Sunday, 15 December 2019

अरुण खेत्रपाल का बलिदान दिवस व विजय दिवस

1971 के युद्ध में आज ही के दिन जम्मू-कश्मीर के मैदानों की और बसंतर नदी के इलाके में हुई लड़ाई में एक 21 वर्ष के नौजवान ने जान की क़ुर्बानी दे कर तिरंगे का नाम रोशन किया और उस नौजवान सैन्य अधिकारी का नाम था- सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल । इन्हें परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया। 

अरुण को नौकरी में आए अभी छह महीने ही हुए थे, पर हौसले बुलंद थे । बसंतर की लड़ाई को पाकिस्तानी बड़ा पिंड की लड़ाई के रूप में भी जानते हैं । अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्तूबर, 1950 को पुणे में हुआ था । सेना में 17 हॉर्स पुणे में कमान मिली । अरुण ने सनावर के स्कूल से अपनी शिक्षा प्राप्त की थी । अरुण के लिए इस क्षेत्र की सुरक्षा बहुत ही महत्वपूर्ण थी, क्योकि इसी स्थान पर जम्मू और पंजाब को जोड़ने वाली सड़क मिलती थी । अपने टैंक को लेकर अरुण पाकिस्तानी सैनिकों से भिड़ गए और एक-एक कर दुश्मन के चार टैंकों को नष्ट कर दिया । इतने में एक गोला उनके टैंक पर आकर लगा, जिससे उनके टैंक में आग लग गई । अपने कमांडिंग अफसर द्वारा वापस बुलाए जाने पर अरुण ने कहा, ‘अभी मेरी बंदूक चल रही है और जब तक यह चल रही है, मैं दुश्मन पर वार करता रहूँगा ।‘ इतने शूरवीर थे अरुण । परंतु ज़्यादा घायल होने की वजह से वह शहीद हो गए ।

 दिल्ली के ग्रेटर कैलाश में रहने वाले अरुण खेत्रपाल को सर्वोत्तम वीरता पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया । इस युद्ध क्षेत्र में भारत की ओर से पूना हॉर्स और पाकिस्तान की लेंसर्स रेजीमेंट एक-दूसरे के आमने-सामने थी । दुर्भाग्यवश आज़ादी से पहले यह दोनों रेजीमेंट एकीकृत बोम्बे कैवेलरी का हिस्सा थी । 1999 के कारगिल युद्ध तक अरुण खेत्रपाल परमवीर चक्र पाने वाले सबसे छोटी आयु वाले सैन्य अधिकारी थे वर्ष 1999 में ये गौरव ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव को प्राप्त हो गया। 
अरुण खेत्रपाल कारगिल युद्ध में शहीद हुए कैप्टेन विजयंत थापर के आदर्श थे। उनकी जीवन शैली अरुण खेत्रपाल से अत्यन्त प्रभावित थी। एक अजब संयोग है कि दोनों वीरों के पिता भारतीय सेना में अधिकारी रह चुके हैं। 

एक और महान घटना आज ही के दिन घटित हुई , यानी की 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के 93000 सैनिकों ने भारतीय सेना के आगे हथियार डाल कर युद्ध में हार स्वीकार की थी। सेना और भारत के इतिहास में , ये जीत अब तक की सबसे बड़ी जीत साबित हुई। ये बात अलग है कि देश का राजनैतिक नेतृत्व इसका संपूर्ण फायदा नहीं उठा पाया। तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष सैम मानेकशॉ के नेतृत्व की जितनी प्रशंशा की जाए कम है। 

 आइए इस विजय दिवस, महावीर अरुण खेत्रपाल और अपने महान सैनिकों की वीर गाथाओं से आज की युवा पीढ़ी को अवगत करवाएँ। 

अरुण खेत्रपाल की शहादत को शत शत नमन और विजय दिवस की हर हिंदुस्तानी को ढेरों बधाई। 

जय हिंद जय भारत।

Saturday, 14 December 2019

सरदार पटेल की पुण्य तिथि पर उनके पैतृक निवास पर नमन

आज यानि कि 15 दिसंबर को लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की पुण्य तिथि है। सरदार ने अंतिम सांस मुम्बई के बिड़ला हाउस में ली जहां उन्हें हृदय आघात आया जो उनके लिए घातक सिद्ध हुआ और उनके प्राण ले गया और इस प्रकार से 15 दिसंबर 1950 को वो स्वर्ग सिधार गए। 

 सरदार पटेल का जन्म 31 अक्तूबर 1875 को अपने ननिहाल गुजरात के नाडियाड में हुआ था, पर उनके जीवन के आरम्भिक कई सारे वर्ष आनंद ज़िले में "करमसद" नामक स्थान पर बीते।

 आज मैं आपको उनके मेमोरियल व उनके घर के दर्शन करवा रहा हूँ, जहां उनका लालन पालन हुआ। अप्रैल 2018 में मुझे इस पवित्र स्थान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। ये तो आप सभी जानते हैं कि जब भारत को आज़ादी की सौगात मिली तो देश 565 रियासतों में बंटा हुआ था और फिरंगियों ने सभी रियासतों को अपनी इच्छा अनुसार भारत या पाकिस्तान में विलय होने की आज़ादी दे दी थी। सभी देशवासी सरदार पटेल के सदैव ऋणी रहेंगे क्योंकि उनकी दृढ़इच्छा शक्ति की वजह से ही सभी 565 फ़ूल एक टोकरी में एकत्रित हो पाए और हमारे स्वर्णिम भारत का निर्माण होना संभव हो पाया। 

इस कठिन कार्य का निष्पादन निश्चित तौर पर अत्यंत कठिन था पर ये सरदार की दूर दृष्टि, सूझ बूझ और दृष्ट इच्छा शक्ति का ही परिणाम था के हमारे राष्ट्र का निर्माण हो पाया, वर्ना अंग्रेजों ने तो जाते जाते भी हमें प्रताड़ित करने में कोई कसर नही छोड़ी थी। इस महान विभूति को शत शत नमन। 

जय हिंद।

फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों को उनके बलिदान दिवस पर नमन

मित्रों, आज का दिन न केवल वायु सेना बल्कि देश के इतिहास में भी अत्यंत यादगार है, क्योंकि आज ही के दिन, 14 दिसम्बर 1971 को पाकिस्तान द्वारा श्रीनगर एयर बेस पर अचानक हुए हमले को फ्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों ने अपने प्राणों का बलिदान दे कर उस हमले का मुँह तोड़ जवाब दिया था. आज का ब्लॉग उनकी शहादत को समर्पित है.  
 
वायु सेना को आज तक केवल एक बार ही परमवीर वीर मिला है और वो मिला है शूरवीर निर्मल जीत सिंह सेखों को. 17 जुलाई 1945 को पंजाब के लुधियाना में इनका जन्म हुआ. इनके पिता जी भी भारतीय वायु सेना में थे. बचपन से ही इनका जहाज़ उड़ाने का सपना था. यही सपना जूनून बना और ये वायु सेना में फाइटर पायलट बन गए. 1971 के युद्ध में उनकी तैनाती श्रीनगर एयर बेस पर थी. पाकिस्तान यहाँ हमला करने के नापाक मंसूबे बना चुका था. पाकिस्तान ने प्लान बनाया की पुंछ के पहाड़ों तक वो लो फ्लाइंग करेंगे और पुंछ से एक दम 16000 फीट पर अपने लड़ाकू जहाजों को उठा लेंगे. उनको पता था पुंछ के बाद ही वो भारतीय वायु सेना के राडार द्वारा दिखाई दी सकते हैं लेकिन तब तक भारतीय वायु सेना को सँभालने का समय नहीं मिलेगा क्योंकि पुंछ से श्रीनगर की हवाई दूरी केवल 6 मिनट की थी. इसी प्लान के साथ उन्होंने 14 दिसंबर 1971 को श्रीनगर एयर बेस पर हमला बोल दिया. भारत के लिए करो या मरो की स्तिथि आ गयी क्योंकि श्रीनगर एयर बेस को हर हाल में बचाना जरूरी था. 

गोलाबारी के बीच एक नौजवान सिख किसी तरह बचते बचाते अपने विमान तक आया और उड़ान भरते ही पाकिस्तानी विमानों को निशाना बनाने लगा देखते ही देखते दुश्मन के खेमे में हलचल मच गयी उनका इस बात का इल्म नहीं था की ऐसा भी हो सकता है. सेखों ने दुश्मन के दो विमानों  को तहस नहस कर दिया पर उनकी संख्या ज्यादा थी. सेखों के विमान में आग लग गयी और जब वो पैराशुट से कूदे तो बच नहीं पाए और शहीद हो गए. उनको मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाज़ा गया. दिल्ली के एयर फ़ोर्स म्यूजियम में उनकी प्रतिमा लगी हुई है जहाँ उनका विमान भी दिखाया गया है. लुधियाना शहर में भी उनकी प्रतिमा लगी हुई है. 
ऐसे निर्भीक, महावीर और जांबाज़ को हमारा शत शत नमन. जय हिन्द, जय भारत.

Friday, 13 December 2019

जमेदार नन्द सिंह जी के बलिदान दिवस पर उनको नमन

12 दिसंबर को  एक ऐसे शूरवीर का बलिदान दिवस था, जिन्हें भारत का सबसे सुसज्जित सैनिक यानि की मोस्ट डेकोरेटेड सैनिक भी कहा जाता है. दूसरे विश्व युद्ध में उन्हें विक्टोरिया क्रॉस और फिर वर्ष 1947-48 की कश्मीर की लड़ाई में उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। इस शूरवीर का नाम है -जमेदार नन्द सिंह. इस अवसर पर समस्त देश वासियों की ओर से उनकी शहादत को नमन। 

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इन्होने बर्मा में अभूतपूर्व वीरता का प्रदर्शन किया जिसकी वजह से इन्हें उस समय के सर्वोच्च सेना सम्मान "विक्टोरिया क्रॉस" से सम्मानित किया गया. देश आज़ाद होते ही हमारे ऊपर पाकिस्तान ने युद्ध थोप दिया और कश्मीर पर कब्ज़ा करने के लिए वहाँ हमला बोल दिया. उड़ी सेक्टर में जहाँ नन्द सिंह साहब की तैनाती थी उन्होंने पूरी वीरता के साथ दुश्मन का सामना किया और अत्यंत साहस और बुद्धिमता का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन को भारी नुकसान पहुँचाया, पर उन्हें अपना सर्वोच्च बलिदान देना पड़ा. कहा जाता है कि दुश्मन को जब उनके मृत शरीर पर "विक्टोरिया क्रॉस" का रिबन लगा दिखाई दिया तो उन्होंने उनकी लाश को ट्रक से बांध कर घुमाया और कहीं फ़ेंक दिया। 

वर्ष 2018 में अपने लन्दन प्रवास के दौरान मुझे "हाइड पार्क" में जाने का सुअवसर मिला जहां विश्व युद्ध में विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित जांबाज़ सैनिकों की याद में स्मारक बना हुआ है। यहां नन्द सिंह साहब का नाम देख गर्व की अनुभूति हुई। इस महान योद्धा को शत शत नमन।
Hyde Park Memorial, London

Hyde Park Memorial, London


Jemadar Nand Singh, VC, MVc, (Photo Courtesy Lest we forget)