Exploring India with Rishi
प्रिय मित्रों
सादर नमस्कार!!
आज मैं आपको दक्षिण भारत की सैर करवाता हूँ, सबसे पहले आपको ले कर चलते हैं भारत के एक मात्र ऐसे मंदिर में जो न केवल एक ज्योतिर्लिंग है अपितु उसकी गणना चार धामों में भी होती है, जी हाँ, इस मंदिर का नाम है “रामानाथ स्वामी मंदिर” ये रामेश्वरम में स्थित है। यह मंदिर श्री राम व शिव को समर्पित है। ऐसी मान्यता है की मुख्य शिवलिंग की स्थापना श्री राम जी ने माता जानकी के साथ स्वयं अपने हाथों से की है। यहाँ का प्रांगण विश्व का सबसे लम्बा प्रांगण है. इस मंदिर में कुल बाईस कुएं हैं जिसके जल से बारी- बारी स्नान करना होता है। आश्चर्य की बात यह है कि हर कुएं के जल का स्वाद और तासीर अलग है। मुझे यहाँ दो बार दर्शनों का सौभाग्य मिल चुका है.
पहला स्नान मंदिर के ठीक सामने समुद्र में करना होता है। मंदिर बहुत विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है और इसकी गिनती हिन्दुओं के प्रमुख मंदिरों में होती है.
रामेश्वरम भारत के 11वें राष्ट्रपति डॉ॰ ऐ पी जे अब्दुल कलाम साहब का जन्म स्थल भी है, यहाँ उनका पैतृक निवास है, अब तो उनके इंतकाल के बाद उनका स्मारक भी यहीं रामेश्वरम में बना दिया गया है. डॉ॰ कलाम का बचपन अभावों में बीता। पैसे कमाने के लिए वो सुबह- सुबह उठके रामेश्वरम स्टेशन जाते और रेलगाड़ी में मद्रास से आने वाले अखबारों को लेते और बांटने निकल पड़ते। इस काम को वो अपने जीजा जी के सहयोग से करते थे ताकि चार पैसे बन जाए और उनकी शिक्षा में मदद हो सके। उनके पिता पेशे से मछुआरे थे। कहा जाता है कि दृन्द संकल्प के सामने सब कुछ छोटा है जिसकी मिसाल डॉ॰ कलाम हैं। उनसे हुई मुलाकातों ने मेरे जीवन को नया मोड़ मिला. रामेश्वरम में ही दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर जो कि रावण के भाई विभीषण को सपर्पित है.
रामेशवरम से धनुषकोटी 19 कि॰मी॰ की दूरी पर है, जो की भारत का अंतिम छोर है. इतना ही नहीं यहाँ धनुषकोटि रेलवे स्टेशन था जो की 1964 में आए तूफ़ान में पूरी तरह बर्बाद हो गया और पटरियाँ तक उखड़ गईं थी। आज भी उखड़ी हुई पटरियाँ रामेश्वरम और धनुषकोटी के बीच में पड़ी देखी जा सकती हैं। 1964 तक रेलगाड़ी मद्रास एग्मोर से धनुषकोटि तक आती थी. 1964 के उस तूफ़ान में पूरी की पूरी रेलगाड़ी ही समुद्र ने लील ली थी जिसमे करीब 100 लोग मारे गए थे. धनुषकोटि स्टेशन के अवशेष आज भी यहाँ देखे जा सकते हैं. एक मंदिर जो आधा ज़मीन में धंसा हुआ है और टूटा फूटा रेल्वे का शेड और प्लैटफ़ार्म आज भी यहाँ मौजूद है। 1964 तक लोग मद्रास से गाडी द्वारा यहाँ आते थे और यहाँ से पानी के जहाज़ से श्रीलंका के तलाईमन्नार, जो की यहाँ से समुद्री रास्ते से केवल 30 किलोमीटर की दूरी पर है चले जाते थे. अगर ये रूट पुन: स्थापित हो जाये तो श्रीलंका जाना कितना सुगम हो जायेगा.
हिन्दू शास्त्रों के अनुसार धनुषकोटि ही वो स्थान है जहां से राम सेतू शुरू होता है। इसका ज़िक्र हिंदुओं के सबसे पवित्र ग्रंथ रामायण में भी है। इस सेतू का निर्माण श्री राम जी ने लंका जाने के लिए किया था। राम सेतू होने के कई प्रमाण हमारे वैज्ञानिकों को भी मिले हैं। इतनी ऐतिहासिक जगह पर खड़े जोने के लिए मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया और जब जेहन में रामायण काल का चित्रण किया तो मन भाव विभोर हो गया ।
रामेश्वरम को भारत के मुख्य भू भाग से जोड़ने के लिए अंग्रेजों ने वर्ष 1914 में दो किलोमीटर लम्बे “पंबम पुल” का निर्माण किया था ताकि श्रीलंका (जो उस समय “सीलोन” कहलाता था) से व्यापार सुगमता से हो सके. पंबम पुल रामेश्वरम को मुख्य भारत से जोड़ता है। पंबम पुल देश का एकमात्र ऐसा पुल है जो समुद्र से गुजरने वाले बड़े जहाजों को रास्ता देने के लिए खुल जाता है। भारत में ये अपनी तरह का पहला पुल बना, इतना ही नहीं ये भारत का पहला समुद्री पुल भी बना.
1964 के तूफान ने इसको भी बुरी तरह से हिला दिया था परंतु भारतीय रेल की इंजीनियरिंग टीम जिसका प्रतिनिधित्व डॉ॰ ई॰ श्रीधरन कर रहे थे, उन्होंने मात्र 45 दिनों के रेकॉर्ड समय में इस पुल को दुरुस्त कर पुन: चालू कर दिया.
1964 के तूफान ने इसको भी बुरी तरह से हिला दिया था परंतु भारतीय रेल की इंजीनियरिंग टीम जिसका प्रतिनिधित्व डॉ॰ ई॰ श्रीधरन कर रहे थे, उन्होंने मात्र 45 दिनों के रेकॉर्ड समय में इस पुल को दुरुस्त कर पुन: चालू कर दिया.
श्रीधरन जिनको मेट्रो पुरुष कहा जाता है भारत के सुप्रसिद्ध सिविल इंगीनियरों में से एक हैं जिन्होने कोंकण रेल्वे और दिल्ली मेट्रो के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मुझे इस बात पर गर्व महसूस होता है कि मैंने डॉ श्रीधरन जैसे व्यक्ति के नेतृत्व में दिल्ली मेट्रो में काम किया.
रामास्वामी मंदिर, रामेश्वरम |
धनुषकोटि |
विभीषण को समर्पित मंदिर |
तूफ़ान के दौरान टूटी रेल की पटरियां |
कलाम साहब का पुश्तैनी मकान |
इस ऐतिहासिक जगह को देखने आप जा रहे हैं ना!!!
Great photography. photograph with Dr shreedharan appears to be of December 2008.this soil bas given birth to divine.It must be worth going once.
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteVery very excited.
ReplyDeleteVery very excited.
ReplyDeleteReally excited to go
ReplyDeleteReally excited to go
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteWonderful
ReplyDelete