Saturday 8 April 2017

8 अप्रैल 1857 और 1929 : नमन भगत सिंह और मंगल पाण्डेय को

प्रिय मित्रों,

सादर नमस्कार!!

आज यानि की 8 अप्रैल देश के इतिहास में ऐसी तारीख है जिसे भुलाना नामुमकिन है, क्यूंकि आज से 88 वर्ष पूर्व 8 अप्रैल 1929 के दिन ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बहरी अंग्रेजी सरकार को देश की आवाज़ सुनवाने के लिए केन्द्रीय विधान सभा यानि की आज के संसद भवन में बम धमाके किये थे और “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” द्वारा छापे गए पर्चे वितरित किये गए थे. इन्कलाब जिंदाबाद के नारों से पूरा सदन गूँज उठा था. इस ऐतिहासिक घटना से तो लगभग हम सभी परिचित हैं. पर आज मैं आपको कुछ हट कर बताना चाहता हूँ, और ये सारी घटनाएं 8 अप्रैल की प्रमुख घटना से जुडी हुई हैं.

इस पूरी घटना को अंजाम देने का विचार भगत सिंह जी के दिमाग की उपज था. उन्होंने एक फ़्रांसिसी क्रन्तिकारी के बारे में पढ़ा था, जिसने अपनी बहरी सरकार को अपनी आवाज़ सुनाने के लिए ऐसा ही कुछ कारनामा किया था. पर यहाँ ये बहुत स्पष्ट था के बम से किसी को किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं पहुंचाई जाएगी, केवल और केवल अपने विचार और अपना पक्ष सरकार तक पहुँच जाये बस यही एकमात्र लक्ष्य था.
तय हुआ की केन्द्रीय विधान सभा में बम फोड़ने सुखदेव और बटुकेश्वर दत्त जायेंगे और फिर भगत सिंह द्वारा बहुत दबाव बनाए जाने पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को भेजना तय हुआ. पुरानी दिल्ली के चावडी बाज़ार के सीता राम बाज़ार में एक अन्य क्रन्तिकारी जयदेव कपूर और शिव वर्मा ने भगत सिंह के रहने की व्यवस्था करवाई. ये जगह आज के हौज़ काज़ी थाने से मात्र 100 गज की दूरी पर ही है.

जयदेव कपूर ने ही अथक प्रयासों से भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के लिए केन्द्रीय विधान सभा में प्रवेश के लिए पास की व्यवस्था करवाई. क्रांतिकारियों ने सोचा की जब बम फटेंगे तो जनता ये जानना चाहेगी की भगत सिंह है कौन?? कैसा दिखता है और इनकी  विचारधारा क्या है ??? इसीलिए तय हुआ की भगत सिंह की एक अच्छी सी तस्वीर खिंचवाई जाए इसीलिए 3 अप्रैल 1929 को कश्मीरी गेट इलाके में रामनाथ फोटोग्राफर के यहाँ भगत सिंह ने “हैट” पहन कर ये फोटो खिंचवाया जो बाद में इतिहास बन गया. ये स्टूडियो एक ज़माने में दिल्ली का सबसे विख्यात स्टूडियो था क्यूंकि बढ़िया तस्वीरें निकालने की व्यवस्था यहीं उपलब्ध थी. ये स्टूडियो कुदेसिया बाग के बिलकुल नजदीक है और कश्मीरी गेट मेट्रो के गेट नंबर 4 से चंद क़दमों की दूरी पर ही है. दुर्भाग्यवश दो वर्ष पूर्व ये स्टूडियो बंद हो गया है, पर भगत सिंह के ऐतिहासिक चित्र की वजह से इस स्टूडियो का नाम इतिहास के पन्नों में सदा सदा के लिए दर्ज हो चूका है.




आख़िरकार 8 अप्रैल का दिन आ गया, सुबह पहले सुखदेव ने भगत सिंह की मुलाकात दुर्गा भाभी, भगवती चरण वोहरा और सुशीला दीदी से आज के कश्मीरी गेट मेट्रो के पास बने कुदेसिया बाग में करवाई जहाँ सुशीला दीदी ने अपने खून से भगत सिंह के माथे पर तिलक किया और अपना आशीर्वाद दिया. इसके बाद भगत सिंह अपने काम को अंजाम देने निकल पड़े और दोपहर के 12.30 बजे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बारी बारी से तीन बम खाली स्थान पर फेंके ताकि किसी को किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे. उन्होंने इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए हवा में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के पर्चे हवा में उडाए जिन पर ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ बातें लिखीं गयी थीं और इसके बाद इन दोनों ने अपनी गिरफ्तारी दे दी. 
फिर वैसा ही हुआ जैसा की क्रांतिकारियों ने सोचा था, 8 अप्रैल के बाद “भगत” देश के हर युवा के आदर्श बन गए, लाखों दिलों पर राज़ करने लगे. HSRA के लोगों ने इस फोटो को कई मीडिया वालों तक पहुँचाया पर सरकार के डर से मीडिया वाले इसे छापने से बचते रहे और इंतज़ार करते रहे की पहले कौन छापेगा. अतंत: 12 अप्रैल 1929 को लाहौर के अखबार वन्दे मातरम ने इस तस्वीर को प्रकाशित किया फिर उसके बाद तो ये तस्वीर देश के हर कोने तक पहुँच गयी.
उस समय पंडित नेहरु भी भगत सिंह की प्रसिद्धि से आश्चर्य चकित थे. गली, मोहल्लों और हर चौक पर उनका हैट लगा फोटो प्रमुखता से लगाया जाने लगा. भगत सिंह ने ये हैट लाहौर से उस समय ख़रीदा था जब वो सांडर्स हत्याकांड के बाद लाहौर से निकल रहे थे. आज उसी 8 अप्रैल को शहीद ए आजम भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को याद करते  हुए उन्हें भावभीनी श्रधान्जली. देश सदैव आपका ऋणी रहेगा. आपको शत शत नमन.
दुसरा आज ही के दिन 1857 की क्रांति के अगुआ मंगल पाण्डेय को अंग्रेजी सरकार ने फांसी पर चड़ा दिया था. उनको भी हमारा नमन. अगले ब्लॉग में उनको दी गयी फांसी के बारे में विस्तार से बताऊंगा.
“मेरे ज़ज्बातों से इस कदर वाकिफ़ है मेरी कलम, मैं इश्क़ भी लिखना चाहूं तो इन्कलाब लिख जाता है” 
साभार  Bhagat Singh: The Eternal Rebel by Malwinder Jit Singh Waraich
A revolutionary history of Interwar India by Kama Maclean
देशभक्ति के पावन तीर्थ लेखक ऋषि राज

3 comments:

  1. very informative ...great to know all this about our great heroes...

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  2. ye to sab jaante hain ki ye shaheed hue par inke kare hue kaamon ko puri tarah samajhne vale bahut kam hain.Jai hind

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