्नर अर्थर हैवलोक ने सात हाथियों से इसको खिंचवाया, परन्तु, वे भी इसको हिलाने में असमर्थ रहे. पल्लव राजाओं ने भी कुछ ऐसा ही प्रयास किया था, पर उनको भी सफलता नहीं मिली. कहा जाता है की इसको कृष्णा बटर बॉल का नाम असल में तब मिला जब वर्ष 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी यहाँ आईं, तभी एक गाइड के मुख से अनायास निकल गया कृष्णा बटर बॉल और तभी से इसको इसी नाम से पुकारा जाने लगा. ये स्थान ऐ एस आई द्वारा संरक्षित है.

अगले सप्ताह होली है तो मेरा अगला ब्लॉग श्री कृष्ण से जुड़े एक हैरतंगेज स्थान से जुडा हुआ होगा जहाँ श्री कृष्ण आज भी रोज़ रात को गोपियों संग रास लीला करने आते हैं. कई मित्र तो समझ भी गए होंगे, विस्तार से अगले ब्लॉग में बताऊंगा तब तक जय श्री कृष्णा....