Wednesday 31 August 2016

वर्ल्ड हेरिटेज : कालका शिमला रेलवे

प्रिय मित्रों

सादर नमस्कार!!

अपनी जून की पोस्ट में मैं आपको वर्ल्ड हेरिटेज रेलवे साइट्स नीलगिरी रेलवे और दार्जीलिंग हिल रेलवे की सैर पर ले गया था, आज एक अन्य यानि कालका शिमला रेलवे की सैर पर ले चलता हूँ. शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है जो 7116 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. 1864  में अंग्रेजों ने शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया और ये स्थान अंग्रेजों का मनपसंद हिल स्टेशन बन गया. शायद इसी वजह से अंग्रेजों ने शिमला को रेलवे से जोड़ने का निर्णय लिया, 1868 में इसके निर्माण का कार्य शुरू हो गया और अंत: नौ नवम्बर 1903 को इसका सञ्चालन शुरू हो गया. 

वर्ष 2003 में शिमला रेलवे स्टेशन पर  इसके सौ साल पूरे होने पर एक बडा जश्न भी मनाया गया था जिसमे तत्कालीन रेल मंत्री श्री नितीश कुमार भी शामिल हुए थे. सौभाग्यवश, मुझे भी उस कार्यक्रम में शामिल होने का मौका मिला था. इस कार्यक्रम की एक विशेषता ये थी की इसमें एक साधू, जिन्हें भल्कू बाबा के नाम से जाना जाता है, के परिवार को सम्मानित किया गया था जिनका इस रेलवे लाइन को बनाने में बहुत बडा हाथ था. भल्कू बाबा कोई इंजिनियर नहीं थे पर फिर भी इन्होने अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पहाड़ों से सुरंग निकालने का रास्ता बताया. अब प्रश्न ये है के रेलवे को उनकी आवश्यकता क्यों पड़ी, असल में सुरंग नंबर 33 जो कालका शिमला रूट की सबसे लम्बी सुरंग है और इसकी लम्बाई 1143.61 मीटर है, इसके निर्माण की जिम्मेदारी अंग्रेज इंजिनियर कैप्टेन बड़ोग को सौंपी गयी थी पर दुर्भाग्यवश उनसे दो सुरंगों का मिलान करने में चूक हो गयी, इसी चूक की वजह से उनपर अंग्रेजी हुकूमत ने उनपर एक रूपए का जुर्माना लगा दिया और इसी शर्मिन्दगी की वजह से उन्होंने आत्महत्या कर ली. उनकी याद में एक स्टेशन का नाम भी रखा गया है बड़ोग. कहा जाता है की आज भी वो सुरंग बड़ोग से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर है. 100 साल के कार्यक्रम स्टीम इंजन से एक विशेष गाडी शिमला से केतली घाट स्टेशन के बीच चलाई गई और केतली घाट पर खानपान की व्यवस्था रखी गयी जिसमे मुझे मशहूर ब्रिटिश मूल के लेखक मार्क टली और मशहूर कमेंटेटर श्री जसदेव सिंह से मिलने का भी मौका मिला. 

जुलाई 2008 में इसको UNESCO ने विश्व धरोहर यानी की वर्ल्ड हेरिटेज     घोषित कर दिया. 2 फीट और 6 इंच चौड़ी रेलवे लाइन पर दौड़ने वाली गाडी को “टॉय ट्रेन” भी कहा जाता है. पर्यटकों को बढ़िया सेवा देने हेतु कुछ ही वर्ष पूर्व रेलवे ने शताब्दी की तर्ज पर आधुनिक सुविधा से लैस एक गाडी भी चलाई है शिवालिक डीलक्स एक्सप्रेस जिसमे यात्रा करना एक यादगार अनुभव रहेगा. दिल्ली से कालका जाने वाली कालका मेल को इस गाडी से लिंक लिंक किया गया है.  
नवम्बर  2003 में  100 साला  जश्न के लिए  तैयार  विशेष स्टीम  इंजन  

लेखक  बड़ोग  स्टेशन  पर  वर्ष  2002

सुरंग  संख्या  33 के  बाहर  लेखक 






शिमला  स्टेशन  पर लेखक. वर्ष  2011
   

सौभाग्यवश, मुझे कालका शिमला रेलवे पर कई बार सफ़र करने का अवसर मिला है और यकीन मानिए, हर बार मुझे एक नए आनंद की अनुभूति हुई है. तो आप कब जा रहे हैं इस रूट को देखने.  

Tuesday 23 August 2016

अमर शहीद राजगुरु की वर्षगांठ पर उनके पैतृक नगर राजगुरु नगर में श्रधांजलि

प्रिय मित्रों
सादर नमस्कार !!!
आजादी की 70वीं वर्षगांठ चल रही है और कल यानी की 24 अगस्त को अमर शहीद राजगुरु का जन्मदिन है, इनका जन्म वर्ष 1908 में पुणे के पास खेड़ ज़िले में हुआ था, अब इस ज़िले का नाम इन्ही के नाम यानी राजगुरु नगर कर दिया गया है. इनके जन्मदिन के इस पावन अवसर पर आज मैं आपको उनको पैतृक निवास, जो की महाराष्ट्र के पुणे से मात्र 44 किलोमीटर की दूरी पर है , वहां ले कर चल रहा हूँ. 22 वर्ष की अल्पायु में अपने प्रिय मित्रों भगत सिंह और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को माँ भारती के लिए हँसते हँसते फांसी के फंदे पर झूल गए थे.

 आइए इनके पैतृक निवास पर बने इस संग्रहालय के दर्शन करें और इस हुतात्मा को अपनी श्रधांजलि अर्पित करें.

 जय हिन्द जय भारत.









Wednesday 17 August 2016

नौशेरा के शेर : ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान, महावीर चक्र

मेरे प्रिय मित्रों
सादर नमस्कार!!!

आज मैं आपको ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान के बारे में  बताऊंगा जिन्हें 1947 की पाकिस्तान के खिलाफ लड़ी गई पहली कश्मीर की लड़ाई में महावीर चक्र मिला था। ऐसा क्या था इस शूरवीर में, आईये मैं आपको बताता हूँ। दरअसल, जिन्नहा इनकी बहादुरी से इतने प्रभावित थे के उन्हें पाकिस्तानी सेना में सेना प्रमुख का पद ऑफर कर दिया जिसे ब्रिगेडियर उस्मान ने ठुकरा दिया और भारत माँ की सेवा का निर्णय ले लिया और पाकिस्तान की सेना के नौशेरा (जम्मू के पास) में छक्के छुड़ा दिए।इन्होंने प्रण लिया था की जब तक पाकिस्तान को खदेड़ नहीं देंगे तब तक ज़मीन पर ही सोयेंगे। 

इन सब बातों से चिढ़ कर कर जिन्नहा ने इनका सर काट कर लाने वाले को 50000 का इनाम घोषित कर दिया।
पर इस शेर ने हार नहीं मानी और पाकिस्तान को नौशेरा से खदेड़ दिया। इसी वजह से इनको नौशेरा का शेर भी कहा जाता है।

ब्रिगेडियर होने के बावजूद इन्होंने सैनिकों के साथ युद्ग लड़ा और वीरगति को प्राप्त हो गए। इनके जनाज़े में तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू और अबुल क़लाम आज़ाद भी शरीक हुए। बीते शनिवार को इनकी कब्र को तलाशने में थोडा वक़्त लगा पर आख़िरकार ढूंढ लिया और अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

आप भी अगर यहाँ सजदा करना चाहें तो दिल्ली में जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के गेट नंबर 18 से प्रवेश करते ही दायीं और मुड जाएं। दिल्ली मेट्रो का जामिया स्टेशन कुछ ही समय में खुल जायेगा। ये स्टेशन बिलकुल इनकी कब्र से लगता हुआ है।

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की शहादत को देश हमेशा याद रखेगा। उनको मेरा शत् शत् नमन्।

Friday 12 August 2016

देशभक्ति का महातीर्थ : काला पानी (सेल्लुलर जेल) पोर्ट ब्लेयर

प्रिय मित्रों
सादर नमस्कार !!!
आजादी की 70 वीं पावन वर्षगांठ को अब चंद घंटे ही बाकी रह गए हैं, तो क्यों न आज आपको एक ऐसी जगह पर ले जाया जाए आजादी का सबसे बडा पावन तीर्थ या कह सकते हैं महा तीर्थ है, जी हाँ ये है सेल्लुलर जेल यानि की “काला पानी” जो अंडमान द्वीप समूह में है. ये ऐसी जगह है जहाँ हमारे क्रांतिकारियों को शारीरिक और मानसिक रूप दोनों ही तरह से प्रताड़ित करने मे अंग्रेज़ सरकार ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। ये वही स्थान है, जो आज भी प्रत्यक्ष रूप से गवाही दे रहा है की कैसे हमारे वीरों ने उन तमाम मुसीबतों का सामना किया जिसकी कल्पना हम स्वप्न में भी नहीं कर सकते। अपनी इन्ही क्रूर सजाओं की वजह से अंडमान को काला पानी का दर्जा मिला। ।

इस जेल को काला पानी इसलिए भी कहा जाता है क्यूंकी इसकी दूरी भारत के मुख्य भूभाग से हजारों किलोमीटर की की है और वो भी चारो तरफ से पानी से घिरी हुई। पहली बात तो कोई भाग नहीं सकता और भाग भी गया तो भाग कर पानी मे कूदेगा और वैसे ही मर जाएगा। इस खौफ़नाक सोच के साथ इस जेल का निर्माण किया गया था। जेल के अन्दर तेल के कोहलू को दर्शाया गया है। जहां बैल की जगह कैदियों को जोता जाता था ताकि तेल निकाला जा सके। कोड़ो से रोजाना पीटना और भूखा रखना तो बहुत आम बात थी। जो जगह कल तक अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता का प्रतीक था वो आज भारतीय स्वतंत्र आंदोलन के शौर्य गाथा को समर्पित राष्ट्रीय समारक है।

सेल्यूलर जेल का निर्माण इस तरह से किया गया है की सारे सात ब्लॉक एक ही जगह आकर मिलते है जिससे कैदियों पर नज़र ज्यादा आसानी से रखी जा सके। एक कोठरी का साइज़ 13.60 फीट x 7.6 फीट है। इन कोठरियों का निर्माण इस तरह से किया गया था की कैदियो को आपस मे मेलजोल या बात करने का मौका ही ना मिले। बात करना तो दूर कैदी एक दूसरे की शक्ल तक नहीं देख सकते थे। यहाँ आज भी पग पग पर ऐसे निशान मिलते है जिन्हे देख कर भलि भांति अंदाज़ा लग जाता है की कितनी भयंकर प्रताड्ना दी होगी अंग्रेज़ो ने हमारे वीर और निर्भीक स्वतन्त्रता सेनानियों को। सेल्यूलर जेल को 1979 में राष्ट्रिय स्मारक घोषित किया गया.

अंदर प्रवेश करते ही दाहिने ओर एक संग्रहल्या बना हुआ है जिस में वीर क्रांतिकारियों का जीवन परिचय बताया गया है। थोड़ा आगे चलने पर बहुत सी कुर्सियां लगी हुई हें जहां रोज़ रात को लाइट एवं साउंड शो होता है जिसमे इस जेल और स्वतंत्र सैननियों के बारे में विस्तार से बताया जाता है। जैसे ही इसे पार करते हें उल्टे हाथ पर फांसी घर दिखाई देता है जहां आज भी फंदे लाटकाएँ हुए हें ताकि ये आभास हो सके के कैसे कैदियों को फांसी पर लटकाया जाता था। फांसी घर के ठीक सामने कोल्हू है जहां पुतले लगा कर दर्शाया गया है की कैदी कैसे तेल निकालते थे। हर कैदी का एक निश्चित कोटा होता था, किसी तो तेल निकालना होता या नारियल का रेशा बनाना होता था।

वीर सावरकर की कोठरी में पाँव रखते ही मैं बहुत भावुक हो उठा, वीर सावरकर की वीरता के किस्से तो बहुत सुने थे की कैसे वो रोजाना कोल्हू से तैल निकालने की सज़ा भुगता करते थे और कैसे उनके हाथों को बेड़ियाँ से बांध कर दीवार पर उल्टा खड़ा कर दिया जाता था ताकि वो किसी से भी बात न कर सके। वीर सावरकर की कोठरी में उनका एक चित्र टंगा है और उस पर पुष्प माला लटकी हुई है। वीर सावरकर की विलक्षण बुद्धि का आभास इसी बात से हो जाता है के अपने दस वर्षों के कारावास के दौरान उन्होने भारत माता की शान में कई कविताएं लिखी, वो इन पंक्तियों को कोयले से दीवार पर लिखते थे और फिर उनको कंठस्थ कर लेते थे। तीरथों के महा तीर्थ सेल्यूलर जैल एक वंदनिए भूमि है और जिसके महत्व को हमे कभी भी विस्मृत नहीं करना है अपितु ये हमारा कर्तव्य है के हम आने वाली नस्लों को इन महान क्रांतिकारियों के विषय में बताते रहें और देशभक्ति की लौ को कभी भी बुझने न दें. 














                              आजादी की 70वीं वर्षगांठ की बहुत बहुत बधाई!!!! जय हिन्द जय भारत !!!

Wednesday 10 August 2016

My Documentary : "My Journey to the splendid Tawang"

Dear friends i m glad to share that my documentary "My journey to the splendid Tawang" has crossed viewing  of 20,000 on youtube. It has become possible only because of your Good wishes.....

My FB page : Exploring India with Rishi.
My blog: exploringindiawithrishi.blogspot. in
My Youtube Channel: Rishi Raj
Twitter: Explore India 4.

You can view it on

https://youtu.be/5dEB0ly2BeM.

Friday 5 August 2016

कोलकाता भाग दो: नेताजी सुभाष म्यूजियम और मदर टेरेसा का मिशनरीज आफ चैरिटी

प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार!!!

अपनी कोलकाता यात्रा के अगले चरण में सबसे पहले मै आपको नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के निवास (नेताजी भवन) जो की अब एक म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया है वहां ले कर चलता हूँ. इसका निर्माण 1909 में नेताजी के पिता जी श्री जानकीनाथ बोस ने करवाया था. ये भवन कोलकाता के लाला लाजपत राज मार्ग (सिरानी) पर स्थित है. इस इतिहासिक भवन में नेताजी का दफ्तर, उनका शयन कक्ष और उनके द्वारा इस्तेमाल किये गए वस्त्र और उनकी बहुत से पुरानी तस्वीरें सहेज कर रखी गईं हैं. यहाँ हमें नेताजी के उज्जवल अतीत की झलक मिलती है. सुभाष बाबू द्वारा पहनी गयी “आजाद हिन्द फौज” की वर्दी भी यहाँ रखी है.

1941 में नज़रबंदी से बचने के लिए सुभाष बाबू बर्लिन के लिए यहीं से निकले थे. एक ज़माने में यहाँ महात्मा गाँधी और नेहरु भी आ चुके हैं. वर्ष 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिज़ो आबे भी यहाँ पधार श्रधांजलि दे चुके हैं. हमने भी सुभाष बाबू को भावभीनी श्रधांजलि दी और मदर टेरेसा के मिशनरीज आफ चैरिटी की और निकल पड़े.


मिशनरीज आफ चैरिटी का ये प्रधान कार्यालय है जो की आचार्य जगदीश चंदर बोस मार्ग पर स्थित है, इसकी स्थापना मदर टेरेसा ने वर्ष 1950 गरीबों, कोढइयों असहाय, अनाथों और बीमार लोगों के लिए की थी. इनका जन्म अगस्त 1910 में हुआ और 1997 में इनका देहवासन हो गया. आज कोलकाता में इनके 19 ऐसे सेवा केंद्र हैं. इसी स्थान पर मदर टेरेसा को दफनाया गया था. इनकी समाधी पर हर रोज़ देश विदेश से हज़ारों लोग आते हैं और उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं. अपनी इसी सेवा की वजह से मदर टेरेसा को वर्ष 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. आप भी कोलकाता जायें तो इन दो जगहों को देखना न भूलें. इसके अलावा काली घाट, बेलूर मठ, कोलकाता मेट्रो, हावड़ा ब्रिज, दक्षिणेश्वर काली, ट्राम भी अवश्य देखें और हाँ कोलकाता आए और रसगुल्ला न खाएं तो ऐसा हो नहीं सकता......के सी दास का रसगुल्ला खाने योग्य है. कहा जाता है रसगुल्ले का अविष्कार के सी दास के पिता नवीन दास ने किया था. 








Monday 1 August 2016

कोलकाता:- बैरकपुर और मंगल पांडे भाग एक



मंगल  पांडे जी को फांसी इसी स्थान पर दी गई थी. 





कोलकाता के प्रति हमेशा से ही मुझे एक अनोखा सा आकर्षण रहा है. एक अजीब सी कशिश है इस शहर में. वैसे तो पहले भी तीन बार जा चुका हूँ, पर कल चौथी बार जाना हुआ और इस बार सबसे पहले मैंने बैरकपुर जाने का चुनाव किया. बैरकपुर एक एतिहासिक स्थान है जहाँ भारतीय क्रांति की चिंगारी को भड़काने वाले क्रांतिकारी मंगल पांडे को अंग्रेजों ने फांसी पर चड़ा दिया था. यह छावनी अंग्रेजों द्वरा भारत में स्थापित पहली सैनिक छावनी थी.
मंगल पांडे अंग्रेजों की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की पैदल सेना में सिपाही थे और बैरकपुर में नियुक्त थे. 20 मार्च 1857 को सैनिकों को एक नए प्रकार की एन्फ़िलड की बंदूकें दी गयी जिसमे नए प्रकार के कारतूस दिए गए जिन्हें खोलने के लिए मुह से लगा कर दांतों का प्रयोग करना पड़ता था. यही बात हिन्दू ब्राहमण परिवार में जन्मे मंगल पांडे को चुभ गयी और उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजा दिया. कई इतिहासकार इसे मात्र बगावत मानते हैं जबकि अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध ये पहली सशस्त्र क्रांति थी.
जहाँ मंगल पांडे को फांसी दी गयी वो स्थान बैरकपुर की पुलिस अकादमी के अन्दर है. यहाँ उस जगह को देख कर रोंगटे खड़े हो गए और वो दृश्य मानस पटल पर अंकित होने लगे के कैसे मंगल पांडे अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता का शिकार हुए होंगे. इसी छावनी परिसर में एक मंदिर मिला जहाँ 1824 में एक “बिंदा तिवारी” नाम के क्रांतिकारी को फांसी पर लटकाया गया था यानी की 1857 से भी 33 साल पहले.....कमाल की बात पता चली जो की शायद इतिहास के पन्नों में भी ठीक से दर्ज नहीं है. हुगली नदी के किनारे ही मंगल पांडे उद्यान बना है जहाँ मंगल पांडे की मूर्ति लगी हुई है. यहाँ से निकल कर हमने बैरकपुर स्टेशन देखा और सीधे दक्षिणेश्वर काली मंदिर की और प्रस्थान किया. इस यात्रा को यादगार बनाने के लिए मेरे दो मित्रों राहुल रंजन और महेंद्र निरंजन का बहुत बहुत शुक्रिया.