Wednesday 7 November 2018

गुरुद्वारा “दाता बंदी छोड़ साहिब”: बंदी छोड़ दिवस

कल दीपावली पर आपने गुरुद्वारों में एक विशेष चहल पहल और रोशनी की व्यवस्था को अवश्य देखा होगा। आज मैं आपको मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित गुरुद्वारा “दाता बंदी छोड़ साहिब” ले कर चल रहा हूँ, जिसका नाता दिवाली के पर्व से जुड़ा हुआ है। मुझे यहाँ वर्ष 2016 में शीश नवाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

सिख धर्म के अनुयायी दीपावली के पर्व को “बंदी छोड़ दिवस” के रूप में भी मनाते हैं। अब क्यूँ मनाते हैं इसके पीछे एक रोचक कहानी जो आज मैं आपको बताने वाला हूँ।

Image may contain: sky and outdoorवर्ष 1609 में, सिखों के बढ़ते प्रभाव से चिंतित मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने, सिखों के छठे गुरु श्री हरगोबिन्द साहिब जी को बंदी बना कर ग्वालियर के क़िले में कैद कर लिया, जहां पहले से ही 52 हिन्दू राजा कैद थे। संयोग से गुरु जी को कैद में डालने के बाद जहाँगीर की तबीयत खराब रहने लगी, संत साईं मियाँ मीर ने जहाँगीर को मशवरा दिया की अगर वो जल्द स्वस्थ होना चाहता है तो तुरंत गुरु को कैद से रिहा कर दे, जिसे जहाँगीर ने मान लिया। जब ये बात किले में कैद 52 हिन्दू राजाओं को पता चली तो उन्होने गुरु के आगे उनको भी रिहा करवाने की प्रार्थना की। गुरु हरगोबिन्द साहिब ने जहाँगीर के आगे शर्त रख दी की वो कैद से रिहा होना तभी स्वीकार करेंगे जब उनके साथ बाकी सभी 52 राजाओं को रिहा किया जाएगा।
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जहाँगीर ने गुरु कि बात सशर्त मान ली, और कहा कि कैद से गुरु जी के साथ केवल वही राजा बाहर जा सकेंगे जो सीधे गुरु जी का कोई अंग या कपड़ा पकड़े हुए होंगे। जहाँगीर ने बड़ी चालाकी से ये शर्त गुरु जी को बता दी वो सोच रहा था इस युक्ति से केवल दो या तीन राजा ही कैद से रिहा हो पाएंगे और उसे ज्यादा फ़र्क नहीं पड़ेगा।



गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपने लिए एक विशेष कुर्ता सिलवाया जिसे पकड़ कर सभी 52 राजा कैद से रिहा हो गए और जहाँगीर देखता ही रह गया, और इस प्रकार से जब गुरु हरगोबिन्द साहिब जी जब अमृतसर पहुंचे तो उस दिन वहाँ खूब रोशनी कि गयी और उस दिन से दिवाली कि रात को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। तभी से इस प्रथा कि शुरुआत हुई।

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