Sunday 1 July 2018

परमवीर चक्र से समान्नित अमर शहीद अब्दुल हमीद के जन्मदिन पर उनको नमन

आज भारत माता के एक ऐसे शूरवीर का जन्मदिन है जिनकी वीरता की मिसाल भारत के इतिहास में विरले ही देखने को मिलती है। इनका नाम है कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद। इनका जन्म 1 जुलाई 1933 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर ज़िले में हुआ था। अपनी पुस्तक देशभक्ति के पावन तीर्थ में उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें आप से साझा कर रहा हूँ।

1965 भारत-पाकिस्तान के युद्ध में असल उत्तर में दुश्मन के लिए कब्र खोदी कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद ने। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जिले के धामूपुर में 1 जुलाई, 1933 को हुआ था। छह फीट दो इंच लंबी कद-काठी के अब्दुल हमीद शुरू से ही देश के लिए कुछ करना चाहते थे। सेना में आने से पहले यह दर्जी का काम किया करते थे।चौदह वर्ष की आयु में उनका विवाह रसूलन बीबी से हो गया और उनके पाँच बच्चे हुए-एक बेटी और चार बेटे। फिर एक दिन जब सेना का भर्ती कैंप इनके गांव में लगा तो मानो उनकी जन्म-जन्मांतर की इच्छा पूरी हो गई।सन् 1962 के युद्ध में भारत के लिए कुछ ख़ास न कर पाने का मलाल उनके मन में था और हर पल देश के लिए कुछ कर दिखाने की सोचते रहते थे।1962 के युद्ध में इनकी नियुक्ति नेफा के थेग ला रिज क्षेत्र में हुई।

10 सितंबर, 1965 को उन्हें खेमकरण सेक्टर के असर उत्तर में अपनी रेजीमेंट 4 ग्रेनेडियर्स के साथ भेजा गया, जहां यह अपनी जीप से जो कि मोबाइल रॉकेट लांचर (आर. सी. एल. गन)से लैस थी, जा-जाकर दुश्मनों के पैटन टैंक को निशाना बनाती थी। कहा जाता है कि उन्होंने अपने दम पर दुश्मन के सात पैटन टैंकों को धूल में मिला दिया और फिर दुश्मन ने उन्हें अपना निशाना बना डाला और अंततः 10 सितंबर, 1965 को अब्दुल हमीद वीरगति को प्राप्त हो गए। उनको अपने सर्वोच्च बलिदान के लिए 'परम वीर चक्र' से नवाज़ा गया। इस युद्ध में पाकिस्तान ने भारत के लगभग 540 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्ज़ा किया तो वहीं भारतीय सेना ने पाकिस्तान के 1940 वर्ग किलोमीटर पर कब्ज़ा कर लिया।

असल उत्तर में जहां अब्दुल हमीद ने बलिदान दिया, वहां भारतीय सेना ने शहीद स्मारक का निर्माण किया हुआ है। वहाँ उनकी मज़ार है, जहाँ हज़ारों लोग हर वर्ष अपना शीश नवाने आते हैं। यह स्थान किसी पावन तीर्थ से कम नहीं है। हर हिंदुस्तानी को यहां अवश्य जाना चाहिए। असल उत्तर की अमृतसर से दूरी मात्र 60 किलोमीटर है अमृतसर देश के सभी प्रमुख हिस्सों से जुड़ा हुआ है।

असल उत्तर में तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल हरबक्श सिंह ने असर उत्तर के खेतों में नहरों का पानी डलवा कर ऐसी व्यूह रचना तैयार की जिसमें पाकिस्तान के पैटन टैंक खिलौनों की भाँति फँसकर रह गए। असर उत्तर के पास भिखीविंड गांव में पैटन टैंकों की कब्रगाह बना दी गई थी। यहाँ करीब 97 पाकिस्तानी पैटन टैंकों को लाइन में खड़ा किया गया। युद्ध इतिहास में इतने सारे टैंकों को नेस्तनाबूद करने का यह अनूठा एवं विरला मौका था।
साभार
देशभक्ति के पावन तीर्थ
प्रभात प्रकाशन
Exploring India with Risshi

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