Wednesday 19 July 2017

यात्रा श्री अमरनाथ जी की

प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार !!

आप सभी को ज्ञात ही है की श्रावण मास चल रहा है और साथ ही साथ अमरनाथ जी की पवित्र यात्रा भी चल रही है, इस बार यात्रा में दो बड़े विघ्न आ चुके हैं पर श्रधालुओं के उत्साह में किसी प्रकार की कोई कमी दिखाई नहीं दे रही है. अपितु, कल ही इस यात्रा का आंकड़ा 2 लाख को पार कर गया है जो अपने आप में रिकॉर्ड है. आज मैं आपको इसी पवित्र यात्रा पर ले कर चल रहा हूँ. प्राकृतिक रूप से निर्मित शिवलिंग के दर्शन दुनिया में सिवाय अमरनाथ जी के और कहीं नहीं होते. इसी पवित्र गुफा में भोले नाथ ने माता पार्वती को अमरत्व के रहस्य से अवगत करवाया था. इस गुफा की खोज 16वीं शताब्दी में एक मुसलमान गड़रिए ने की थी. आज भी यहाँ चड़ाए गए चडावे का एक चौथाई हिस्सा इस गड़रिए के परिवार को दिया जाता है.  अमरनाथ जी की पवित्र गुफा 13600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. ये यात्रा वर्ष में आषाढ़ पूर्णिमा से ले कर रक्षा बंधन तक चलती है लगभग एक महीने तक. इस साल ये यात्रा 7 अगस्त तक जारी रहेगी. 

अमरनाथ जी जाने के दो रास्ते हैं। एक बालटाल होते हुए और एपहलगाम होते हुए। बालटाल से अमरनाथ जी की यात्रा 16 कि॰मी॰ है । सुबह जा के शाम तक वापस आया जा सकता है और दूसरी ओर पहलगाम से अमरनाथ जी कि दूरी 48 कि॰मी॰ है। इस रास्ते से अमरनाथ पहुँचने के लिय दो जगह रात्री पड़ाव आते हैं,  पहला शेषनाग और दूसरा पंचतरणी। इस रास्ते की प्राकृतिक सुंदरता देखने वाली है। जब पहली बार 1999 में अमरनाथ गया था तो इसी रूट से गया था। मुझे आज भी याद पड़ता है जब हम पहलगाम पहुंचे थे तो वहाँ लंगर वयवस्था मौजूद थी। मेरे साथ मेरे मित्रों में सत्येन्द्र वरूना जी,  बेदी साहब,  दिनेश शर्मा , अरविंद और अश्विनी चावला थे। मुझे आज भी याद है वो पूर्णमासी की रात थी। पहले हमने रात्री विश्राम के लिए जगह ढूंढी और उसके बाद जब खाने के विकल्प ढूँढने बाहर निकले तो मैं भौचक्का रह गया। क्या नहीं था खाने में, डोसा, तंदूरी रोटी, चाउमीन, पाव भाजी, इत्यादि । अंत में हमनें मेरठ से आए शिव भक्तों के डोसा काउंटर को चुना। उसके बाद छुआरे डला कढ़ाई वाला दूध तो अमृत तुल्य था। यात्रा कि सारी थकान दूर हो चुकी थी। लिद्दर नदी के कल कल बहते जल का शोर और उस पर से पूरे चाँद की रोशनी ने  उस रात को एक अविस्मरनीय रात में बदल दिया था। वापस टेंट में आकार मैंने अपना स्लीपिंग बैग निकाला और तुरंत ही स्वप्न लोक कि ओर कूँच कर गया। सुबह करीब 7 जे सुरक्षा जांच के बाद हमने पहलगाम छोड़ दिया । भारतीय थल सेना के जवान यहाँ पर चौबीसों घंटे कड़ी सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे थे। उस दिन जब हमनें चड़ाई शुरू की तो तापमान 28  डिग्री के आसपास था । मैंने निक्कर में चड़ाई शुरू की थी। मन ही मन यह सोच रहा था कि न जाने लोग क्यूँ यह कहते हैं कि अमरनाथ जी कि यात्रा बहुत कठिन है जबकी मुझे तो एसा कुछ भी प्रतीत नहीं हो रहा था। थोड़ी ही दूरी पर लिद्दर नदी में स्नान कर तरोताजा हो गए। चप्पे चप्पे पर भारतीय सैनिक नियुक्त थे और पूरी सजगता से चौकसी कर रहे थे । थोड़ी देर उनसे बतियाने के बाद हम पिस्सू  घाटी की ओर चल पड़े। जिस चड़ाई को हम साधारण समझ रहे थे उसने अपने रंग दिखाने शुरू कर दिए थे और उसे देखकर हमारे पसीने छूटने भी शुरू हो गए।
पिस्सू घाटी की चड़ाई बिल्कुल खड़ी है जो कि हमारी शारीरिक क्षमता की अच्छी तरह परीक्षा लेती है। पीठ पर टंगा रक-सैक एक आफत से कम नहीं लग रहा था । एक- एक कदम भारी होता जा रहा था। मेरे हाथ में जो पानी की बोतल थी वो न जाने कैसे एक लीटर की जगह पाँच लीटर जितनी भारी प्रतीत हो रही थी। अंततः मैंने एक पिट्ठू  लिया जिसको मैंने अपना समान पकड़ाया और उसी ने मुझे पिस्सू घाटी को पार कराया और अंततः पिस्सू घाटी पार करते ही जान में जान आई । चलते-चलते ॐ नमः शिवाय का जाप करते हुए शाम तक हम शेषनाग पहुँच गए। सबसे पहले शेषनाग पहुँच कर मैंने अपना गरम पायजामा निकाला और तुरंत पहना। ठंड बढ्ने लगी थी। एक टैंट किराए पर ले लिया गया। ठंड इतनी लगने लगी कि मुझे दो लेयर बॉडी वार्मर पहनने पड़े। शेषनाग झील के बारे में कहा जाता है कि वहाँ शेषनाग वास करते हैं जो कि मध्य रात्री आकर दर्शन भी देते हैं। परंतु यात्रा की कठिनता और थकान के कारण हम जल्द ही स्वपन लोक में चले गए। अगले दिन मौसम बहुत ही खुशगवार था और हमने इसका भरपूर आनंद उठाया। इसमे कोई अतिशयोक्ति नहीं की दृश्य जन्नत में विचरण से कुछ कम नहीं था। शाम तक हम पंचतरणी पहुँच गए। नींद देर तक शायद इसलिए नहीं आई कि मन इस खुशी में डूबा था कि कल भोले नाथ के दर्शन होंगे। सुबह होते ही लाठी और रक-सैक उठाए और गुफा कि ओर प्रस्थान कर दिया।

दो घंटों के बाद ही गुफा के दर्शन कर मन को असीम शांति का अनुभव हुआ। वहाँ पर नदी किनारे बर्फ से जमे पानी में स्नान किया और फिर दर्शनों कि ओर बढ़ चले। यहाँ पर लंगर व्यवस्था की कुछ ऐसी हालत थी कि जिधर नज़र उठाओ लंगर ही लंगर और हर वो चीज़ उपलब्ध थी जिसकी कल्पना 13600 फीट की ऊंचाई पर करना नामुमकिन होता है। मेरी भेंट वहाँ पर हमारे कॉलोनी के मित्र से हुई जो गोलगप्पे का लंगर लगा कर बैठा था। जब मैंने उससे पूछा गोलगप्पे ही क्यूँ तो उसने बड़ी ही मासूमियत से जवाब दिया की यार और कुछ ऐसा मिला ही नहीं जो यहाँ नहीं था। दर्शन कर के रूह तो जैसे तृप्त ही हो गई । कारगिल युद्ध की विभीषिका पूरी तरह से खत्म होने में अभी दो रोज़ बाकी थे। युद्ध क्षेत्र से मात्र 80 की॰मी॰ की दूरी पर स्थित अमरनाथ जी में शिवलिंग पिघले हुए थे। थोड़ी मायूसी ज़रूर हुई परंतु थोड़ा बहुत जो भी स्वरूप बाक़ी था वो शिव के साथ आत्मसात होने के लिए बहुत था

किस्मत से गुफा में सफ़ेद कबूतरों का जोड़ा भी दिखाई दे गया। प्रकृतिक छटा को निहारने के कुछ देर बाद उतराई का निर्णय लिया गया। गुफा से बाहर आते ही हमने सैटिलाइट फोन से घर संपर्क किया और अपने आलोकिक अनुभव के बारे में बताया। उतराई के लिए हमने बालटाल रूट का चुनाव किया ताकि एक ही बार दोनों रास्तों (पहलगाम और बालटाल) का अनुभव ले लिया जाए। 2007 में जब दुबारा जाना हुआ तो मैंने दोनों ही तरफ हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल किया । बालटाल से उतराई का रास्ता संकीर्ण है और उसी रास्ते पर खच्चर वाले भी आते रहते हैं। बारिश पड़ने के बाद उस रास्ते पर चलना अत्यंत दुर्गम हो जाता है इतना ही नहीं फिसलन वाला रास्ता और एक तरह पहाड़ और दूसरी ओर वादी में बहती लिद्दर नदी। वहाँ जगह जगह ग्लैशियर भी दिखाई पड़ते हैं। अगर गलती से भी पैर फिसल गया तो समझिए गए सीधे खाई में वो भी बहती धारा में। शायद लाश निकालना भी मुमकिन न हो पाए। 

बम-बम भोले बोलते हुए हम सब धीरे धीरे बालटाल बेस कैंप की ओर बढ्ने लगे। उतरते उतरते रात हो गई। घुप्प अंधेरा और घोर सन्नाटा। आवाज़ के नाम पर सिर्फ खच्चरौ के पैरों की आवाज़ सुनाई दे रही थी। हम अपनी टॉर्च के सहारे आगे बढ़ रहे थे। इतने में एक करुण विलाप सुनाई दिया। एक खच्चर वाला बहुत तेज़ रो रहा था। पूछने पर पता चला कि उसका घोड़ा मर गया था। उसकी रोज़ी रोटी का एक मात्र साधन खत्म हो चुका था और अभी तो यात्रा शुरू ही हुई थी। उसके संजोय सारे सपने टूट चुके थे। थोड़ी देर में हम समतल ज़मीन पर पहुँच गए और समझ गए कि अब हम बालटाल पहुँच चुके हैं। इतने में पुलिस की एक जीप दिखाई दी। मैंने पुलिस वालों को हमे हमारे टैंट तक पहुँचने का आग्रह किया जो उन्होने सहर्ष स्वीकार कर लीया। दस मिनट के भीतर ही हम रोहिणी दिल्ली की एक शिव संस्था के अररामदेह टैंटों में पहुँच गए। यहाँ पहुँच के बहुत अच्छा महसूस हुआ। ऐसा लगा कि जीवन का एक बहुत बड़ा कार्य सम्पन्न हो गया।


 ये चार्ट देख कर आपको रास्ते का अंदाज़ा हो जाएगा:-


दूरी
समय
जम्मू
पहलगाम
248
6 घंटे
पहलगाम
चंदनवाडी
16
1 घंटा
चंदनवाड़ी
शेषनाग
12
6 घंटे (पैदल)
शेषनाग
पंचतरणी
16
7 घंटे (पैदल)
पंचतरणी
पवित्र गुफा
6
3 घंटे (पैदल)


अमरनाथ जी की पवित्र यात्रा हिन्दूओं की सबसे महत्वपूर्ण यात्राओं में से से एक है अपने जीवन काल में एक बार तो इस यात्रा पर जाना ही चाहिए, तो मौका मिले तो आप भी अमरनाथ यात्रा पर हो कर आइए!! तब तक हर हर महादेव.....


साभार
अतुल्य भारत की खोज
लेखक ऋषि राज
ISBN 978 93 5186 2048


वर्ष 1999 में पवित्र गुफा के सामने लेखक

वर्ष 1999 मित्र दिनेश एवं लेखक 

हेलीकाप्टर से बालटाल से पवित्र गुफा जाने वाले रास्ते के दृश्य 


पवित्र श्री अमरनाथ गुफा 








गुफा में विराजमान कबूतर 


हिम से प्राकृतिक रूप से निर्मित शिवलिंग (फोटो आभार गूगल)

लेखक पवित्र गुफा के समक्ष वर्ष 2007

13 comments:

  1. Aap par sadaiv bhole baba ki kripa bani rahe aur hum sabhi labhanvit hote rahe...bol bum

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद पवन जी

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  2. जय हो महादेव की।।।।।।।।

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  3. Replies
    1. अशोक जी धन्यवाद. हर हर महादेव

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  4. Yatra and darshan both are bliss. Thanks for sharing. Har har Mahadev.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद पंकज जी

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  5. हर हर महादेव

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद राजेंदर जी

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  6. Amarnath Yatra is an annual trip undertaken by various Hindu pilgrims.

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  7. Har har mahadev.Sab par bholenath apni kripa barsate rahen.

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  8. यह हिंदुओं के लिए एक लोकप्रिय तीर्थ स्थान है - जुलाई-अगस्त में श्रावणी मेला के त्योहार के आसपास 400,000 के मौसम के दौरान 45 लोग श्रावण के हिंदू पवित्र महीने के साथ आते हैं। अमरनाथ गुफा, कश्मीर के भारतीय राज्य में स्थित है, हिंदू धर्म में सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। भगवान शिव को समर्पित, मंदिर और रूपों प्राचीन हिंदू पौराणिक कथाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा साल 5,000 से अधिक पुराने होने का दावा किया है।

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