Saturday 9 September 2017

कहानी विश्व के सबसे प्रसिद्द कुत्ते जापान के "हाचिको" की

प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार,

      स्वामिभक्ति में कुत्ते का कोई सानी नहीं है ये तो आप सभी ने सुना ही होगा पर आज आपको मैं एक ऐसी कहानी सुना रहा हूँ जिससे आपका ये विश्वास और सुद्रिढ हो जायेगा. ये कुत्ता कोई ऐसा वैसा कुत्ता नहीं है जनाब अगर आप इसके नाम से गूगल करेंगे तो आपको चार लाख के आसपास नतीजे दिखेंगे, यानि की ये जनाब एक सेलिब्रिटी से कम नहीं हैं, एक तरह से सेलिब्रिटी भी कह सकते हैं क्यूंकि इन पर कई सारी फिल्में बन चुकी हैं और किताबें-कहानियां  तक लिखी जा चुकी हैं. जी हाँ इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये दुनिया का सबसे मशहूर कुत्ता है और इसका नाम था “हाचिको” जापान के इस कुत्ते ने अपने जीवनकाल के दौरान स्वामिभक्ति और निष्ठा के कुछ ऐसे आयाम खड़े कर दिये जिससे यह विश्व प्रसिद्ध हो गया, दुनिया भर में करीब हर स्कूल में इसके बारे में पढ़ाया जाता है। 

हाचिको के मालिक का नाम इजाबुरो था जो टोक्यो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे। प्रोफेसर साहब अपने कुत्ते को सब से अधिक प्यार करते थे और उसके साथ अपने बेटे जैसा व्यवहार करते थे। हाचिको अपने मालिक को मध्य टोक्यो में स्थित शिबुया ट्रेन स्टेशन तक हर सुबह छोडने जाता व दोपहर को स्टेशन पर जाकर साथ लेकर आता था। प्रोफेसर साहब सेरेब्रल रक्तस्राव से पीड़ित थे और एक दिन अचानक अप्रत्याशित रूप से उनकी लेक्चर देते हुए मृत्यु हो गई। अपने प्रिय मालिक की वापसी के उम्मीद में हाचिको दस साल के लंबे जीवन के दौरान शिबूया रेलवे स्टेशन पर हर सुबह और दोपहर जाता रहा पर प्रोफेसर कभी वापस नहीं आए हाचिको की इसी स्वामिभक्ति ने लोगों का दिल जीत लिया और फिर 1934 में इसी शिबुया स्टेशन के बाहर हचिको की कांस्य की प्रतिमा लगा दी गयी ताकि हाचिको की स्वामिभक्ति को लोग कभी भी न भूल पाएं, इस समारोह में हाचिको स्वयं उपस्थित था. 8 मार्च 1935 को हाचिको का देहांत हो गया. पर अपनी स्वामिभक्ति की वजह से हाचिको पूरे विश्व में प्रसिद्द हो गया. हाचिको की प्रसिद्धि का आलम ये है शिबुया स्टेशन के बाहर लगी इसकी प्रतिमा पर फोटो खिंचवाने वालों की लम्बी लाइन  रहती है. जो भी टोक्यो आता है यहाँ आना नहीं भूलता, विशेषकर वो लोग जो कुत्तों से प्रेम करते हैं, यहाँ दुनिया के हर हिस्से से आए लोगों को देखा जा सकता है. जुलाई 2017 में अपने टोक्यो प्रवास के दौरान हाचिको के साथ तस्वीर खिंचवाने के सम्मोहन से मैं भी बच नहीं पाया.



शिबुआ रेलवे स्टेशन की दीवार पर भी हाचिको का एक विशाल सुंदर मोज़ेक कला का काम है इतना ही नहीं शिबुया स्टेशन का एक निकास द्वार जो इस मूर्ति की ओर निकलता है उसका नाम भी हाचिको पर रखा गया है। इस मूर्ति के अलावा टोक्यो यूनिवर्सिटी (जहाँ प्रोफेसर साहब पढ़ाते थे) में हाचिको और प्रोफेसर साहब दोनों की मूर्ति लगाई गयी है वहां भी रोजाना कई हज़ार लोग जाते हैं.

मेरे अंदाज़ से विश्व में किसी कुत्ते को इतने बड़े स्तर पर इतना बडा सम्मान शायद ही कहीं मिला हो, मिले भी क्यों नहीं, वो कहते हैं न दुनिया में सब कुछ मिल जाता है बस एक वफादार दोस्त मिलना मुश्किल होता है.  









3 comments:

  1. स्वामी भक्त हाचिको सदा के लिए इतिहास में अमर हो गया।

    सुरुचिपूर्ण कथानक के लिए धन्यवाद सर।।

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