Friday 11 May 2018

बाबा बंदा सिंह बहादुर शहीद स्मारक- फ़तेह बुर्ज पर नमन


प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार

मुझे यकीन है कि आपके कई सारे शहीद स्मारकों पर  नमन किया होगा, आज मैं आपको एक ऐसे युद्ध स्मारक पर ले कर चल रहा हूँ जिसका इतिहास में एक अनूठा स्थान है, जी हाँ इस युद्ध स्मारक का नाम है “फ़तेह बुर्ज”, ये चंडीगढ़ के नजदीक मोहाली यानि की साहिबज़ादा अजित सिंह नगर में स्थित है. साहिबज़ादा अजित सिंह जी गुरु गोबिंद सिंह के चार साहिबजादों में एक थे.

12 मई यानि की आज ही के दिन वर्ष 1710 इस्वी में सरहंद (पंजाब) से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर “चप्परचिड़ी” नामक स्थान पर बंदा सिंह बहादुर ने मुग़ल फौजों को हराया था और सूबा प्रमुख वज़ीर खान को मौत के घाट उतार दिया. इस प्रकार से बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिंद सिंह के दोनों छोटे साहिबजादों की शहादत का बदला ले लिया. वज़ीर खान ने ही गुरु गोबिंद सिंह साहब के दोनों छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फ़तेह सिंह जी को 26 दिसंबर 1704 को सरहिंद में ईटों में चिनवा दिया था. बाबा बंदा बहादुर सिंह जी वजीर खान को मार कर सम्पूर्ण सिख समाज का सर फक्र से ऊँचा कर दिया था. 12 मई का दिन सिख इतिहास में विशेष स्थान रखता है. इस पवित्र स्थान पर नमन कर के मुझे भी इस गौरव गाथा का बोध हुआ और मुझे लगा की मुझे इसके बारे में लिखना चाहिए.

अब तक आप भी इस जीत के महत्व को समझ गए होंगे. फ़तेह बुर्ज़ इसी महत्वपूरण जीत को समर्पित है. इसकी कुल ऊंचाई 328 फुट है. ये देश की सबसे ऊँची धार्मिक यादगार है. बुर्ज तीन हिस्सों में विभाजित है जो तीन जीतों के महत्व को दर्शाता है पहली समाना फ़तेह, दूसरी साढोरा फ़तेह और फिर चप्परचिड़ी फ़तेह. इसका उद्घाटन वर्ष 2011 में हुआ. अगले ब्लॉग मैं आपको सरहिंद की पवित्र भूमि पर ले कर चलूँगा जहाँ गुरु गोबिंद सिंह साहब के दोनों छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फ़तेह सिंह जी को 26 दिसंबर 1704 को सरहिंद में ईटों में चिनवा दिया था.









तब तक “वाहे गुरु जी खालसा श्री वाहे गुरु जी की फ़तेह.”   


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