Sunday 15 July 2018

लन्दन का वेम्बली स्टेडियम-इंग्लैंड को हरा यहीं जीता था भारत ने हॉकी का ओलंपिक्स गोल्ड

12 अगस्त 1948 को एक ऐसी घटना हुई थी जिसने सभी हिन्दुस्तानियों का सर गर्व से ऊँचा कर दिया. लंदन के वेम्बली स्टेडियम में एक लाख से ज्यादा दर्शक साँस रोक कर ग्रीष्मकालीन ओलंपिक्स के हॉकी के फाइनल मैच को देखने एकत्रित हुए थे. ज्यादातर दर्शक ब्रिटेन के थे, हो भी क्यूँ नहीं, आख़िरकार, उनका अपना देश यानी की इंग्लैंड इस फाइनल में खेल रहा था. इंग्लैंड की टक्कर एक ऐसे देश के साथ हो रही थी जिसे उसने करीब 200 वर्षों तक ग़ुलामी की जंजीरों में बांध कर रखा था. जिस देश से इंग्लैंड का मुकाबला था उस देश का नाम था "भारत", जी हाँ, अपना भारत.

देश को आज़ाद हुए अभी एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ था, देश आजादी के बाद हुए दंगों और पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में छदम लड़ाई छेड़े जाने जैसी जटिल चुनौतियों से जूझ रहा था, उस समय अपना देश, कुल मिल कर अति अव्यवस्था का शिकार हुआ पड़ा था. ऐसे में भला कौन हॉकी टीम का साहस बढाने आगे आता. आज मैं आपको लन्दन के वेम्बली स्टेडियम ले कर चल रहा हूँ, जहाँ ये एतिहासिक मैच खेला गयाथा.

हमारी हॉकी टीम के सभी 16 खिलाड़ी किसी शूरवीर से कम नहीं थे, उनको ये बात भली भांति मालूम थी की वो भले ही युद्ध के मैदान पर अंग्रेजों को ज्यादा टक्कर नहीं दे सके पर आज वो दिन आ गया था, जब उन्हें एक सच्चे हिन्दुस्तानी होने का क़र्ज़ चुकाना था और हर हाल में खेल के इस मैदान, यानि की वेम्बली के मैदान पर इंग्लैंड को धूल चटानी ही थी और अपने अपमान का बदला लेना था. फिर क्या था, भारत के ये जांबाज़ खिलाडी, इस मैच में, खिलाडी नहीं, अपितु एक योद्धा की भांति उतरे और इंग्लैंड की टीम को 4-0 से एक तरफ़ा शिकस्त दे दी.

ये जीत भारत के लिए अत्यंत असाधारण थी, क्यूंकि भारत ने न केवल आजादी के बाद एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में हॉकी ओलंपिक्स में अपना पहला गोल्ड मैडल जीता था, बल्कि एक ऐसे प्रतिद्वंदी को हराया था जिसने हमने कई वर्षों तक कई सारे घाव दिए थे. इस जीत ने जैसे उस घाव पर थोडा मलहम लगा कर हमारी पीड़ा को थोडा कम कर दिया था. भारत की ओर से सर्वाधिक 2 गोल बलबीर सिंह सीनियर जी ने किये थे, और एक एक गोल पट्रीक जेनसन और तरलोचन सिंह जी ने किए थे.

आज इस मैच के 16 खिलाडिओं में से केवल दो खिलाडी ही जीवित बचे हैं पहले श्री बलबीर सिंह जी और दुसरे केशव दत्त. 95 वर्ष की आयु में बलबीर सिंह जी आज भी उर्जावान और स्वस्थ हैं और चड़ीगढ़ में रह रहे हैं. पिछले दिनों उनका आशीर्वाद लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. जब इस ऐतिहासिक मैच की चर्चा शुरू हुई तो उनकी आँखों में चमक आ गयी और बड़े गर्व उन्होंने बताया की जब तिरंगा फहराया जा रहा था तो ऐसा लग रहा था की तिरंगे के साथ साथ वो भी ऊपर जा रहे थे. वाकई ये क्षण न केवल बलबीर सिंह जी बल्कि हर हिन्दुस्तानी के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं. केशव दत्त जी भी करीब 93 साल के हो चुके हैं और कोलकता में रह रहे हैं. 

एक भारतीय होने के नाते आगामी 12 अगस्त को हम सभी को इस जीत को याद करना चाहिए और इसका जश्न मनाना चाहिए और अगर हो सके तो अपने दफ्तर, अपने मोहल्ले में हमें तिरंगा फहराना चाहिए. वैसे अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म गोल्ड जो इसी जीत को समर्पित है जो 15 अगस्त को रिलीज़ हो रही है.

आज की युवा पीढ़ी आज के युवा खिलाडियों से तो भली भांति परिचित हैं, पर उन्हें हमारे स्वर्णिम इतिहास और पुराने खिलाड़ियों से परिचित करवाना हम सभी का कर्तव्य बनता है. 12 अगस्त 2018 का मुझे तो बेसब्री से इंतज़ार है जब दिल्ली में बलबीर सिंह जी की जीवन गाथा का विमोचन होगा और इतिहास के इस स्वर्णिम पल को पुन: बलबीर सिंह जी के सानिध्य में जीने का मौका मिलेगा. हो सके तो आप भी 12 अगस्त को इस जीत को याद करते हुए कुछ न कुछ कार्यक्रम अवश्य आयोजित करें. वैसे भी 12 अगस्त को रविवार है और देश आजादी के जश्न की तैयारी में देशभक्ति के रंग में सरोबार होगा.
जय हिन्द. जय भारत.













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