प्रिय मित्रों
सादर नमस्कार !!
23 मार्च के दिन का भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, इसी दिन वर्ष 1931 को लाहौर की जेल में भारत माता के तीन सपूतों भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गयी थी. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ऐसे नाम हैं जिनका क़र्ज़ हम भारत वासी कभी उतार ही नहीं सकते. 22-23 साल की अल्पायु में हँसते हँसते फांसी के फंदे को चूम को हमेशा के लिए मौत के आगोश में समा जाने वाले इन तीन महापुरुषों को हर दिन के चढ़ते सूरज के साथ हर देश प्रेमी नमन करता है.
असल में फांसी की तय तिथि 24 मार्च थी, परन्तु अंग्रेजी सरकार इतनी खौफज़दा थी, कि इन तीनों को फांसी एक दिन पहले यानी की 23 मार्च, 1931 को सायं 7.33 मिनट पर ही दे दी गयी. एक भारतीय होने के नाते इस इतिहासिक घटना की जानकारी तो हम सभी को होगी, पर जो जानकारी आज मै आपके साथ साँझा कर रहा हूँ वो शायद कम ही मित्रों को मालूम होगी, और वो है, इन तीन महान हुतात्माओं के जन्म स्थानों/पैतृक निवास स्थान. इतना ही नहीं आज आपको उस तीर्थ स्थान के भी दर्शन करवाऊंगा जहाँ इन तीनों का अंतिम संस्कार किया गया, जी हाँ उस पुण्य भूमि का नाम है फिरोजपुर स्थित हुसैनी वाला राष्ट्रिय शहीद स्मारक.
इतिहासकारों के अनुसार, लाहौर जेल में फांसी देने के बाद अंग्रेज सरकार ने इन तीनों के शवों के टुकड़े कर उनको बोरों में भर कर जेल के पिछले दरवाज़े से चुपचाप रावी नदी में बहा देने के लिए भेज दिए., उनको डर था कहीं कोई दंगा न भड़क जाए. पर रावी पानी कम था, कहीं शव ठीक से न बहें और कहीं लोगों के हाथ न पड़ जायें, इसीलिए, शवों को तुरंत ही हुसैनीवाला की और रवाना कर दिया गया. वहां पुलिस वालों ने मिट्टी का तेल डाल कर शवों से भरे बोरों को आग लगा दी, आग की लपटें देख वहां गाँव वाले आ गए, तभी पुलिस वालों ने इन अधजली लाशों को सतलुज में बहा दिया और भाग खड़े हुए, गाँव वालों को शक हुआ तो उन्होंने सतलुज से शवों को बाहर निकला और पहचान के बाद पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया.
इसी पावन पवित्र भूमि पर आज भी हर बरस मेले का आयोजन होता है जहाँ तीनों शहीदों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लोग अपनी भाव भीनी श्रधांजलि अर्पित करते हैं. आज भी इन शहीदों के सम्मान में 24 घंटें यहाँ अखंड जोत जलती रहती है, जो हमें याद दिलाती है के हम कभी भी इन वीरों के बलिदान को विस्मृत न करें. इस घटना को मैंने अपनी पुस्तक “देशभक्ति के पावन तीर्थ” के “हुसैनीवाला” अध्याय में और ज्यादा विस्तार से बताया है. किसी ने सही कहा है:
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का बाकी यही निशां होगा.
भगत सिंह जी का पुश्तैनी मकान पंजाब के खटकड कलां में है, यहाँ पंजाब सरकार ने एक म्यूजियम भी बनाया हुआ. सुखदेव जी का पूरा नाम सुखदेव थापर था और इनका घर लुधियाना पंजाब के “नौ घरा” चौड़ा बाज़ार में स्थित है और अंत में राजगुरु का निवास महाराष्ट्र के राजगुरु नगर में है जो पुणे से मात्र 44 किलोमीटर की दूरी पर है.
मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानता हूँ के मुझे इन तीनों शहीदों के घरों की पवित्र भूमि पर नमन करने का मौका मिला है. आज मैं आपके यही ले कर चल रहा हूँ. मेरा आप सभी से हाथ जोड़ कर निवेदन है की आप अपने बच्चों को आज इन शहीदों के बारे में विस्तार से बताएं ताकि आज की पीढ़ी भी हमारे इन महान कर्मयोगियों के बारे में जान सके
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सुखदेव थापर का पैतृक निवास |
राजगुरु का |
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शहीदी दिवस के मौके पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को मेरा शत शत नमन.
Bharat Mata ki Jai . Jai Hind
ReplyDeleteBharat Mata ki Jai . Jai Hind
ReplyDeleteSir ji aapke is kadam ki jitni sarahna ki jaye utni kam hai
ReplyDeleteRishi
ReplyDeleteapke deshbhaki ke jajbe ko salaam.Vande matram
deshbhakti
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