Thursday 9 April 2020

सरदार पोस्ट, गुजरात के शहीदों को शौर्य दिवस पर नमन

जनवरी 2020 में मैं दूसरी बार कच्छ के रण में था, इस बार मेरी तीव्र इच्छा थी रण में स्थित भारत पाकिस्तान बॉर्डर को देखने की और वहाँ बने ऐतिहासिक सरदार पोस्ट के दर्शन करने की, जहां 9 अप्रैल 1965 को सी आर पी एफ के छह जवान देश की सीमा की रक्षा करते हुए शहीद हो गए थे।
ये स्मारक कच्छ के रण में बने "इंडिया ब्रिज" से लगभग 80 किलो मीटर अंदर पड़ता है। 9 अप्रैल 1965 को पाकिस्तानियों की एक पूरी ब्रिगेड, जिसमें लगभग 3500 सैनिक थे, उन्होंने यहां बनी 'टाक' एवं 'सरदार पोस्ट' पर हमला बोल दिया था। उस समय तक बॉर्डर सिक्योरिटी फ़ोर्स, यानि की, बी एस एफ का गठन नही था और यहां की सीमा की रखवाली का जिम्मा केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल यानि की सी आर पी एफ पर था।
ये समय अत्यंत कठिन था, लेकिन हमारे रण बांकुरों ने अपने शौर्य से पाकिस्तानियों के इरादों को धूल चटा दी और उनके 34 सैनिकों को मार गिराया और 4 को ज़िंदा पकड़ लिया। इस कार्यवाही में हमारे भी छह जवान शहीद हो गए और 19 को पाकिस्तान ने बंदी बना लिया। लेकिन हमारे जाँबाज़ जवानों ने 16 घण्टे तक चली इस आमने सामने की लड़ाई में दुश्मन को खदेड़ने में अभूतपूर्व सफ़लता अर्जित की। ये घटना कोई आम घटना नही है, विश्व में पहली बार ये देखने को मिला जब किसी अर्ध सैनिक बल की छोटी सी टुकड़ी ने दुश्मन सेना की एक पूरी ब्रिगेड को ही खदेड़ दिया। इस काम को अंजाम केवल भारत माता के वीर सपूत ही दे सकते थे।
आज का दिन यानि की 9 अप्रैल सी आर पी एफ शौर्य दिवस के रूप में मनाती है और उन शहीदों को याद करती है, जिन्होंने इस महान कार्य में अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। वर्तमान में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल देश का सबसे बड़ा अर्ध सैनिक बल है।
इस युद्ध स्मारक पर जाना मेरे लिए किसी तीर्थ यात्रा से कम नही था। काले पत्थर पर इन वीर शहीदों की गाथा अंकित है। ये स्मारक कुछ कुछ लद्दाख में बने रेज़ांगला शहीद स्मारक की याद दिला गया, जहां मेजर शैतान सिंह ने अपने 114 वीर अहीर सैनिकों के साथ अपने प्राणों की आहुति दे कर देश की अस्मिता की रक्षा की थी।
सरदार पोस्ट के सभी शहीदों व वीरों को ऋणी राष्ट्र की ओर से शत शत नमन और सी आर पी एफ को इतनी तत्परता व बहादुरी से देश की सेवा करने के लिए सलाम।
इन छह शहीदों के नाम थे
लांस नायक किशोर सिंह
लांस नायक गणपत राम
सिपाही शमशेर सिंह
सिपाही ज्ञान सिंह
सिपाही हरि राम
सिपाही सिद्धवीर सिंह प्रधान
इन पंक्तियों से अपनी बात को विराम देना चाहूंगा:
कुछ तो बात है,
मिट्टी में मेरे वतन की।
उपजते हैं यहाँ शूरवीर,
देश पर जान कुर्बान करने वाले।।
जय हिन्द।













Wednesday 8 April 2020

बैरकपुर : मंगल पांडे का बलिदान स्थल


8 अप्रैल का दिन भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्यूंकी आज ही के दिन 1857 को भारत के स्वाधीनता की पहली सशस्त्र क्रांति के नायक मंगल पांडे को अंग्रेजों ने फांसी दे दी थी। पश्चिम बंगाल के बैरकपुर में वो स्थान आज भी मौजूद है जहां मंगल पांडे को फांसी दी गयी थी। कितने ही दिनों या कहें बरसों की कोशिशें जो हमारे क्रांतिकारी अङ्ग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ कर रहे थे, पल भर में खाक हो गयी। बैरकपुर में ही अंग्रेजों ने अपनी पहली सैनिक छावनी स्थापित की थी।

मंगल पांडे अंग्रेजों की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की पैदल सेना में सिपाही थे और बैरकपुर में नियुक्त थे. 20 मार्च 1857 को सैनिकों को एक नए प्रकार की “एन्फ़िलड” की बंदूकें दी गयी, जिसमे नए प्रकार के कारतूस दिए गए, जिन्हें खोलने के लिए मुंह से लगा कर दांतों का प्रयोग करना पड़ता था. यही बात हिन्दू ब्राहमण परिवार में जन्मे मंगल पांडे को चुभ गयी और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजा दिया. कई इतिहासकार इसे मात्र बगावत मानते हैं, जबकि अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध ये पहली सशस्त्र क्रांति थी।

जहाँ मंगल पांडे को फांसी दी गयी वो स्थान बैरकपुर की पुलिस अकादमी के अन्दर है. यहाँ उस जगह को देख कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, कैसे उस शूरवीर ने अकेले ही अङ्ग्रेज़ी हुकूमत को ललकारा होगा जबकि अपने अंत से वो अच्छी तरह से वाकिफ थे। भारतीय स्वतन्त्रता के एक सच्चे नायक मंगल पांडे को शत शत नमन।







साभार
देशभक्ति के पावन तीर्थ
लेखक : ऋषि राज
प्रभात प्रकाशन