Sunday, 12 November 2017

जापान के टोयोटा कार म्यूजियम की सैर

प्रिय दोस्तों,
आज के युग में कारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है, भारत में एक ज़माना था केवल गिनती की गाड़ियाँ दिखती थीं जैसे की एम्बेसडर और फ़िएट. फिर वर्ष 1981 में आगाज़ हुआ मारुती सुजुकी का जिसने भारत में एक क्रांति ला दी और यात्री कारों में एक नए अध्याय का श्री गणेश हुआ. मारुती ने जिस समय भारत में प्रवेश किया लगभग उसी समय एक और कम्पनी भी भारत में प्रवेश पाना चाहती थी पर शायद आर्थिक नीतियों और बंद बाज़ार अवधारणा के तहत उसको प्रवेश नहीं मिल सका. उस कम्पनी का नाम था “टोयोटा”, सुजुकी की भांति टोयोटा भी एक जापानी कंपनी है जो आज विश्व में सबसे ज्यादा वाहनों का निर्माण करती है जो इसे विश्व की सबसे बड़ी कार निर्माण करने का गौरव प्रदान करती है.
आज मैं आपको “टोयोटा” की कहानी सुनाने जा रहा हूँ, 11 जून 1994 को जापान के नागोया शहर में टोयोटा द्वारा एक म्यूजियम की स्थापना की गयी जिसमे टोयोटा की यात्रा को बखूबी दिखाया गया है. दरअसल, टोयोटा मोटर कॉर्पोरेशनके की विधिवत स्थापना किइचिरो टोयोडा ने इसी स्थान पर की थी. इस यात्रा के असली नायक रहे किइचिरो टोयोडा के पिता साकिची टोयोडा, जिन्होंने टोयोटा समूह की नीव पहले पहल कपडा उद्योग पर रखी. वर्ष 1911 में साकिची टोयोडा पहले स्वचलित कपडा बुनने वाली मिल की स्थापना की. साकिची के आविष्कारों ने जापान के कटाई बुनाई उद्योग के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई थी. अपने जीवन काल में साकिची कई सारे पेटंट अपने नाम किए.
किइचिरो टोयोडा, ने अपने पिता के सपने को चुनौती के रूप में अपनाया । 1 सितम्बर 1933 ऑटोमोटिव प्रोडक्शन डिवीज़न की स्थापना की और जापान की जनता के लिए पहली कार बनाने का मुश्किल काम शुरू हुआ. शेवरले कार के तमाम पुर्जों को अलग किया गया और उनके रेखा चित्र तैयार किये गए. अंत:, किइचिरो टोयोडा की टीम ने 1935 में जापान का पहला प्रोटोटाइप ऑटोमोबाइल इंजन विकसित किया, उन्होंने लगभग असंभव को पूरा किया टोयोडा की पहली प्रोटोटाइप ऑटोमोबाइल की रचना, मॉडल ए1 की कल्पना की गई, डिजाइन किया गया और सिर्फ पांच वर्षों में आरंभ से अंत तक बनाया ।
1936 में, जब साकिची टोयोडा के बेटे किइचिरो टोयोडा ने कारों का निर्माण शुरू करने का फैसला किया तो उन्हें अपने नए उद्यम के लिए एक नाम/ प्रतीक चिन्ह की आवश्यकता थी। इसके लिए, प्रतियोगिता आयोजित की गई जीतने वाले डिजाइन में "टोयोटा" शब्द शामिल हुआ इस प्रकार से "डा" की जगह “टा” ने ले ली और टोयोडा-टोयोटा हो गया. इस म्यूजियम में हैंडलूम मशीनों से ले कर आधुनिक कार निर्माण तक की कहानी दर्शाई गयी है. मैंने भी यहाँ रुई से धागा बनाने की तकनीक पर हाथ आजमाया और सफलता पाई.
वक़्त के साथ कैसे कैसे टोयोटा अपनी तकनीक, इंजन, सीटों, टायरों और यात्री सुरक्षा में सुधार करती गयी उसका सिलसिलेवार प्रदर्शन इस म्यूजियम में किया गया है. इतना ही नहीं वर्ष 1911 में बनी ईंटो की दिवार को आज भी इस म्यूजियम के अन्दर सहेजा हुआ है. आखिर में एक सोवेनिएर शॉप भी है जहाँ आप यादगारी के तौर पर कई सारी वस्तुएं खरीद सकते हैं.
आज के युग में टोयोटा की गाड़ियाँ केवल भारत ही विश्व भर में धूम मचा रहीं हैं. अपनी क्वालिटी, सर्विस और ग्राहकों के प्रतिबद्धता टोयोटा को विश्व स्तरीय बनाए हुए है. तो आईये आप भी मेरे साथ इस म्यूजियम का आनंद लीजिये.













9 comments:

  1. Great endeavor Sir by writing blog on cross border issues

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया दीपक जी

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया पूजा जी

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  3. Good Informative Post Sir
    Thanks for sharing here

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद विनोद जी

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  4. Toyota is really a different and special brand.👍

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  5. Thank you for sharing such a real success story & beautiful pics of museum.It shows that how beautifully Toyata & Japan has valued and cherished it's family treasure and it's stunning history respectively.But it's hard to believe that we do not have any museum in India of any of the most popular Indian car companies with it's worth remembering history except for Vintage Car collection that too includes non Indian automobiles.

    Regards
    Sweta

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