प्रिय मित्रों,
सादर नमस्कार !!
भारत में हम सभी लोग
गंगा नदी के विषय में बखूबी जानते हैं, एक अन्य नदी जो सदा से मुझे आकर्षित करती
रही है, और इसका नाम है “सिन्धु”. कहा जाता है हिन्दू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु से
ही हुई और सिन्धु घाटी सभ्यता भी इसी नदी के मुहाने पर ही पनपी. वर्ष 2007 में पहली
बार मुझे सिन्धु के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ जब मैं अपनी पहली लेह-लद्दाख की
यात्रा पर निकला हुआ था. अगर आप हवाई मार्ग से लेह जातें हैं तो, आसमान से ही आपको सिन्धु के दर्शन हो जाते हैं. सिन्धु नदी का जिक्र
हमारे पौराणिक ग्रंथों में भी प्रमुखता से मिलता है, ऐसा माना गया है कि ऋग्वेद
में सिन्धु का जिक्र 176 बार किया गया है. लेह में
एक स्थान है जहाँ हर वर्ष सिन्धु दर्शन महोत्सव का आयोजन किया जाता है और यह महोत्सव
पिछले 21 वर्षों से निरंतर जारी है. जून मास में होने वाले इस महोत्सव में देश भर
से करीब 5000 लोग यहाँ एकत्रित होते हैं और सिन्धु की पूजा अर्चना करते हैं, यह महोत्सव
एक तरह से देशभक्ति के ज़ज्बे को भी जागृत करता है. सिन्धी समाज के लोगों के लिए सिन्धु का महत्व कुछ अधिक है, ऐसा माना जाता है कि सिंधियों के धर्म प्रमुख झूलेलाल जी वरुण देवता का ही रूप थे और उन्होंने इसी सिन्धु के तट पर तपस्या की थी. लेह स्थित इस नवनिर्मित घाट का उद्घाटन जून 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल
बिहारी वाजपेयी ने किया था.
एक हिन्दू होने के
नाते मेरे लिए सिन्धु नदी के दर्शन करना एक विशेष महत्व रखता है, अपने मित्रों के
साथ इस स्थान पर गया और सिन्धु के जल का आचमन किया. यहाँ आ कर एक अलग से सुकून की
अनुभूति हुई, जिसको शब्दों में बयां करना थोडा कठिन है. सिन्धु का वास्तविक स्रोत
कैलाश पर्वत क्षेत्र को माना जाता है जिसकी ऊंचाई हिमालय क्षेत्र में लगभग 18000
फीट की ऊंचाई पर मानी जाती है. हालाँकि, अपने दुर्गम रास्तों की वजह से वहां इसकी
धारा को चिन्हित करना थोडा कठिन कार्य है, वर्ष 2012 में अपनी कैलाश मानसरोवर की यात्रा
के दौरान मैंने भी यह प्रयास किया था लेकिन ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई.
भारत में "सिन्धु" जम्मू कश्मीर के “डेमचोक” नामक स्थान से प्रवेश करती है, वर्ष 2016 में अपनी लेह-लद्दाख
की दूसरी यात्रा के दौरान जब मैं चुशूल से मनाली की ओर आ रहा था तब मुझे "डेमचोक" के काफी नजदीक से गुज़रने का मौका मिला था.
दुर्गम पहाड़ों के बीच से निकल कर आती सिन्धु एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत करती है. यहाँ
सिन्धु का जल एकदम स्वच्छ, पवित्र, ठण्डा और कल-कल की मधुर ध्वनि उत्पन्न करते हुए
बह रहा है, एकबारगी तो लगता है मानो आप साक्षात् स्वर्गारोहण पर हैं. एक तस्वीर
आपके साथ साँझा कर रहा हूँ जिसे मैंने माही पुल के ऊपर से खींचा था.
लेह में संगम नामक
स्थान पर सिन्धु और झंस्कर का संगम होता है जो देखने लायक है, एक तरफ से हरे रंग
में इठलाती सिन्धु आती है और दूसरी ओर मटमैली झंस्कर का संगम एक अलग समा बांध देता
है. कारगिल के समीप बटालिक नामक स्थान से
सिन्धु पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर इलाके में प्रवेश कर जाती है. वर्ष 2007 में इस
स्थान को देखने का अवसर प्राप्त हुआ था. कारगिल युद्ध के दौरान परमवीर चक्र विजेता
कैप्टेन मनोज कुमार पांडे ने इसी इलाके में पाकिस्तानी सेना को धूल चटाई थी.
सिन्धु पाकिस्तान की
न केवल सबसे लम्बी नदी है बल्कि जीवन दायिनी भी है. सिन्धु
की कुल लम्बाई 3610 किलोमीटर है, जिसकी कुल लम्बाई का तिब्बत में केवल 2 प्रतिशत
भारत में 5 प्रतिशत और पाकिस्तान में बचा हुआ 93 प्रतिशत हिस्सा बहता है और अन्त: “सिन्धु”
अरब सागर में विलीन हो जाती है, हालाँकि वर्ष 1819 तक इसका एक हिस्सा भारत के कच्छ
के रण के कोट लखपत क्षेत्र तक था. यहाँ एक बहुत बडा बंदरगाह भी हुआ करता था,
प्राकृतिक आपदा ने वर्ष 1819 में इस क्षेत्र को बंजर बना दिया और सिन्धु नदी को
यहाँ से चालीस मील दूर धकेल दिया. इसी पवित्र स्थान पर गुरु नानक देव जी अपनी मक्का
यात्रा पर जाने से पहले यहाँ कुछ समय के लिए रुके थे. वर्ष 2016 में यहाँ दर्शनों
का सौभाग्य प्राप्त हुआ.
आशा करता हूँ, सिन्धु
नदी पर आज का ब्लॉग आपको पसंद आया होगा. मेरा प्रयास रहेगा भविष्य में ऐसी विविध
जानकारियाँ आप तक ऐसे ही पहुंचाता रहूँ. जय हिन्द.
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लेह में सिन्धु और झंस्कर का संगम स्थल |
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लेह में सिन्धु का एक सुन्दर दृश्य |
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सिन्धु घाट पर सिन्धु का मनमोहक दृश्य |
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सिन्धु घाट, लेह |
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डेमचोक के पास सिन्धु का दृश्य |
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माही पुल से सिन्धु का दृश्य |
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माही पुल से सिन्धु का दृश्य |
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लेह हवाई अड्डे पर उतरने से पहले हवाई जहाज़ से सिन्धु का विहंगम दृश्य |