Tuesday 13 February 2018

दिल्ली विश्व विद्यालय का वाईस रीगल लॉज: जहाँ कभी कैद थे शहीद ए आज़म भगत सिंह


आप सभी को ये तो मालूम है की भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेंबली यानि की आज के संसद भवन में बहरी अंग्रेजी हुकूमत को देश की आवाज़ सुनाने के लिए बम्ब धमाके किये थे और उसके बाद उन्होंने स्वयं को पुलिस के हवाले कर दिया था. इस केस की सुनवाई वाईस रीगल लॉज में हुई जहाँ वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के उप कुलपति यानि की वाईस चांसलर का दफ्तर है. आज मैं आपको उसी पवित्र कमरे (काल कोठरी कहें तो ज्यादा बेहतर होगा) के दर्शन करवाने ले चल रहा हूँ जहाँ भगत सिंह को कुछ दिनों के लिए कैद रखा गया यहाँ लगे बोर्ड को पढ़ कर पता चलता है की दिल्ली असेंबली केस की सुनवाई मात्र 2 महीनों में पूरी कर ली गयी (जो की पूरी तरह से दिखावा ही था क्यूंकि अंग्रेज तो पहले से ही भगत सिंह और बटुकेश्वर को दोषी मान चुके होंगे) और 12 जून 1929 को उन्हें मुजरिम भी करार दे दिया गया और फिर यहाँ से अविभाजित पंजाब (आज का पाकिस्तान) के मियांवाली जेल में स्थानांतरित कर दिया गया.

ये स्थान उत्तरी दिल्ली में विश्व विद्यालय मेट्रो स्टेशन से मात्र चंद मीटर की दूरी पर है. यकीन मानिए इस कोठरी में आ कर शरीर का रोम रोम सक्रिय हो गया और दिलों के धडकनें बढ़ सी गयी. कमरे में कहीं से भी हवा आने का स्थान नहीं है केवल एक छोटा जाला था, जिसे आजकल बंद कर दिया गया है जिसमें शायद खाना धकेल दिया जाता होगा. ये कमरा वाईस रीगल लॉज के बेसमेंट में बना हुआ है. वाईस रीगल लॉज का निर्माण वर्ष 1902 में हुआ. 1911 में जब देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित हुई तो ये वाइसराय का अधिकारिक निवास बन गया. 1912 से ले कर 1931 तक इसमें कुल 5 वाइसराय रहे. 1931 में गाँधी इरविन समझौता भी इसी इमारत में हुआ. इमारत की निर्माण शैली में अंग्रेजों की परंपरागत वास्तु कला की छाप साफ़ तौर पर दिखाई देती है. नेहरु गाँधी और अन्य कांग्रेसी नेताओं का यहाँ आना जाना लगा रहता था. 











दिल्ली विश्व विद्यालय की शुरुआत वर्ष 1922 में हुई और फिर वर्ष 1933 में इस ऐतिहासिक इमारत को दिल्ली विश्व विद्यालय को सौंप दिया गया. यहाँ भगत सिंह वाले कमरे के अलावा कई सारी ऐसी तस्वीरें भी लगीं हैं जो हमें इतिहास के कई सारे  महत्वपूर्ण पहलुओं से रूबरू करवाती है. मैं स्वयं को भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे भगत सिंह से जुड़े इस पवित्र स्थान पर नमन करने का मौका मिला. तस्वीरों के माद्यम से आप भी इस स्थान के दर्शन कीजिये. जय हिन्द.

Monday 5 February 2018

कैप्टेन कपिल कुंडू की शहादत पर उनको नमन

बीते रविवार को हमारे कायर पडोसी ने एक बार फिर सीज फायर का उलन्घन किया जिसमे हमारी सेना के 3 जवान और एक कैप्टेन शहीद हो गये इनमें एक की उम्र 42 वर्ष थी और बाकी तीन शूरवीरों की उम्र ने बीस के सांचे को पार भी नहीं किया था. किसी भी वीर की शहादत को कम या ज्यादा कर के नहीं आँका जा सकता पर इन सभी में एक ऐसा शख्स भी था जिसका मानना था की ज़िन्दगी लम्बी हो या न हो पर बड़ी जरूर होनी चाहिए और उसने ये कर दिखाया उस ने अपनी ज़िन्दगी को इतना बडा बना दिया की जब तक ये धरती ये चाँद सितारे रहेंगे उसका नाम भारत माता के सपूतों में गिना जायेगा, 22 वर्ष 11 महीने की आयु में देश के लिए शहीद होना उनको अमर कर गया है. आप और मैं इतने सौभाग्शाली नहीं हैं की दुनिया हमें सदैव याद रखेगी पर इन शहीदों की शहादत को हम सभी भारत वासी सदैव याद रखेगे. मात्र चार दिन पहले ही कपिल को लेफ्टिनेंट से कैप्टेन के पद पर उन्नति मिली थी. गुरुग्राम से 30 किलोमीटर दूर पटौदी के गाँव रणसिका में उनको अंतिम विदाई देते हुए उनकी माता जी ने कहा की कपिल को मैंने देश की हिफाज़त के लिए था और इस काम को उन्होंने बखूबी अंजाम दिया है और अब उनकी अंतिम विदाई मैं रो कर नहीं अपितु पूरे गर्व के साथ दूंगी उन्होंने एक टी वी चैनल से बात करते हुए कहाँ कि अगर उनका एक बेटा और होता तो उसे भी वो सेना में भेजती. सलाम है ऐसी शूरवीर माताओं को जो ऐसे शेरों को जन्म देती हैं जो हँसते हँसते देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देते हैं. कैप्टेन कपिल कुंडू के पिता का देहांत चार वर्ष पूर्व हो गया था उनकी दो बहनें और दोनों विवाहित हैं. आगामी 10 फरवरी को शहीद कपिल कुंडू का जन्मदिन है, स्वभाव से अंतर्मुखी कपिल, सेना प्रमुख के पद तक जाने की मंशा रखते थे. उनकी आखों की चमक उनके इस भाव को ओर मजबूती प्रदान करती थी. इस घटना में शहीद होने वाले अन्य तीन सैनिक थे रायफलमैन राम अवतार, रायफलमैन शुभम सिंह व् हवालदार रोशन लाल. इन चारों शूरवीरों को मेरे और सम्पुर्ण राष्ट्र की ओर से शत शत नमन.
ऋषि राज